रांची(RANCHI): झारखंड शिक्षक पात्रता परीक्षा 2025 में पलामू और गढ़वा की क्षेत्रीय भाषा नागपुरी घोषित की गई यही और ये मामला अब दिन ब दिन गरमाता जा रहा है. कल ही भवनाथपुर के पूर्व विधायक भानु प्रताप शाही ने राज्यपाल से मिलकर पत्र सौपा है. पत्र में उन्होंने पलामू प्रमंडल में क्षेत्रीय भाषा के नाम पर वर्तमान सरकार द्वारा भेदभाव करने का आरोप लगाया है.
दरअसल झारखंड शिक्षक पात्रता परीक्षा (JTET) एक प्रवेश परीक्षा है, जिसके तहत झारखंड में शिक्षक बनने के परीक्षा आयोजित की जाती है. यह परीक्षा झारखंड शैक्षणिक परिषद द्वारा ली जाती है. इसी कड़ी में झारखंड शिक्षक पात्रता परीक्षा नियमावली 2025 अंतर्गत, जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं की लिस्ट में पलामू और गढ़वा के लिए नागपुरी और कुड़ुख भाषा को चयनित किया गया है. अब इसी बात का विरोध हो रहा है, और इसी के साथ पलामू प्रमंडल में राजनीति गरमाई हुई है. मामले पर न सिर्फ पूर्व विधायक भानु प्रताप शाही बल्कि पलामू सांसद विष्णुदयाल राम ने भी विरोध किया है. वहीं अब सोचने वाली बात यह ये है की जब इन जिलों में मगही और भोजपुरी सदियों से जनमानस की आत्मा रही हैं, तो फिर ऐसा फैसला क्यों लिया गया जो यहां की जमीनी सच्चाई, संस्कृति और भाषा-बोलियों को पूरी तरह दरकिनार कर देता है? ऐसे में लोगों के द्वारा कई सवाल भी उठ रहे है, जैसे क्या इंडी गठबंधन की सरकार को पलामू और गढ़वा की भावी पीढ़ियों की आवाज़ से कोई सरोकार नहीं है, क्या यह सौतेला व्यवहार जानबूझकर किया जा रहा ताकि हमारी भाषाएं, हमारे लोग और हमारे हक धीरे-धीरे हाशिए पर धकेल दिए जाएं?
वहीं बात करें भानु प्रताप शाही की तो राज्यपाल को दिए पत्र में उन्होंने जिक्र किया है, कि मौजूद सरकार भाषा के आधार पर लगातार पलामू प्रमंडल के साथ भेदभाव कर रही है. वहीं उन्होंने ये भी इल्जाम लगाए यही की इस तरह की भेदभाव पूर्ण नीति से राज्य सरकार, पलामू प्रमंडल के साथ राजनीति कर रही है. भानु प्रताप ने ये भी कहा है कि मगही और भोजपुरी भाषा को पलामू प्रमंडल में होने वाली प्रतियोगी परीक्षा में क्षेत्रीय भाषा के रूप में शामिल नहीं कर कुडुख और नागपुरी को शामिल करना, यहां के लाखों युवाओं के भविष्य बर्बाद करने जैसा है. राज्य सरकार की इस तुगलकी फरमान से पलामू प्रमंडल की एक बड़ी आबादी प्रभावित होगी. उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया कि पलामू और गढ़वा दोनों को ही अविभाजित बिहार के समय से दर्जा मिल है. वहीं बिहार में ही 3 मई 1992 को पलामू को प्रमंडल का दर्जा मिला था, और ये सभी लोग जानते है की पलामू और गढ़वा में मगही और भोजपुरी बोलचाल की भाषा सालों से चली आ रही यही. साथ ही क्षेत्र में बोलने के साथ ही लिखने और पढ़ने में भी इसी भाषा का इस्तेमाल किया जाता है. इस मामले पर भानु प्रताप ने राज्यपाल से सरकार द्वारा पलामू प्रमंडल में लागू किए जाने वाली कुड़खू और नागपुरी भाषा को निरस्त करने की मांग की है. कल राजभवन में भानु प्रताप शशि के साथ प्रदेश महामंत्री और राज्यसभा सांसद आदित्य प्रसाद और भाजपा के वरिष्ठ नेता विरंची नारायण भी शामिल थे.
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