रांची(RANCHI): मांडर उपचुनाव में आज वोटिंग हो रही है. वोटिंग के साथ ही चुनाव में खड़े सभी प्रत्याशियों की किस्मत अब EVM में कैद होने जा रही है, जो 26 जून को मतगणना के दिन खुलेगी. इस चुनाव के शुरुआत में तो टक्कर बीजेपी और कांग्रेस के बीच मानी जा रही थी. मगर, बाद में बीजेपी के बागी नेता देव कुमार धान के चुनाव में आने से लड़ाई त्रिशंकु बन गई है. हालांकि, राजनीतिक जानकारों का मानना है कि धान इस चुनाव में जीत हासिल करें या ना करें, मगर, बीजेपी और कांग्रेस का खेल जरूर बिगाड़ सकते हैं. ऐसा इसलिए भी कहा जा रहा है क्योंकि देव कुमार धान भले ही निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर इस चुनाव में उतरे हैं, मगर, एआइएमआइएम ने उन्हें अपना समर्थन दिया है और उनके लिए चुनाव प्रचार करने एआइएमआइएम के चीफ असदउद्दीन ओवैसी खुद मांडर पहुंचे थे. ऐसे में ये समझना जरूरी है कि देव कुमार धान इस चुनाव में किसका खेल बिगाड़ने वाले हैं. इसके लिए हमें 2019 विधानसभा चुनाव का परिणाम समझना होगा.
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2019 विधानसभा का रहा था कुछ ये परिणाम
2019 विधानसभा चुनाव में बंधु तिर्की ने चुनाव में जीत दर्ज की थी. हालांकि, उन्होंने झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर ये चुनाव जीता था, मगर, बाद में वे कांग्रेस में शामिल हो गए. उन्हें इस चुनाव में 92 हजार से अधिक वोट मिले थे. वहीं देव कुमार धान ने बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ा था, जहां देव कुमार धान को 69,364 वोट मिले थे और वे दूसरे नंबर पर रहे थे, तो वहीं शिशिर लकड़ा ने एआइएमआइएम के टिकट पर चुनाव लड़ा था. शिशिर लकड़ा को भी 23 हजार से ज्यादा वोट मिले थे.
देव कुमार धान उस चुनाव में दूसरे नंबर पर तो रहे थे. मगर, उन्हें मिले वोट को उनका वोट नहीं माना जा सकता, क्योंकि उन्होंने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा था और क्षेत्र में बीजेपी का जनाधार भी है, ऐसे में ये वोट देव कुमार धान से ज्यादा बीजेपी के थे. वहीं दूसरी ओर शिशिर लकड़ा को जो वोट मिले थे वो भी उनसे ज्यादा एआइएमआइएम के वोट माने जा सकते हैं. क्योंकि ओवैसी की ओर अल्पसंख्यक समुदाय का झुकाव रहा है. ऐसे में इस बार भी माना जा रहा है कि ओवैसी अल्पसंख्यक वोट में सेंध लगा सकते हैं. दूसरी ओर एआइएमआइएम के पिछले बार के उम्मीदवार शिशिर लकड़ा ने नामांकन दाखिल करने के तुरंत बाद ही अपना नामांकन वापस ले लिया और अपना समर्थन देव कुमार धान को दे दिया. ऐसे में उन्हें जो पिछली बार वोट मिली थी, वो देव कुमार धान के झोली में जाती हुई दिख सकती है. इससे बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों पर खासा असर पड़ सकता है.
कांग्रेस पर क्या फर्क पड़ेगा?
अगर कांग्रेस की बात करें तो इस बार पार्टी ने पूर्व विधायक बंधु तिर्की की बेटी शिल्पी नेहा तिर्की को चुनाव में खड़ा किया है. शिल्पी नेहा तिर्की राजनीति में बिल्कुल नई हैं और उन्हें राजनीति का बिल्कुल भी अनुभव नहीं है. मगर, उनके पिता बंधु तिर्की की इलाके में खासा पकड़ है और इसका फायदा शिल्पी नेहा को मिल सकता है. इसके साथ ही कांग्रेस और झामुमो के गठबंधन का फायदा भी शिल्पी नेहा को मिल सकता है. मगर, देव कुमार धान के चुनाव लड़ने से और धान को एआइएमआइएम का साथ मिलने से जो अल्पसंख्यक समुदाय के वोटों का झुकाव कांग्रेस की तरफ था, उसमें सेंध लगती हुई दिखाई पड़ती है. अल्पसंख्यक समुदाय का जितना झुकाव देव कुमार धान की ओर होगा, उतना ही ज्यादा नुकसान कांग्रेस प्रत्याशी को होने वाला है. वहीं दूसरी ओर देव कुमार धान आदिवासी समाज से आते हैं और उन्हें वोट देने वालों में ज्यादातर आदिवासी समाज के लोग ही है. वैसे बात करें तो आदिवासी समाज का ज्यादातर वोट झामुमो को मिलता है. इस चुनाव में झामुमो, कांग्रेस प्रत्याशी का समर्थन कर रही है और खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन शिल्पी नेहा तिर्की के लिए वोट मांगने मांडर गए थे. तो इससे ये समझा जा सकता है कि देव कुमार धान कांग्रेस प्रत्याशी के वोट काटते हुए नजर आ सकते हैं.
इससे बीजेपी पर क्या फर्क पड़ेगा?
देव कुमार धान ने बीजेपी से बगावत कर इस बार चुनाव लड़ा है और उन्होंने दावा किया है कि ओवैसी के साथ आने से और उनके इस चुनाव में प्रचार करने से उनकी जीत पक्की है. ऐसे में अगर आकलन किया जाए तो ओवैसी के देव कुमार धान के साथ आने से उन्हें अल्पसंख्यक समुदाय का साथ मिला है. मगर, इससे बीजेपी को नुकसान होने की बजाए फायदा ही पहुंचने वाला है. क्योंकि अगर समुदाय विशेष वोट बैंक की बात करें तो अल्पसंख्यक समुदाय के ज्यादा वोट बीजेपी की बजाए कांग्रेस उम्मीदवार को पड़ने की संभावना है. ऐसे में अगर ये वोट बंट कर देव कुमार धान को मिलता है तो इसका सीधा फायदा बीजेपी उम्मीदवार गंगोत्री कुजूर को होगा. ऐसे में कहा जा सकता है कि ओवैसी के इस चुनाव में प्रचार के लिए उतरने से बीजेपी को नुकसान होने के बजाए फायदा ही होने वाला है.
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