चाईबासा(CHAIBASA): पश्चिमी सिंहभूम के सारंडा के टाटीबा में बिरहोर जनजाति विलुप्त होने के कगार पर है. उन्हें बचाने के लिए सरकार और टाटा कंपनी कई कदम उठा रही है, लेकिन धरातल पर हकीकत कुछ ओर ही नजर आ रही है. जनजाति समुदाय के लोगों को ना तो सरकारी सुविधा मिल रही है ना ही कोई रोजगार. कई लोगों को राशन तक नहीं मिल रहा है और ना ही इलाज. ऐसे में बिरहोर जनजाति के लोग सुविधाओं के अभाव में धीरे-धीरे विलुप्त होने के कगार पर जा रहे हैं.     

ब्लड देने वाला नहीं है कोई

फिलहाल एक मामला सामने आया है, जहां रोजगार के तलाश में एक बिरहोर परिवार टाटीबा से जायरपी जगन्नाथपुर पहुंचे थे. जायपरी पहुंचने के बाद परिवार का मुखिया 60 वर्षीय चुंबरू बिरहोर बीमार पड़ गया, जिसे कृष्ण चंद्र सिंकू आंदोलनकार की सहयोग से सदर अस्पताल के जिरियाट्रिक वार्ड के पांच नंबर बेड में एडमिट कराया गया है, जहां उसे ब्लड की जरूरत बताई गई. मगर बीमार चुंबरु को कोई बल्ड देने वाला नहीं है. चुंबरू के साथ उसकी पत्नी 50 वर्षीया पत्नी पानी बिरहोर, उसके 5 वर्षीय नंगदड़ंग बच्चा अमर बिरहोर और 3 वर्षीय बच्चा  कोंदा बिरहोर भी है.

 

कई और बीमारियों से जूझ रहा चुंबरु

डॉक्टरों के अनुसार चुंबरु के कई जांच किए गए है, जिसकी रिपोर्ट अभी तक नहीं आयी है. इसके अलावा बिरहोर के दाहिने पैर पर घुटने के ऊपर और पैर के पंजे के पास पिछले करीब 2 महीने से गहरा घाव हो गया है, जो बेहतर इलाज के अभाव में सड़ गल रहा था. बिरहोर का इलाज झारखंड आंदोलनकारी आसमान सुंडी और बाबू अहमद के देखरेख में चल रहा है.

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रोजगार के तलाश में पहुंचे था जायपरी

पत्नी ने बताया कि पूरा परिवार रोजगार के लिए टाटीबा से जायपरी पहुंचे थे. मगर पिछले कुछ महीनों से चुंबरू बीमार पड़ गए और हमारी ये हालत हो गई. इसके साथ ही उन्होंने समाजसेवी सह झारखंड आंदोलनकारी कृष्ण चंद्र सिंकू का धन्यवाद किया. पत्नी ने बताया कि पहले इलाज के लिए चुंबरू को जगन्नाथपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लाया गया था जहां बिरहोर का प्राथमिक उपचार के बाद चिकित्सकों ने बेहतर इलाज के लिए चाईबासा सदर अस्पताल रेफर कर दिया.

परिवार को नहीं मिलता है राशन

पत्नी ने बताया कि परिवार को पहले सरकारी चावल मिलता था, लेकिन पिछले साल से उन्हें चावल भी नहीं मिल रहा है. इसा कारण से हमें पेट पालने के लिए इतनी दूर काम करने आना पड़ा.    

रिपोर्ट: संतोष वर्मा, चाईबासा