रांची(RANCHI): राज्य के सीएम हेमंत सोरेन का नाम माइनिंग लीज और शेल कंपनी मामले से जुड़ गया है. इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट और झारखंड हाई कोर्ट में चल रही है. दरअसल, हेमंत सोरेन पर आरोप है कि उन्होंने अपने करीबियों से शेल कंपनियों में निवेश कराया है. आपको बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने राज्य के गवर्नर रमेश बैस के समक्ष सीएम हेमंत सोरेन से जुड़े सारे कागजात सौंपे थे. जिसके बाद गवर्नर ने मामला भारत निर्वाचन आयोग ( Election Commision of India) को दिया, जिसके बाद केस फाइल हुआ. हालांकि अभी तक इस पर निर्णय नहीं आया है. आज हम आपको बताएंगे कि आखिर शेल कंपनी होती क्या है, कैसे होता है इसका रजिस्ट्रेशन और शेल कंपनियां काम कैसे करती हैं.
क्या होती है शेल कंपनी
शेल कंपनियां ऐसी कंपनियां होती हैं जो सिर्फ कागजों पर होती हैं और वो किसी तरह का आधिकारिक कारोबार नहीं करती हैं. ऐसी कंपनियों का इस्तेमाल अवैध पैसे की लेन-देन में होता है. ये कंपनियां केवल कागजों पर एंट्रीज दर्ज की गई होती हैं. ऐसे कंपनियों में आमतौर पर कोई काम नहीं होता है. हालांकि, कंपनीज एक्ट में शेल कंपनी शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है.
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रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया
शेल कंपनियों का भी आम कंपनियों की तरह ही होता है. आम कंपनियों की तरह इनमें भी डायरेक्टर्स होते हैं, लेकिन कंपनी के मालिक का नाम गुप्त रखा जाता है. इसके अलावा आम कंपनियों की तरह रिटर्न फाइल की जाती है. शेल कंपनियों में किसी तरह की कोई काम नहीं होती, सिर्फ कागजों पर एंट्रीज दर्ज किया जाता है.
शेल कंपनी का काम
शेल कंपनी का काम ब्लैक मनी को सफेद करना है. ऐसे कंपनियों में टैक्स को बेहद कम करने के साथ-साथ उसे वाइट बनाने का काम किया जाता है. इसमें पूरे पैसे को एक्सपेंस के तौर पर दिखाया जाता है, जिससे टैक्स भी नहीं लगता है. ऐसी कंपनियां न्यूनतम पेड अप कैपिटल के साथ काम करती है, साथ ही इनका डिविडेंड इनकम जीरो होता है. साथ ही टर्नओवर और ऑपरेटिंग इनकम भी बहुत कम होती है.
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