TNP DESK-: देश में आपातकाल के लगे आज 50 साल हो गए. 25 जून 1975 को देश में आंतरिक गड़बड़ी का हवाला देते हुए आपातकाल की घोषणा की गई थी. तब के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने आपातकाल लगाने के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए थे. उसे समय इंदिरा गांधी की सरकार थी. उसके बाद तो प्रेस पर सेंसरशिप लग गया, विपक्षियों को जेल में डाल दिया गया और हजारों -हजार लोगों की नसबंदी कर दी गई. सिनेमा मंच और रंग मंच  को भी इसका नुकसान उठाना पड़ा था. यह अलग बात है कि आपातकाल का गवाह रहा, एक बहुत बड़ा "उम्र वर्ग " अब  इस दुनिया में नहीं है. लेकिन 1975 में लागू आपातकाल आज भी जिंदा है, जीवंत है, राजनीतिक मुद्दा बनता  रहा है. आपातकाल में जेल भेजे गए विपक्षियों  ने भी कम पीड़ा नहीं  झेली. बेवजह उन्हें जेल में डाल दिया गया था.

आपातकाल में ज्यादतियों  की सीमा बेपटरी  हो गई थी
  
यह अलग बात है कि आपातकाल लगने के बाद व्यवस्थाएं पटरी पर आ गई थी, लेकिन ज्यादतियों  की सीमा बेपटरी  हो गई थी. प्रेस पर भी सेंसरशिप लगा. नतीजा हुआ कि इसका विरोध भी हुआ. लेकिन उस समय की सरकार विरोध की आवाज को लाठी के बल पर दबाने की कोशिश की. आपातकाल से तबाह और पीड़ित जनता को जब मौका मिला, तो सरकार को ही पलट दिया. 1977 में आम चुनाव हुए, इसमें तो कांग्रेस पार्टी की बुरी हार हो गई. यहां तक की स्वर्गीय इंदिरा गांधी भी रायबरेली से स्वर्गीय राज नारायण के हाथों पराजित हो गई. यह  अलग बात है कि 1977 में इंदिरा गांधी की हार के बाद बनी जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार ने आपातकाल के दौरान की गई कथित ज्यादतियों  की जांच के लिए आयोग का  गठन किया था. 
 
1977 के आम चुनाव में बुरी तरह हार गई थी कांग्रेस पार्टी 
 
1977 के आम चुनाव में स्वर्गीय इंदिरा गांधी और कांग्रेस पार्टी की करारी हार के बाद जनता पार्टी की मोरार जी देसाई के नेतृत्व में सरकार बनी. आपातकाल में ही जयप्रकाश नारायण ने नारा दिया था कि - कुर्सी खाली करो कि जनता आ रही है. आपातकाल के खिलाफ जब जनता आक्रोशित हुई, तो जयप्रकाश नारायण ने इसका नेतृत्व किया और बढ़ती उम्र के बाद भी वह पीछे नहीं हुए. नारा दिया गया था कि देश में आजादी की दूसरी लड़ाई शुरू की गई है. जयप्रकाश नारायण ने इसका नेतृत्व किया. आपातकाल के खिलाफ लगातार प्रदर्शन होते रहे. और प्रदर्शन के बाद आंदोलनकारियों  को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया जाता था. यह आपातकाल तो सरकार की मनमानी का परिणाम था. लोगों ने इसे लोकतंत्र की हत्या की संज्ञा दी. लोकतंत्र को आपातकाल के बहाने कुचलने  की कोशिश हुई, तो लोगों ने सरकार को ही बदल दिया.

50 साल बाद भी आपातकाल की खूब होती है चर्चा 

50 साल बाद भी आपातकाल की चर्चा इसलिए होती है कि इसे आज भी राजनीतिक मुद्दे के रूप में भुनाया  जाता है. फिलहाल देश में एनडीए की सरकार है, कांग्रेस विरोध में है. इसलिए भी आपातकाल की चर्चा बार-बार होती है. जिन लोगों ने आपातकाल में जेल की यातनाएं  सही , अगर उनसे केवल बात छेड़ दी जाए तो उनकी बात खत्म ही नहीं होती. 25 जून 1975 की रात आपातकाल की घोषणा के बाद 26 जून की सुबह देशभर में विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी शुरू हो गई थी. देश में इमरजेंसी की घोषणा के तुरंत बाद प्रेस की आजादी पर पूर्ण लगाम लगा दिया गया था. आपातकाल 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक लगा  रहा. लोग यह भी  बताते हैं कि इमरजेंसी के दौरान ट्रेन समय पर चल रही थी. इंदिरा गांधी सभी फैसले अपने कुछ करीबी और अपने छोटे बेटे संजय गांधी की सलाह पर ले रही थी.

आपातकाल के दौरान आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (मीसा ) का खूब हुआ दुरूपयोग 

आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार पर लगातार आरोप लगाए जाते रहे. इस दौरान सबसे अधिक चर्चा आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (मीसा ) की हुई. इसका खुलकर दुरुपयोग किया गया. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव जिस समय मीसा  के तहत जेल में बंद थे. उसी समय पुत्री हुई थी, इस वजह से पहली संतान का नाम उन्होंने मीसा  रखा. 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो मीसा  को निरस्त कर दिया. 21 मार्च 1977 को इंदिरा गांधी ने आपातकाल वापस ले लिया और आम चुनाव की घोषणा कर दी थी. चुनाव हुए तो कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी. उस समय मोरारजी देसाई भारत के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने थे. 

रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो