टीएनपी डेस्क(TNP DESK): 2006 में केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक के तीन समान विचारधारा वाले संगठनों के नेताओं ने एक साथ बैठकर मुस्लिम समुदाय को उनके सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक पिछड़ेपन से सशक्त बनाने के लिए एक अखिल भारतीय संगठन बनाने की आवश्यकता पर चर्चा की. केरल के मलप्पुरम जिले के मंजेरी में हुई बैठक में आए निर्णय के आधार पर केरल में राष्ट्रीय विकास मोर्चा (एनडीएफ), तमिलनाडु में मनिथा नीती पासराय और कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी के नेता कुछ महीने बाद बेंगलुरु में इकट्ठे हुए और तीनों संगठनों के विलय की घोषणा की. इस विलय से पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानि कि PFI का उदय हुआ.

16 साल बाद हुआ सबसे बड़ा एक्शन

इस अंगठन के बनने के 16 साल बाद इस गुरुवार को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 11 राज्यों में पीएफआई के 100 से ज्यादा कार्यकर्ताओं पर एक साथ झपट्टा मारा. इनमें से कई पर कथित तौर पर आतंकवाद से संबंधित गतिविधियों में शामिल होने का आरोप था. इनके यहां एजेंसी के अधिकारियों ने छापेमारी कर इन्हें हिरासत में लिया.

पीएफआई भारत के हाशिए के वर्गों यानि की कमजोर वर्गों के सशक्तिकरण के लिए एक नव-सामाजिक आंदोलन के लिए प्रयास करने का दावा करता है. हालांकि, अक्सर PFI पर सुरक्षा एजेंसियों द्वारा कट्टरपंथी इस्लाम को बढ़ावा देने का आरोप लगाया जाता है.

संगठन का हुआ तेजी से विस्तार

2006 में अपने जन्म के बाद, पीएफआई ने जल्द ही देश के उत्तर, पश्चिम और पूर्व और उत्तरपूर्वी हिस्सों में अन्य राज्यों में अपने संचालन का विस्तार किया. इसके साथ विभिन्न सामाजिक संगठनों के विलय के बाद इसने अपने पंख फैलाए. पीएफआई के पास अब विभिन्न संबद्ध संगठन हैं जिनमें इसकी राजनीतिक शाखा सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई), छात्र विंग कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, नेशनल वीमेन फ्रंट, एक एनजीओ रिहैब इंडिया फाउंडेशन और एम्पावर इंडिया फाउंडेशन नामक एक थिंक टैंक शामिल है.

कई विश्लेषकों ने पीएफआई की जड़ों को एनडीएफ से भी जोड़ा है. एनडीएफ एक कट्टरपंथी इस्लामी संगठन है, जिसे 1993 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के जवाब में बनाया गया था.

प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के पूर्व नेताओं द्वारा स्थापित, 2002 और 2003 में कोझीकोड जिले में सांप्रदायिक दंगों के बाद केरल में एनडीएफ की गतिविधियों पर व्यापक रूप से चर्चा हुई थी, जिसमें दो समुदायों के लोगों की हत्या हुई थी. हालांकि पीएफआई का गठन देश में मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक उन्नति के लिए काम करने के उद्देश्य से किया गया था, लेकिन संगठन जल्द ही सभी गलत कारणों से विभिन्न राज्य और केंद्रीय एजेंसियों के रडार पर आ गया. खासकर 2010 की घटना के बाद. जब केरल में एक कॉलेज के प्रोफेसर का हाथ कथित तौर इसलिए काट दिया गया था, क्योंकि उसके द्वारा सेट किए गए एक प्रश्न पत्र पर आरोप था कि उससे धार्मिक भावनाएं आहत हुई थी. पीएफआई से जुड़े कई कार्यकर्ताओं को 2011 की घटना के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था, जिसकी देश में सभी लोकतांत्रिक ताकतों ने निंदा की थी.

कई मामलों में संलिप्तता के बाद PFI आया जांच एजेंसियान के दायरे में  

यह संगठन केरल में कथित "लव जिहाद" की घटनाओं, अन्य धर्मों के लोगों का जबरन धर्म परिवर्तन और अफगानिस्तान और सीरिया में इस्लामिक स्टेट में शामिल होने के लिए राज्य के कुछ लोगों के गायब होने के संबंध में विभिन्न एजेंसियों की जांच के दायरे में भी आया.

हाल के महीनों में केरल में आरएसएस-भाजपा नेताओं की हत्या के आरोप में पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों के कार्यकर्ताओं को भी गिरफ्तार किया गया था. पीएफआई की फंड जुटाने की गतिविधियों की जांच ईडी और आयकर विभाग जैसी केंद्रीय एजेंसियां ​​भी कर रही हैं. पीएफआई के नेता कथित तौर पर संगठन की गतिविधियों के लिए धन जुटाने के लिए मध्य पूर्व के देशों की यात्रा करते हैं क्योंकि दक्षिण भारत के उनके कई समर्थक उस क्षेत्र में काम कर रहे हैं. संगठन को मिले चंदे की जांच भी केंद्रीय एजेंसियों ने की थी.