टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : नहाय खाय के साथ ही लोक आस्था का महापर्व छठ की शुरुआत हो चुकी है. छठ महापर्व को मुख्य रूप से संतान की लंबी उम्र के लिए किया जाता है. हिंदू धर्म में भगवान भास्कर को सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है. उनकी उपासना से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. छठ एकमात्र ऐसा पर्व है, जिसमें डूबते और उगते सूर्य की पूजा की जाती है. वहीं इस चार दिनों तक चलने वाले पर्व के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है. इस पूजा में खरना का विशेष महत्व है. आइए हम जानते हैं कि खरना क्या है और इसे करने की विधि क्या है.
खरना क्या है
खरना कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है. खरना में दिन भर व्रत के बाद छठव्रती रात को पूजा के बाद गुड़ से बनी खीर खाकर, उसके बाद से अपना 36 घंटे लंबे निर्जला व्रत की शुरुआत करते हैं. खरना को लोहंडा भी कहा जाता है. खरना खास होता है, क्योंकि व्रती इसमें दिन भर व्रत रखकर रात में खीर रूपी का प्रसाद ग्रहण करते हैं.
खरना का महत्व और विधि
खरना के दिन छठ व्रती दिन भर उपवास रख कर शाम को पूजा करने के बाद चावल, दूध और गुड़ से बने खीर के साथ रोटी ग्रहण करते हैं. छठ पूजा में खरना के प्रसाद का विशेष महत्व है. खरना का प्रसाद बनाने में साफ़ सफाई और शुद्धता का खास तौर पर ख्याल रखा जाता हैं. इस दिन प्रसाद के रूप में चावल, शुद्ध गाय का दूध और गुड़ के मिश्रण से खीर बनाया जाता हैं. इस प्रसाद में चावल और दूध चंद्रमा का प्रतीक है. वहीं गुड़ सूर्य देव का प्रतीक है. तीनों के मिश्रण से तैयार होने वाले इस खीर को रसिया भी बोलते हैं. खरना का वास्तविक अर्थ है शुद्धिकरण. इसे लोहंडा के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन छठ पूजा का विशेष प्रसाद बनाने की परंपरा है. छठ पर्व को बहुत कठिन माना जाता है और इसे बहुत सावधानी से किया जाता है. मान्यता है कि जो भी व्रती छठ पर्व के सभी नियमों का पालन कर सूर्य भगवान की आराधना करते हैं, उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. नहाय-खाय वाले दिन घर को अच्छे से साफ कर व्रती अगले दिन खरना की तैयारी में लग जाते हैं. खरना वाले दिन व्रती पूरे दिन का व्रत रखते हैं. इस दिन व्रती शाम को सूर्य भगवान के पूजा के समय ही नहाते और मुंह धोते हैं. इसके बाद घर में पूरे साफ-सफाई के साथ प्रसाद बनाया जाता है. इस प्रसाद को व्रती खुद अपने हाथों से बनाते हैं. इस प्रसाद को बनाने से पहले नए चूल्हे का निर्माण किया जाता है और उसी पर प्रसाद बनाया जाता है. सबसे पहले व्रती भगवान सूर्य को प्रसाद अर्पण करते हैं, उसके बाद वो खुद प्रसाद ग्रहण करते हैं. उसके बाद इस प्रसाद को पूरे परिवार वालों और गांववालों के बीच बांटाजाता है. इस प्रसाद को लोग दूर-दूर से खाने घर आते हैं. इस प्रसाद का ऐसा महत्व है कि लोग बिन बुलाए भी इसे ग्रहण करने घर आते हैं और व्रती बड़ी खुशी से उन सभी लोगों को प्रसाद खिलाते हैं. खरना के प्रसाद को ग्रहण करते के लिए रिश्तेदारों के साथ आस पास के लोगों को भी आमंत्रित किया जाता हैं. मान्यता है कि इसे खाने से मानसिक और चरम रोग से निजात मिलती हैं. वहीं लोगों के बीच भी खरना के प्रसाद को खाने के लिए खास उत्साह देखा जाता हैं. लोग भी बड़ी ही श्रद्धा और आस्था के साथ रसिया को ग्रहण करते हैं.
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