रांची (RANCHI): झारखंड के सत्ताधारी विधायक तीन बस में सवार होकर रांची से बाहर चले गए हैं. अब ये सिर्फ रांची से बाहर ले जाए जा रहे हैं या झारखंड से ही बाहर- इसकी स्पष्ट सूचना नहीं है. लेकिन इसकी नौबत क्यों आ पड़ी है. चलिये हम इसको समझने की कोशिश करते हैं. जब हेमंत सोरेन की अगुवाई में सरकार सत्तानशीन हुई थी, उसके कुछ महीने बाद ही झारखंड में ऑपरेशन लोटस की अफवाह चलने लगी थी. पिछले साल जुलाई में इसका पर्दाफाश हुआ, जब खबर आई कि कांग्रेस विधायक इरफान अंसारी, उमा शंकर अकेला और निर्दलीय विधायक अमित यादव दिल्ली के एक होटल में सरकार गिराने में शामिल लोगों से मिले. मिलने वालों में महाराष्ट्र के भाजपा नेता व पूर्व ऊर्जा मंत्री चंद्रशेखर राव बावनकुले और चरण सिंह शामिल थे. बाद में यह बात गलत निकली कि चंद्रशेखर राव बावनकुले न विधायक हैं और ना ही मंत्री रहे. तब भी बेरमो विधायक जयमंगल सिहं उर्फ अपून सिंह ने थाना में रपट दर्ज कराई और रांची में भी दो लोग हिरासत में लिये गए. बाद में इनमें से एक आरोपी के बारे में पता चला कि वो बोकारो में सब्जी बेचता है.

राष्ट्रपति चुनाव में झारखंड की पहली आदिवासी राज्यपाल रहीं द्रौपदी मुर्मू को जब एनडीए ने अपना प्रत्याशी बनाया तो झामुमो ने उनके न समर्थन की घोषणा की बल्कि उसके विधायक व सांसद ने उन्हें वोट भी किया. लेकिन तब कांग्रेस के 11 विधायकों के क्रास वोटिंग की खबर ने तूफान खड़ा कर दिया था. क्योंकि कांग्रेस ने यूपीए के प्रत्याशी यशवंत सिंह को वोट करने की अपील की थी. इस क्रास वोटिंग के बाद ही राजनीतिक हलकों में खबर चलने लगी कि भाजपा कांग्रेस के विधायकों को पटाने में लगी है. वो बाहर ले जाए जा सकते हैं. इन चर्चाओं के बीच जब 31 जुलाई को पश्चिम बंगाल के हावड़ा में कांग्रेस पार्टी के तीन विधायकों की गाड़ी से भारी मात्रा में कैश मिलने की खबर से हड़कंप मच गया. पुलिस ने रकम 49 लाख रुपये बताई. उन्हें जेल जाना पड़ा और पिछले दिनों कोलकाता हाईकोर्ट ने इन्हें इस शर्त के साथ जमानत दी है कि तीन महीने तक ये बंगाल से बाहर नहीं जाएंगे. इन विधायकों में जामताड़ा विधायक इरफान अंसारी, खिजरी विधायक राजेश कच्छप और कोलेबिरा विधायक नमन विक्सल कोंगाड़ी शामिल हैं. इनपर आरोप है कि ये सभी भाजपा से मिलकर सरकार गिराने की कोशिश में थे. इस बार भी अपून सिंह ने तुरंत थाना में मामला दर्ज करा दिया. उसके बाद असम के सीएम हेमंत बिस्वा सरमा के साथ जब अनूप सिंह की तस्वीर वायरल हुई तो और मामले ने तूल पकड़ा. इस दरम्यान झामुमो और कांग्रेस लगातार आरोप लगाते रहे हैं कि भाजपा सरकार को अस्थिर करने की लगातार कोशिश कर रही है.

इधर, आला अधिकारयों और झमुमो नेताओं के यहां ईडी के छापे और गिरफ्तारी ने सरकार पर दबाव बनाया. लेकिन अगुआ हेमंत सोरेन ने कहा कि किसी भी दबाव में झुकने वाली सरकार नहीं है. तीन दिनों पहले राजधानी में सुबह जहां हल्की ठंडक थी, तभी दिल्ली से उड़ी एक सूचना ने राजनीतिक तपिश बढ़ा दी. दोपहर होते-होते इसमें इज़ाफा ही हुआ. दरअसल खबर भी तो बेहद खास है. खबर यह थी कि मुख्यमंत्री की सत्ता पर संकट के बादल छा चुके हैं. उनकी विधायकी ही नहीं उनके पास से आला पद भी छिन सकता है. इसकी वजह यह है मंत्री पद पर रहते हुए उनका खान लीज का पट्टा हासिल करना. राज्यपाल ने निर्वाचन आयोग से उनकी सदस्यता रद्द करने के लिए आग्रह किया था. मामले की सुनवाई के बाद पिछले दिनों आयोग ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. उसकी रिपोर्ट आयोग ने राज्यपाल को सौंप दी है, जिसमें हेमंत सोरेन की सदस्यता रद्द करने के साथ तीन या छह साल तक के लिए डिबार भी करने की बात कही जा रही थी.

