धनबाद(DHANBAD) : धनबाद ज़िले में एक ऐसा शहर है, जहां साल के 365 दिन बारिश होती है. लेकिन इस बारिश में पानी नहीं, पत्थर और धूल कण गिरते है. इस शहर का नाम है ऐतिहासिक झरिया शहर. सुबह में जमीन पर धूलकण की एक मोटी परत जम जाती है. घर के खिड़की-दरवाजे बंद कर लोग गर्मी, जाड़ा और बरसात में सोते है. आलीशान भवन तो उनके पास है, लेकिन छत पर जा नहीं सकते. क्योंकि धूलकण की बारिश दिन अथवा रात नहीं देखती. वह 24 घंटे होती रहती है. धनबाद का झरिया शहर अतीत में भी अनूठा था और वर्तमान में भी अनूठा ही है. झरिया और उसके सटे इलाकों से आज भी बीसीसीएल को सबसे अधिक कोयले के रूप में खाद-पानी मिल रहा है.
झरिया देश का अनूठा कोयला बेल्ट है
झरिया देश का अनूठा कोयला बेल्ट है. एक तो यहां कोकिंग कोल् उपलब्ध है, तो दूसरी ओर कोयला जमीन से काफी नजदीक उपलब्ध हो जाता है. इसी का खामियाजा आज झरिया शहर भुगत रहा है. झरिया शहर की आबादी लगभग 6 लाख बताई गई है. इस इलाके में एक दर्जन आउटसोर्सिंग कंपनियां कोयला खनन में लगी हुई है. जाहिर है कोयला खनन बढ़ेगा तो ओवर बर्डेन की डंपिंग भी बढ़ेगी. नतीजा हुआ है कि यह शहर अब अब के पहाड़ के बीच हो गया है. प्रदूषण की मात्रा तो इतनी अधिक हो गई है कि रहने वाले लोग बीमारियों से ग्रसित है. शहर के लोग बताते हैं कि झरिया के चारों तरफ ओबी के पहाड़ खड़े हो गए है. हवा के तेज झोंका होने पर धूल कण काफी मात्रा में उड़ते है. परियोजनाओं में होने वाली ब्लास्टिंग से भी वायु प्रदूषण बढ़ जाता है.
दामोदर के पानी में जमी मिलती है धूलकण की परत
प्रदूषण का आलम यह है कि दामोदर नदी में सुबह में जाने पर एक परत पानी के ऊपर धूल जमी मिलती है. उसी पानी की सप्लाई फिल्टर कर पीने के लिए हो रही है. झरिया में आलीशान छत वाले मकान है, लेकिन घर लोग गर्मी के दिनों में खुले में सो नहीं पाते. कारण है कि रात में धूलकण की बारिश होती है. जो मोटी परत के रूप में जम जाती है. यह स्थिति झरिया शहर में पिछले 20 सालों से बनी हुई है. लोग बताते है कि कई जगहों पर आउटसोर्सिंग परियोजनाएं चल रही है. सभी जगह ओपन कास्ट माइनिंग हो रही है. इसके अलावा ट्रांसपोर्टिंग के नियमों का भी पालन नहीं हो रहा. भारी वाहनों से कोयले की ढ़ुलाई होती है. लेकिन वाहनों को तिरपाल से ढका नहीं जाता. वाहनों के टायर धोये नहीं जाते. नतीजा है कि झरिया के लोगों को शुद्ध हवा और शुद्ध पानी नसीब नहीं होता. लोग तरह-तरह की प्रदूषण नित बीमारियों के शिकार है. यहां पर वायु, ध्वनि, मिट्टी और जल सब कुछ प्रदूषण के प्रभाव में है.
झरिया के लोग कम आयु जीते है
यहां तक कहा जाता है कि झरिया से बाहर रहने वाले लोग 80 वर्ष जीते हैं, लेकिन झरिया के लोगों की आयु 60 वर्ष भी नहीं पहुंचती. समय से पहले वह ईश्वर के प्यारे हो जाते है. झरिया के हर मोहल्ले में टीवी के मरीज मिल जाएंगे. नेत्र रोगियों की संख्या भी बढ़ रही है. ऐसी बात नहीं है कि प्रदूषण के खिलाफ झरिया में आंदोलन नहीं होते है. खूब आंदोलन होते हैं, लेकिन झरिया की बूढ़ी हड्डियों को आज कोई भी पूछने और देखने वाला नहीं है. यहां जमीन के नीचे आग लगी हुई है. इस वजह से भी प्रदूषण बढ़ता है. लोगों की समस्याओं की लंबी सूची है. झरिया शहर को दूसरी जगह बसाने के लिए योजनाएं तो बनी लेकिन उन योजनाओं के क्रियान्वयन में दिलचस्पी नहीं दिखाई गई. नतीजा है कि झरिया अब वह झरिया नहीं रह गई. कोयला खनन का यहां इतिहास बहुत पुराना है. 1884 से झरिया इलाके में कोयला का खनन किया जा रहा है. भूमिगत आग का पता भी 1919 में इसी इलाके से चला. कोयलांचल की अर्थव्यवस्था का प्रमुख केंद्र पहले झरिया थी. आज भी कमोवेश है. विशेषता यह है कि कोयला जमीन के नजदीक उपलब्ध हो जाता.
जमीन के नीचे आग तो ऊपर "राजनीतिक आग" जल रही है
फिलहाल जमीन के नीचे आग लगी हुई है तो जमीन के ऊपर "राजनीतिक आग" भी जल रही है, आग लौ एक ही परिवार के लोगों से उठ रही है. यह इलाका दबंगई के लिए भी जाना जाता है. 1977 के बाद से अगर बात की जाए तो सूर्यदेव सिंह झरिया विधानसभा से चार बार विधायक रहे. उनके निधन के बाद दो बार उनकी पत्नी और एक बार उनका बेटा विधायक रहे. उनके भाई बच्चा सिंह(अब स्वर्गीय ) भी विधायक रहे. सूर्य देव सिंह के भाई की बहू भी विधायक रही. फिलहाल सूर्यदेव सिंह की बहू झरिया विधानसभा से विधायक है. झरिया में टकराव की राजनीति भी खूब चलती है. यह राजनीति आज से नहीं, बल्कि बहुत पहले से चलती आ रही है. एक समय तो झरिया की हैसियत कुछ ऐसी थी कि झरिया से ही लोग धनबाद को जानते थे. लेकिन आज यह गौरवशाली झरिया सुविधाओं की मांग कर रही है.
रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो
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