पाकुड़: हिरणपुर प्रखंड के तारापुर गांव में खंडहर में तब्दील हो चुकी एक इमारत आज भी गवाही देती है उस दौर की, जब यहां सैकड़ों लोगों की रोज़ी-रोटी चलती थी. यह वही इमारत है, जहां कभी 'मॉडल टेनरी' के नाम से जानी जाने वाली चमड़ा फैक्ट्री थी—जो तब बिहार सरकार के अधीन संचालित होती थी. झारखंड के बिहार से अलग होने से पहले यह कारखाना इलाके की आर्थिक धड़कन हुआ करता था.
टूटी खिड़कियां, उखड़े प्लास्टर से झाँकती ईंटें और वीरान पड़े गलियारे अब इस उद्योग की बीते वैभव की कहानी बयां करते हैं. एक समय था जब यह इलाका चहल-पहल से गुलजार था, मशीनों की आवाज़ और लोगों की बातचीत से गूंजता था. राज्य विभाजन के बाद कुछ समय तक कंपनी ने संचालन जारी रखा, परंतु धीरे-धीरे 'ठंड' यानी सरकारी उपेक्षा और संसाधनों की कमी से इसका दम घुटता गया. अंततः कंपनी बंद हो गई और इसकी मशीनें नीलाम कर दी गईं.
आज वहां केवल दीवारें खड़ी हैं—वो भी खंडहर के रूप में. न तो रोजगार बचा, न ही उम्मीदें. तारापुर के लोग आज भी उस समय को याद करते हैं, जब गांव में खुशहाली थी. अब बस एक सवाल रह गया है—क्या कभी यह सपना फिर से जिंदा होगा?
पाकुड़/नंद किशोर मंडल
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