धनबाद(DHANBAD): झारखंड में कांग्रेस आलाकमान की "नाक" फंस गई है. गड़बड़ी चाहे जिस स्तर पर हुई हो, लेकिन प्रदेश से लेकर केंद्र का सिस्टम ही सवालों में है. झारखंड के कांग्रेस प्रभारी के राजू भले ही कह रहे हैं कि कोई भी संगठन की "लक्ष्मण रेखा" पार नहीं करें, जिसको जो कुछ भी कहना है, वह पार्टी फोरम में कहे. फिर भी विवाद और बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है. झारखंड कांग्रेस के 25 जिलों में अध्यक्ष की सूची अभी हाल ही में जारी की. इस सूची के सार्वजनिक होने के साथ ही "ज्वालामुखी" फट गई. कम से कम आधा दर्जन जिलों में विरोध प्रदर्शन हो रहे है. झारखंड प्रभारी के पास शिकायतें पहुंचाई जा रही है. जहां विवाद अधिक है, उनमें धनबाद, हजारीबाग, खूंटी, देवघर, रामगढ़, चाईबासा, कोडरमा शामिल है. विरोध करने वाले नेताओं ने स्पष्ट रूप से नाराजगी जाहिर की है.
आखिर क्यों गुस्से में समर्पित नेता -कार्यकर्ता
उनका कहना है कि नए लोगों को तरजीह दी गई है और पुराने लोगों को दरकिनार कर दिया गया है. इधर, सूत्र यह भी बताते हैं कि हर जिले में जिला अध्यक्ष के चयन में स्थानीय विधायकों की पसंद का ख्याल रखा गया है. कार्यकर्ताओं के वजूद को दरकिनार कर दिया गया है. सवाल उठता है कि जब केंद्र से पर्यवेक्षक आए थे, प्रदेश के भी पर्यवेक्षक थे, सारे लोगों के बयान अंकित किए गए ,उनके हस्ताक्षर भी लिए गए. तो आखिर ऐसा कैसे हो गया कि कार्यकर्ता जिन्हे नहीं चाह रहे थे, उन्हें अध्यक्ष बना दिया गया? सवाल उठ रहा है कि यह कैसी राय शुमारी थी? क्या यह केवल दिखावा था? अगर दिखावा था तो फिर इसका जवाब तो कार्यकर्ताओं को देना होगा. जिस रफ्तार से आंदोलन तेज हो रहा है, उससे मान जा सकता है कि कांग्रेस के बहुत सारे समर्पित कार्यकर्ता किनारा पकड़ लेंगे. खैर, आगे क्या होगा, यह तो देखने वाली बात होगी.
क्यों --अचानक सूची में बदलाव की चर्चा हो गई है तेज
सूची में बदलाव की चर्चा भी तेज है. लेकिन 25 जिलों के जिला अध्यक्ष की नियुक्ति में कांग्रेस के "सिस्टम "पर बहुत बड़ा सवाल खड़ा हो गया है. कांग्रेस की यह कैसी रायशुमारी थी कि जिला अध्यक्ष की सूची जारी होने के चौबीस घंटे के भीतर "ज्वालामुखी" फटने लगी. सवाल उठ रहे कि क्या झारखंड में कांग्रेस का संगठन सृजन कार्यक्रम केवल "आई वाश" था? क्या जिला अध्यक्षों के लिए रायशुमारी में प्रदेश के नेताओं को दूर रखने का केवल नाटक किया गया था? क्या पर्यवेक्षक की रिपोर्ट नहीं मानी गई? क्या झारखंड के कांग्रेस के नेताओं के दबाव पर नेतृत्व झुक गया? यह सब ऐसे सवाल है, जो शनिवार को झारखंड में कांग्रेस के 25 जिला अध्यक्षों की सूची जारी होने के बाद किए जा रहे है. जारी सूची में कुछ नए हैं ,तो कुछ पुराने भी दिख रहे है.
जिनका "खूंटा" मजबूत था, वह फिर से जिला अध्यक्ष बन गए है
जिनका "खूंटा" मजबूत था, वह फिर से जिला अध्यक्ष बन गए है. सूत्र बताते है कि इस सूची में झारखंड के लगभग सभी बड़े नेताओं की पसंद का ख्याल रखा गया है. कांग्रेस सूत्र बताते हैं कि जामताड़ा के दीपिका बेसरा को मंत्री इरफान अंसारी की पसंद पर फिर से जिला अध्यक्ष बनाया गया है. धनबाद के जिला अध्यक्ष संतोष कुमार सिंह के लिए भी कांग्रेस के विधायक अनूप सिंह पैरवी कर रहे थे. बता दे कि संगठन सृजन कार्यक्रम से प्रदेश के नेताओं को लगभग दूर रखा गया था. लेकिन सूची जो सामने आई है, उससे यह नहीं कहा जा सकता कि नेताओं का प्रभाव इस सूची पर नहीं दिख रहा है. यह अलग बात है कि झारखंड के दो विधायकों को भी जिला अध्यक्ष बनाया गया है. एक पूर्व मंत्री भी जिला अध्यक्ष बने है. रामगढ़ में विधायक ममता देवी को जिला अध्यक्ष बनाया गया है, जबकि सिमडेगा में विधायक भूषण बाड़ा को जिला अध्यक्ष बनाया गया है. वहीं पूर्व मंत्री जेपी पटेल को हजारीबाग का जिला अध्यक्ष बनाया गया है. रामगढ़ में भी विवाद की बात कही जा रही है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो

Recent Comments