पाकुड़ (PAKUR): पाकुड़ जिले के हिरणपुर प्रखंड में एक अदृश्य मगर बेहद खतरनाक आर्थिक सिंडिकेट चुपचाप पांव पसार चुका है—सूदखोरी का सिंडिकेट. ये वो लोग हैं जो इंसानियत के नाम पर धब्बा बन चुके हैं. जब गांव-शहर के गरीब, बेरोजगार और मजबूर लोग मुश्किल हालात में थोड़ा सहारा तलाशते हैं, तब ये महाजन उनके आंसुओं की कीमत वसूलने पहुंचते हैं—ब्याज पर ब्याज का बोझ डालकर.

इन गुप्त सूदखोर महाजनों ने हिरणपुर ही नहीं, बल्कि पाकुड़ शहर सहित आसपास के कई क्षेत्रों में अपनी जड़ें जमा ली हैं. इनके पास इतना काला धन है कि आम आदमी सोच भी नहीं सकता. इसी काली कमाई से इन्होंने ज़मीन खरीदी, आलीशान मकान बनाए और शहरों में लग्जरी इन्वेस्टमेंट कर अपने काले कारोबार को सफेद रंग देने का पूरा इंतजाम कर लिया है

इनके पास न कोई रसीद होती है, न कोई हिसाब—सिर्फ खौफ होता है. पीड़ित डर के साए में जीते हैं। कई लोगों की जिंदगियां इनकी उगाही में तबाह हो चुकी हैं. जिनके पास लौटाने के पैसे नहीं होते, उनकी जमीन, घर, यहां तक कि इज्ज़त तक दांव पर लग जाती है.

सबसे बड़ी विडंबना यह है कि इनमें से कई सूदखोर माफिया समाज के संभ्रांत और राजनीतिक चेहरों के पीछे छुपे हैं. कोई समाजसेवी कहलाता है, तो कोई किसी दल का पदाधिकारी बनकर अपने गुनाहों पर नकाब डालने की कोशिश करता है.

अब वक्त आ गया है कि प्रशासन इनकी आय से अधिक संपत्ति, बैंक खातों, लॉकरों, और भूमि खरीद की जांच कर इनकी काली करतूतों को उजागर करे. यह समाज का दर्द है, जिसकी आवाज़ अब दबने नहीं दी जाएगी. कई परिवार आज भी इन सूदखोरों की वजह से घुट-घुटकर जी रहे हैं. जरूरत है एक ईमानदार जांच की, एक सख्त कार्रवाई की, ताकि भविष्य में कोई गरीब अपनी मजबूरी लेकर किसी माफिया के दरवाजे पर न झुके.

रिपोर्ट: नंद किशोर मंडल/पाकुड़