रांची ( RANCHI) - झारखंड की बेटियां अब एथलेटिक्स में विदेशों में भी परचम लहरा रही हैं. गुमला जिले के रहने वाली सुप्रिती कछप्प और आशा किरण बारला अमेरिका के काली शहर में 1 अगस्त से 5 अगस्त तक आयोजित होने वाले विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भाग लेंगी. गुमला जिले के घाघरा प्रखंड की बुरूहू गांव की रहने वाली 19 वर्षीय सुप्रीति कच्छप ने नेशनल रेकॉर्ड के साथ एथलेटिक्स में शानदार प्रदर्शन किया है. सुप्रीति कच्छप ने हरियाणा के पंचकुला में आयोजित खेलो इंडिया यूथ गेम्स में महिला कैटेगरी के 3000 मीटर की दौड़ में नेशनल रिकॉर्ड के साथ गोल्ड मेडल जीता था. गुमला की ही एक और बेटी आशा किरण बारला ने भी खेलो इंडिया यूथ गेम्स में 800 मीटर दौड़ प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतकर झारखंड को दूसरा गोल्ड मेडल दिलाया था. आशा कामडारा प्रखंड क्षेत्र के नावाडीह गांव की रहने वाली है.
सुप्रीति कच्छप ने 2 अप्रैल से 6 अप्रैल तक केरल में आयोजित 25 वीं राष्ट्रीय फेडरेशन कप सीनियर एथलेटिक चैंपियनशिप के 5000 मीटर की दौड़ की स्पर्धा में 16:33:09 का समय निकाला था. गुमला की ही आशा किरण बारला ने 2 से 4 जून तक गुजरात के नाडियाड में आयोजित 20वीं राष्ट्रीय फेडरेशन कप अंडर-20 एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 800 मीटर की दौर में 2:06:78 का समय निकालकर गोल्ड मैडल अपने नाम किया और अंडर-20 वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप के लिए क्वालीफाई किया था.
नक्सलियों ने कर दी थी पिता की हत्या
सुप्रीति के पिता आयुर्वेद चिकित्सक थे और विभिन्न गांव में घूम कर ग्रामीणों की सेवा करते थे. जब सुप्रीति सिर्फ डेढ़ साल की थी, तो सुप्रीति के पिता की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी. इसके बाद पूरे परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. सुप्रीति की मां ने जैसे-तैसे उसे जारी प्रखंड के बुकरूडीपा प्रभात मिशनरी स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा के लिए नामांकन कराया. बाद में गुमला जिला मुख्यालय में चल रहे संत पातरिक्स स्कूल में सुप्रीति का एडमिशन हुआ.
सुप्रीति की सफलता के पीछे छिपी है कड़ी मेहनत और संघर्ष
गुमला जिले में वर्ष 2015 में आयोजित खेलकूद प्रतियोगिता में सुप्रीति कच्छप की मेहनत और क्षमता पर नजर एक कोच प्रभात रंजन तिवारी की पड़ी. कोच ने बाद में उसे तराशने का दायित्व अपने जिम्मे ले लिया. उन्होंने मिशनरी स्कूल के प्राचार्य से ये आग्रह किया कि वे इस बच्ची को एथलेटिक्स प्रशिक्षण सेंटर में भेज दें, स्कूल के प्रिंसिपल ने भी सहमति जता दी और यही से व्यवस्थित तरीके से सुप्रीति का प्रशिक्षण शुरू हुआ.
मिट्टी के घर में रहता है आशा किरण का परिवार
आशा किरण बारला की घर की माली हालत शुरू से ही ठीक नहीं है. उसका परिवार मिट्टी के कच्चे मकान में रहता है. घर के सारे लोगो का नाम भी राशन कार्ड में नहीं जुड़ा है. आशा के गांव में पानी की समस्या है.
आशा किरण बारला बचपन से ही पढ़ाई के साथ-साथ खेल में भी काफी ध्यान देती थी. उसके परिवार के लोगो ने आशा का सपोर्ट किया और खेल को हमेशा बढ़ावा दिया. जिसकी वजह से आज वह यह मुकाम हासिल कर पाई है.
रिपोर्ट -- नीरज कुमार, रांची

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