टीएनपी डेस्क(TNP DESK): प्रगतिशील हिंदी कविता के दौर में एक त्रयी बहुत विख्यात हुई. जिसमें नागार्जुन, शमशेर और त्रिलोचन का नाम बहुत सम्मान से लिया जाता है. हालांकि इसमें कुछ लोग केदार के नाम को भी शामिल करते हैं, तब एक पुख्ता काव्य-चतुर्भुज आकार ले लेता है. इसमें त्रिलोचन की आज हिंदी संसार जयंती मना रहा है. इन्हें त्रिलोचन शास्त्री भी कहा गया. लेकिन इनका असली नाम वासुदेव सिंह था. इनका जन्म 20 अगस्त 1917 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में कटघरा पट्टी के चिरानी पट्टी में हुआ था. उन्हें हिंदी सॉनेट का साधक माना जाता है. कविता संग्रह 'ताप के ताये हुए दिन के लिए' 1981 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाज़ा गया था.
यूपी के एक छोटे से गांव से शिखर तक की यात्रा
वासुदेव ने 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय' से अंग्रेज़ी में एम.ए. किया. इसके बाद लाहौर से संस्कृत में 'शास्त्री' की सनद हासिल की थी. उन्हें शुरुआत में काशी की साहित्यिक और सांस्कृतिक परंपरा ने प्रभावित किया. बाद में वे प्रगतिवाद की ओर उन्मुख हुए. उन दिनों विष्णु चंद्र शर्मा 'कवि' टाइटल से लघु पत्रिका बनारस से ही निकालते थे. त्रिलोचन की कविताएं उसमें छपा करती थीं. वे बाज़ारवाद के प्रबल विरोधी थे. हालांकि उन्होंने लेखन में प्रयोगधर्मिता का समर्थन किया. उनका मानना था कि भाषा में जितने प्रयोग होंगे, वह उतनी ही समृद्ध होगी. त्रिलोचन ने हमेशा ही नवसृजन को बढ़ावा दिया. वह नए लेखकों को प्रेरित करते थे.
कई भाषाओं के रहे ज्ञाता, पत्रकारिता भी की
त्रिलोचन ने बहुत पढ़ा. उनके पास हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेज़ी, अवधी, अरबी और फ़ारसी समेत देशी-विदेशी कई भाषाओं का ज्ञान था. साहित्य-संस्कृति के अलावा उनके पास इतिहास और प्रकृति विज्ञान का ख़ज़ाना था. पत्रकारिता के क्षेत्र में भी वे ख़ासे सक्रिय रहे. उन्होंने 'प्रभाकर', 'वानर', 'हंस', 'आज' और 'समाज' जैसी पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया.
हिंदी छंद में सॉनेट को ढाला
त्रिलोचन शास्त्री वर्ष 1995 से 2001 तक जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे. इसके अलावा वाराणसी के 'ज्ञानमंडल प्रकाशन संस्था' में भी काम करते रहे और हिन्दी व उर्दू के कई शब्दकोषों की योजना से भी जुडे़ रहे. त्रिलोचन ने ' सॉनेट' के छंद को भारतीय परिवेश में ढाला और लगभग 550 सॉनेट की रचना की. इसके अतिरिक्त कहानी, गीत, ग़ज़ल और आलोचना से भी उन्होंने हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया.
पहला कविता संग्रह 1945 में सामने
त्रिलोचन ने जो लिखा, वो इतिहास बना. उनकी पुस्तकें हिन्दी साहित्य को समृद्ध करती हैं. उनका पहला कविता संग्रह 'धरती' 1945 में प्रकाशित हुआ. 'गुलाब और बुलबुल', 'उस जनपद का कवि हूं' और 'ताप के ताये हुए दिन' उनके चर्चित कविता संग्रह थे. त्रिलोचन के 17 कविता संग्रह प्रकाशित हुए. इसमें धरती (1945), गुलाब और बुलबुल (1956), दिगंत (1957), ताप के ताए हुए दिन (1980), शब्द (1980), उस जनपद का कवि हूँ (1981), अरधान (1984), तुम्हें सौंपता हूँ (1985), मेरा घर, चैती, अनकहनी भी, जीने की कला (2004) आदि प्रमुख हैं. मुक्तिबोध की कविताओं का उन्होंने संपादन भी किया. कहानियां भी लिखीं, जो देशकाल शीर्षक संग्रह में संकलित हैं.
सम्मान और पुरस्कारों की लंबी फ़ेहरिस्त
त्रिलोचन अनेक सम्मान-पुरस्कारों से सम्मानित किए गए. इसमें दिल्ली हिन्दी अकादमी का शलाका सम्मान और साहित्य अकादमी पुरस्कार समेत एक लंबी फ़ेहरिस्त है.
हिन्दी साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हे 'शास्त्री' और 'साहित्य रत्न' जैसे उपाधियों से भी सम्मानित किया गया. 9 दिसम्बर, 2007 को गाज़ियाबाद, उत्तर प्रदेश में उनका निधन हुआ.
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