धनबाद DHANBAD) : भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी अभी "उधार" पर चल रही है. क्योंकि फिलहाल के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी नेता प्रतिपक्ष बनाए गए है. ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी उन्हें किसी दूसरे को देनी पड़ेगी. प्रदेश अध्यक्ष की रेस में कई लोग शामिल है. पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास का नाम भी इसमें शामिल किया गया है. रघुवर दास संथालपरगना पहुंचे तो उन्होंने साफ कहा कि झारखंड में एक और हूल की जरूरत है. मैंने इसके लिए प्रयास शुरू कर दिए है. बारिश के बाद जनजातीय समाज को जागरूक करने के लिए पूरे झारखंड में पदयात्रा निकालेंगे. यह बात उन्होंने दुमका में कही.
बोकारो, धनबाद होते हुए संथाल परगना पहुंचे थे
पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास बोकारो, धनबाद होते हुए संथाल परगना पहुंचे थे. जहां भी जा रहे हैं, आदिवासियों के हित की बात कर रहे है. पेसा कानून लागू करने की मांग कर रहे है. कह रहे हैं कि पेसा कानून लागू होने से जनजातीय समुदाय का विकास होगा. उन्होंने यहां तक कहा है कि भारत सरकार के सचिव ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर कहा है कि 1400 करोड रुपए तभी मिलेंगे, जब पेसा कानून लागू झारखंड में होगा. उन्होंने सरकार से पूछा कि आखिर किसके दबाव में पेसा कानून लागू नहीं किया जा रहा है. आदिवासियों के हित और विकास की बात कह कर अबुआ सरकार सत्ता में आई. पर उस समुदाय पर सरकार का बिल्कुल ध्यान नहीं है.
झारखंड में घुसपैठ पर लगातार बोल रहे हमला
रघुवर दास ने एक और बड़ा आरोप लगाया, कहा कि आज झारखंड में घुसपैठ हो रहा है, वह काफी चिंताजनक है. मेरे कार्यकाल में पीएफआई पर प्रतिबंध लगाया गया था, लेकिन हेमंत सरकार उसे छूट दे रही है. पीएफआई और सिमी में कोई अंतर नहीं है. धर्मानांतरण और घुसपैठ को यह सरकार समर्थन दे रही है. जो झारखंड के लिए काफी खतरनाक है. हालांकि एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि उन्हें अब किसी पद की लालसा नहीं है. भाजपा ने उन्हें कई सम्मान दिए. जामताड़ा पहुंचने पर रघुवर दास ने आदिवासियों के साथ चौपाल लगाया. उन्हें बताया कि उनके विकास के लिए यह अबुआ सरकार कुछ नहीं कर रही है.
आदिवासियों के बीच राजनीति के मतलब भी निकाले जा रहे
रघुवर दास के लगातार दौरे और आदिवासियों के बीच राजनीति करने का मतलब भी निकाले जा रहे है. इतना तो तय है कि विधानसभा चुनाव में आदिवासी आरक्षित सीटों पर भाजपा को बड़ा नुकसान हुआ है. आदिवासियों को समेटना, उनका दिल जीतना भाजपा के लिए जरूरी हो गया है. फिलहाल भाजपा में कई आदिवासी नेता सक्रिय ही. आदिवासियों को अपनी ओर खींचने की भाजपा के नेताओं में होड़ लगी हुई है. बाबूलाल मरांडी भी भाजपा में शामिल हुए, तो पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन भी शामिल हुए. सीता सोरेन भी लोकसभा चुनाव के पहले भाजपा में शामिल हुई. ऐसे में इतना तो तय है कि झारखंड में भाजपा की राजनीति करने वालों को आदिवासियों के बीच अपनी पैठ बनानी होगी. फिर तो सवाल उठता है कि क्या रघुवर दास ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष होंगे? क्या इसीलिए वह आदिवासियों के बीच अपनी पैठ बढ़ाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं? लगातार हेमंत सोरेन की सरकार को घेर रहे है.
पेसा कानून लागू करने की वकालत कर रहे है
पेसा कानून लागू करने की वकालत कर रहे है. सरना धर्म कोड को लेकर भी रघुवर दास मुखर है. वह कह रहे हैं कि सत्ता पक्ष इस जरुरी मुद्दे पर राजनीति कर रहा है. यह बात भी सच है कि झारखंड में भाजपा के फिलहाल बुरे दिन चल रहे है. ओडिशा के राज्यपाल से त्यागपत्र देकर जब रघुवर दास भाजपा की सक्रिय राजनीति में शामिल हुए, तो उम्मीद थी कि जल्द भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कई पेंच फंस गए. कई लोग आगे- आगे इस रेस में शामिल हो गए. रघुवर दास का नाम पीछे छूट गया था. लेकिन एक बार उनकी फिलहाल की सक्रियता यह बता रही है कि वह फिर से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की रेस में आगे-आगे हो गए है.
रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो
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