Ranchi-किसानों के दर्द के साथ अपनी आवाज मिलाते हुए संसद भवन को गिराकर खेत बनाने का हुंकार भरने वाले, तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक की तुलना तालिबान से करने की जुर्रत करने वाले, और वर्ष 2014 में जब देश में असहिष्णुता की आग तेज होती दिखी, तो साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का दम खम दिखलाने वाले मुनव्वर राना को आज सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया. ज़िंदगी तू कब तलक दर-दर फिराएगी हमें, टूटा-फूटा ही सही घर-बार होना चाहिए” के लेखक की इस अंतिम यात्रा में कंधा देने के लिए प्रसिद्ध लेखक जावेद अख्तर ने भी मुम्बई से उड़ान भरी, राहुल गांधी से लेकर अखिलेश यादव ने अपना शोक व्यक्त किया. अखिलेश यादव उनके घर पर भी पहुंचे, जहां अखिलेश ने “मां” पर लिखी मुनव्वर की शायरी “छू नहीं सकती मौत भी आसानी से इसको, यह बच्चा अभी माँ की दुआ ओढ़े हुए है” को याद कर बेहद भावूक नजर आयें.
सत्ता से टकराने की फितरत के साथ पैदा हुए थें मनोव्वर
ध्यान रहे कि मुनव्वर चंद उन लेखकों में थें, जो सत्ता के खिलाफ जनता की आवाज को मुखर करते नजर आते थें. उनके लिए यह कभी मायने नहीं रहा कि देश की कुर्सी किसके पास है, उनके अंदर तो बस ‘जनता की आग’ जलती रहती थी, और यही कारण था कि वह हर दौर में सत्ता से टकराते नजर आये, सत्ता बदलती रही,उनके दुश्मन बदलते रहें, लेकिन उनकी मुखालफत का भी एक बड़ा ही प्यारा अंदाज था, जिसे सत्ता पर बैठे सियासतदान भी पसंद करते थें, और यह मुनव्वर जैसे शख्सियत के दम की ही बात थी कि पीएम मोदी की नीतियों का वह आलोचक रहें, जब पीएम मोदी के मां का देहांत हुआ तो उसी मुनव्वर राना ने जब भी किसी मां की मौत होती है तो मुझे लगता है कि मेरी मां चली गयी. यह था मुनव्वर का अंदाज. वह भी उस दुख की घड़ी में पीएम मोदी के साथ गमगीन नजर आयें.
यहां मनोव्वर का एक रुप बरबस याद आता है, जब इंदौर किसी अस्पताल में उनके पैर का ऑपेरशन हुआ था, लेकिन इतने बड़े शायर होने के बावजूद उन्हे एक अदद बेड के लिए संधर्ष करना पड़ रहा था, तब उसी अस्पताल से मुनव्वर राना ने लिखा था ‘मैं अपने आपको इतना समेट सकता हूं, कहीं भी कब्र बना दो, मैं लेट सकता हूं”
झारखंड का नया खेल ईडी! आओ खेंले ईडी-ईडी, सीएम तो सीएम अब तो हर कोई खास खेल रहा यही खेल
आठवें समन के बाद बंद लिफाफा पहुंचा ईडी दफ्तर, झारखंड में एक बार फिर से सियासी हलचल तेज
Recent Comments