लेकिन जब राज्यपाल से पूछा गया तो उन्होंने किसी भी पत्र से इनकार किया. अब तक खबरें सूत्र के हवाले से चलती रही. इसे भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के ट्वीट ने और हवा दी. कल उन्होंने लिखा कि विधायकों को छत्तीसगढ़ ले जाया जा रहा है. यह खबर भी दिनभर चलने लगी. दूसरी ओर इधर तीन दिनों से लगातार सुबह-शाम मुख्यमंत्री के आवास में यूपीए विधायकों की बैठकें चलती रहीं. कल शाम तक वही सूत्रों के हवाले से खबर आई कि राजभवन को निर्वाचन आयोग का पत्र मिल गया है. उसका जवाब भी राज्यपाल ने निर्वाचन आयोग को भेज दिया है, जिसमें हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द करने की अनुशंसा की गई है. लेकिन उन्हें डिबार नहीं किया गया है. कल ही बैठक के बाद सीएम नेतरहाट सरकारी दौरे पर चले गए, वहां जमकर भाजपा पर बरसे. राज्यपाल को भी घेरे में लिया. कहा कि राजभवन से साजिशें हो रही हैं.

आज सुबह जब सीएम आवास बैठक के लिए सभी विधायकों ने पहुंचना शुरू किया तो कुछ के वाहन से सामान भरे हुए बैग मिले, जिसने इस खबर को बल दिया कि विधायकों को बाहर भेजा जा रहा है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर और कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने भी इशारे में इसकी पुष्टि की और कुछ ही देर में तीन बस सभी विधायकों को लेकर रवाना हो गई. ये कहां ले जाए जाएंगे. इसकी प्रमाणिक जानकारी किसी के पास नहीं है. अलग-अलग खबरें मीडिया में चल रही हैं. कोई रांची के आसपास किसी रिसॉर्ट में जाने की बात कह रहा है, तो कोई इनके बिहार, बंगाल या छत्त्सगढ़ जाने की बात कह रहा है.

अब इन विधायकों को झारखंड से बाहर ले जाने की नौबत क्यों आ पड़ी है. इसके पीछे वाहिद वजह है, ऑपरेशन लोटस का खौफ. इधर यह चर्चा आम हो गई है कि भाजपा जहां चुनाव में जीतकर नहीं आ पाती है, वहां दूसरे दलों के विधायकों को फोड़कर सरकार बना लेती रही है. इस तर्क के लिए कर्नाटक, मध्यप्रदेश, गोवा और, महाराष्ट्र का उदाहरण दिया जा ता है. कहा जा रहा है कि बिहार में भी ऐसी कोशिश की गई थी, जिसे नीतिश कुमार ने भांप लिया और यूपीए के साथ जाकर मिल गए. झारखंड में इसके भय की इधर शुरुआत जब हुई तब निर्वाचन आयोग में लीज मामले में मंत्री पद रहते हुए लाभ उठाने की सुनवाई हुई तो उसी दिन आशंका मजबूत हो गई थी कि हेमंत सोरेन की विधायकी जा सकती है. उस दिन अचानक यूपीए विधायकों की बैठक हुई. हालांकि तब कहा गया कि राज्य में सुखाड़ की स्थिति पर ही बैठक में विचार-विमर्श हुआ. लेकिन अंदर की खबर ये उजागर हुई थी कि सभी विधायकों से उस समर्थन पत्र पर हस्ताक्षर करा लिये गए हैं, जिसे किसी अनहोनी पर राज्यपाल को सौंपा जा सके. इस बीच राज्यपाल रमेश बैस दिल्ली चले गए.

यदि हेमंत सोरेन की विधानसभा की सदस्यता रद्द होती है, तो उनके मुख्यमंत्री पद पर रहने पर कोई दिक्कत नहीं होगी. सिर्फ उन्हें फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ लेनी होगी. उसके बाद छह माह के अंदर चुनाव जीतकर उन्हें विधायक बनना होगा. लेकिन डर है कि कहीं फ्लोर टेस्ट की जरूरत पड़ गई तो कुछ विधायक नदारद न हो जाएं. कहीं भाजपा अपने दांव में सफल न हो जाए. और अगर हेमंत की जगह किसी दूसरे को मुख्यमंत्री बनाया गया तब भी विधायकों  के रुष्ट होने और छिटक जाने की आशंका हेमंत सोरेन को डरा रही है.