टीएनपी डेस्क ( TNP DESK):  सेना में बहाली के लिए केंद्र सरकार की नई अग्निपथ योजना का पूरे देश में जबरदस्त विरोध हो रहा है, विरोध ऐसा कि आंदोलनकारी छात्र सरकारी संपतियों का नुकसान कर रहे हैं, ट्रेन के बोगियों और इंजन में आग लगा रहे हैं, रेलवे स्टेशनों पर जमकर आगजनी कर रहे हैं. छात्रों को उकसाने का आरोप कोचिंग सेंटर के संचालकों पर लग रहा है.  राजनीतिक दलों पर भी इल्जाम है कि विपक्षी नेता युवाओं को हथियार बना रहे हैं. लेकिन सवाल उठता है कि इस हिंसात्मक विरोध से किसका फायदा होगा ? छात्रों का, कोचिंग संचालकों का या राजनीतिक दलों का ? राज्य सरकार और पुलिस प्रशासन अब कड़ाई के साथ कार्रवाई करने में जुट गए हैं, डेढ़ सौ से अधिक प्राथमिकी दर्ज की गई है, सैकड़ों  छात्रों की गिरफ्तारी हुई है, सैकड़ों की गिरफ्तारी होनी है, ऐसे में छात्रों का भविष्य क्या होगा.  सेना का सपना तो छोड़िए, क्या वे किसी और सरकारी नौकरी के काबिल रह पाएंगे ?   
 
कोचिंग सेंटरों की बड़ी भूमिका

बिहार में विरोध की चिंगारी सबसे पहले भड़की. कहा जा रहा है कि कोचिंग सेंटरों के संचालक सक्रिय हो गए. बिहार के बाद दूसरे राज्यों में भी कोचिंग सेंटरों के संचालकों ने कमान संभाल ली. सेना बहाली में नई योजना के लागू होते ही विरोध में वे वीडियो बना कर यू ट्यूब पर लोड करने लगे. जिससे छात्रों में भ्रम फैला और छात्र सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन करने लगे. कोचिंग संचालकों पर छात्रों के बीच भ्रम फैलाने और  उनको आंदोलन के लिए उकसाने का आरोप है. जिससे बिहार में आंदोलन सबसे अधिक हिंसात्मक हुआ. इसके पीछे छात्रों के भविष्य की चिंता कम और अपनी चिंता अधिक थी.

बिहार में सेंटरों की संख्या अधिक

दरअसल बिहार में राजधानी पटना सहित कई जिला मुख्यालय में सैकड़ों कोचिंग सेंटर हैं, जो सेना अभ्यर्थियों से मोटी रकम वसूल कर उन्हें प्रशिक्षण देते हैं. केंद्र सरकार की नई सेना बहाली योजना से सबसे अधिक उन्हें ही नुकसान होने वाला था. क्योंकि अगर उम्र कम होने के कारण बगैर कोचिंग के छात्र खुद की तैयारी से ही सेना में भर्ती हो जाएंगे, तो कोचिंग संस्थानों पर निर्भरता उनकी कम हो जाएगी. छात्र मोटी रकम फीस देने से बच जाएंगे. इसलिए कोचिंग सेंटरों ने अपने फायदे के लिए छात्रों को नई योजना के बारे में पहले भ्रम फैलाया और फिर उन्हें आंदोलन के लिए उकसाया. 

राजनीतिक दल पहले पीछे से, फिर आए सामने 
 

छात्रों के विरोध के समर्थन में सबसे पहले कम्यूनिस्ट पार्टी के छात्र संगठन सामने आए, इसके बाद कई राजनीतिक दल पीछे से पहुंचे. बिहार बंद को भी विपक्ष ने समर्थन दिया. लेकिन अग्निपथ के विरोध में उनकी बयानबाजी जारी रही. फिर क्या था छात्रों का आंदोलन और ज्यादा उग्र गया, सब तरफ से हिंसा की खबरें आने लगी.  इसमें आंदोलनकारी छात्रों की भीड़ की आड़ में राजनीतिक कार्यकर्ता अधिक हिंसा फैलाने लगे. दरअसल राजनीतिक दलों को किसी भी विरोध प्रदर्शन के लिए भीड़ जुटाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है, लेकिन यहां तो मुफ्त में बगैर मेहनत के हजारों की भीड़ मौजूद थी, फिर छात्रों के आंदोलन के बहाने उन्हें मोदी सरकार का विरोध करने का अवसर मिल गया. सेना बहाली के लिए अग्निपथ योजना सही है या नहीं, इस पर चर्चा किया जाना चाहिए. लेकिन विरोध का जो हथकंडा राजनीतिक दल अपना रहे हैं, वह कहीं से उचित नहीं हैं. इसमें सेना के अभ्यर्थियों को सबसे अधिक नुकसान उठाना पडेगा, हिंसा में शामिल पाए जाने पर उन पर कानूनी शिकंजा कसेगा, गिरफ्तारी होगी, जेल जाएंगे, उसके उनका क्या भविष्य होगा ? इस पर भी राजनीतिक दलों को गौर करना होगा.