धनबाद (DHANBAD) : झारखंड का गिरिडीह एक ऐसा जिला है, जो समय के साथ कदम ताल किया और आज इसकी ख्याति लोहे की फैक्ट्री के शहर के रूप में तब्दील हो गई है. पहले अबरख उद्योग की वजह से ही गिरिडीह के प्रति लोगों का झुकाव  हुआ था. लेकिन समय ने ऐसा पलटा खाया कि यह उद्योग गर्त में चले गए. एक कांटी कारखाने से शुरू हुआ गिरिडीह में लोहा उद्योग धीरे-धीरे सरिया उद्योग में कन्वर्ट हो गया. एक अनुमान के अनुसार गिरिडीह जिले में फिलहाल चार दर्जन से अधिक लोहे की फैक्ट्रियां है. टर्न ओवर भी हजारों में बताया जाता है. यहां से तैयार लोहा देश के कई प्रदेशों तक पहुंचता है. जम्मू कश्मीर से लेकर विदेश(नेपाल) में भी तैयार लोहा भेजा जाता है. हालांकि लोहे के उद्योग ने कई झंझावात झेले, लेकिन उद्योग की साख अभी भी बनी हुई है. जानकार बताते हैं कि गिरिडीह में सलूजा परिवार ने लोहे के कारखाने की नींव रखी थी. आज से लगभग 50 साल पहले इस परिवार ने कांटी कारखाना की स्थापना की थी. धीरे-धीरे फैक्ट्री का उत्पादन बढ़ता गया. उसके बाद रोलिंग मील  की स्थापना शुरू हुई. 

सफलता मिलती गई और उद्योगपति आगे बढ़ते गए 
 
रोलिंग मील में मिली सफलता से उत्साहित होकर अन्य लोग भी इस क्षेत्र में आगे बढ़े, एक-एक कर लोह उद्योग की कई फैक्ट्रियां लगने लगी. बात सिर्फ गिरिडीह की ही नहीं है, दूसरी जगह से आकर भी लोग यहां लोहे की फैक्ट्रियां लगाने लगे. नतीजा है कि गिरिडीह अभी लोहा फैक्ट्री का हब हो गया है. एक छोटी सी कांटी फैक्ट्री से शुरू हुआ यहाँ लोहा उद्योग आज गिरिडीह बड़ा रूप अख्तियार कर लिया है. सवाल पूछा जा सकता है कि गिरिडीह में ही क्यों लोहे की फैक्ट्रियां लगनी शुरू हुई और चल भी रही है. इसके पीछे यह बताया जाता है कि गिरिडीह में कोयला और आयरन ओर मिलने में आसानी होती है. इन खनिजों की उपलब्धता ने लोहे के उद्योग की स्थापना और विकास को बढ़ावा दिया. कोयला और अभ्रक लोहा उद्योग में कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है. 

सीसीएल की कोलियरियों की भी है महत्वपूर्ण भूमिका 

गिरिडीह के आसपास कोयले की खदानें हैं, गिरिडीह क्षेत्र में कोल इंडिया की सहायक कंपनी सीसीएल की कोलियारियां है. धनबाद में संचालित बीसीसीएल की कोलियारियां भी गिरिडीह से बहुत दूर नहीं है. हालांकि उद्योग चलाने वालों को अभी भी सरकार से बहुत कुछ सहयोग नहीं मिलता है, बावजूद उद्योग चलाने वाले अपने बलबूते इस उद्योग को आगे बढ़ा रहे है. लोग बताते हैं कि 1995-96 के बाद गिरिडीह में एकाएक लोहे की फैक्ट्री लगाने में लोगों की दिलचस्पी बढ़ी, दरअसल, कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के बाद कोलियरी  मलिक के वंशज अलग-अलग क्षेत्र में फैले. धनबाद कोयलांचल में हार्डकोक फैक्ट्रियां लगी. धनबाद में भी कुछ लोहे की फैक्ट्रियां काम करने लगी, लेकिन धीरे-धीरे धनबाद की फैक्ट्रियां बंद होने लगी और गिरिडीह शहर लोहे के कारखाने का हब बनता चला गया.  

झारखंड में डीवीसी से सीधी लाइन सिस्टम गिरिडीह में ही शुरू हुआ 

जानकार बताते हैं कि लोहा फैक्ट्री में कच्चे माल के रूप में कोयला और आयरन ओर का इस्तेमाल होता है. पहले आयरन ओर धनबाद के भागा रेलवे साइडिंग से गिरिडीह पहुंचता था. लेकिन अब गिरिडीह में ही रेलवे की साइडिंग उपलब्ध हो गई है. इस वजह से कच्चे माल मिलने में आसानी हो गई है. यह आयरन ओर झारखंड और ओड़िशा से गिरिडीह पहुंचता है. कोयले की उपलब्धता तो है ही और अभ्रक उद्योग की बंदी के बाद लोगों का झुकाव लोहा फैक्ट्री की ओर हुआ और यह कारखाना चल निकला. लोग यह भी बताते हैं कि झारखंड में सबसे पहले डीवीसी से सीधी लाइन की व्यवस्था गिरिडीह में ही चालू हुई. लोहा फैक्ट्रियां सीधे डीवीसी से बिजली लेने लगी. इस वजह से भी उद्योगों  बिजली संकट से बहुत हद तक छुटकारा मिलने लगा. यह सुविधा आज भी कायम है. झारखंड सरकार अगर इस उद्योग के प्रति दिलचस्पी बढ़ा दे, तो यह झारखंड के लिए अच्छे दिन कहे जा सकते है.

रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो