टीएनपी डेस्क(TNP DESK): राजस्थान के बीकानेर में एक जगह है – जोड़बीड़. जोड़बीड का इलाका एक डम्पिंग यार्ड है. मगर, यह मरे हुए जानवरों के डम्पिंग यार्ड के लिए प्रसिद्ध है. इस इलाके में मृत ऊंट और बाकी जानवरों के मृत शव को फेंका जाता है. यहां इन शवों को फेंकने के पीछे का कारण है कि यह इलाका गिद्धों के लिए प्रसिद्ध है. मृत जानवरों के शव को गिद्ध खा कर इलाके की सफाई कर देते हैं. लेकिन राजस्थान का ये इलाका अभी एक घोर संकट से जूझ रहा है. इस इलाके में लगातार गायों की मौत हो रही है. मौत इतनी बड़ी संख्या में हो रही है कि गिद्धों की संख्या कम पड़ गई है. इसके कारण सभी गोवंशों का लाश सड़ने लगा है. इससे इलाके के चारों ओर बदबू फैल गई है. ये बदबू रिहायशी इलाकों तक पहुंच रही है.
क्यों हो रही हैं गायों की मौत
गायों की अचानक हो रही मौतों का कारण एक घातक बीमारी है. इस बीमारी का नाम लंपी है. राजस्थान समेत कई राज्य इस बीमारी की चपेट में हैं. इस बीमारी की तुलना कोरोना वायरस से की जा रही है. यह बीमारी गायों में तेजी से फैल रहा है. राजस्थान और गुजरात में इस बीमारी के कारण हजारों की संख्या में गोवंश की मौत हो चुकी है. मृत गोवंश की संख्या इतनी ज्यादा हो गई है कि अब गोवंश को दफनाने के बजाए लोग खुले में फेंक रहे हैं. इससे बदबू फैल रही है और इंसानों के लिए नई बीमारी की खतरा भी पैदा हो चुकी है.
राजस्थान में एक महीने में 50 हजार गोवंश की मौत
राजस्थान के करीब 10 जिले लंपी से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक महीने में राजस्थान में 50 हजार से भी ज्यादा गोवंश की मौत हुई है. सबसे खराब हालत जोधपुर, जालोर, पाली और बीकानेर में है. बीकानेर में तो हालात सबसे भयावह है. शहर के आसपास के इलाकों में हर दिन 300 से ज्यादा गोवंश की मौत हो रही है. इसे देखते हुए प्रशासन और स्थानिय लोग गायों और दूसरे मरे जानवरों को शहर से ही करीब दस किलोमीटर दूर जोड़बीड़ के खुले डंपिंग यार्ड में फेंक रहे हैं.
जोड़बीड़ का यह इलाका मृत जानवरों को फेंकने के लिए ही प्रसिद्ध है. इस इलाके में गिद्ध रहते हैं. यह पूरे राजस्थान में गिद्धों के लिए प्रसिद्ध है. इसलिए यहां पहले से ही मृत जानवरों को फेंका जाता रहा है. मगर, इस बार जानवरों की संख्या इतनी ज्यादा है कि गिद्ध कम पड़ गए हैं. इससे चारों ओर गोवंश की लाश फैल गई है और ये सब सड़ने लगे हैं. सड़ने से 5 किलोमीटर तक बदबू फैल गई है. इस एरिया के आसपास के गढ़वाल, सुरधना, किलचू, आंबासर, नैनो का बास, गीगासर की 50 हजार की आबादी बदबू से काफी परेशान है. वहीं, लूणकरनसर (बीकानेर) में नेशनल हाईवे से कुछ दूरी पर ही गायों की लाशें बिखरी हुई देखी जा सकती हैं. ऐसे ही हालात महाजन, अरजनसर, खाजूवाला, छत्तरगढ़ के आसपास हैं.
कोरोना से भी घातक है लंपी
बता दें कि लंपी बीमारी में गायों को घाव हो जाते हैं. दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार लंपी कोरोना से भी घटक बीमारी है. इस बीमारी में गोवंश की किडनी डैमिज हो रही है. इसके बाद लंग्स इन्फेक्शन हो जाता है. यह इन्फेक्शन गले और नांक तक पहुंच जाता है. इसके बाद गोवंशो को सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है और वे तड़प-तड़प का दम तोड़ देती हैं. CBC की रेपोर्ट्स के अनुसार इस बीमारी में गायों के प्लेटलेट्स गिर जाते हैं, ऐसा ही कोरोना में इंसानों के साथ हो रहा था. इस बीमारी में गोवंश की स्थित का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इन्होंने रंभाना भी बंद कर दिया है. क्योंकि इनमें इतनी शकती ही नहीं बची कि ये रंभा सके. आखों से सिर्फ इनके आंसू निकलते हैं जो इनकी तकलीफ को बयां करते हैं.
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