TNP DESK-टाईगर जयराम की सियासी इंट्री के बाद जिस तरीके से झारखंड में बाहरी-भीतरी का खेल शुरु हुआ, खासकर धनबाद गिरिडीह में एक आग फैलती नजर आयी और इस आग का मुकाबला करने के लिए भाजपा के रणनीतिकारों ने खांटी झारखंडी चेहरा ढुल्लू महतो को आगे कर गेम पलटने की सधी चाल चली. अब भाजपा के रणनीतिकारों की यही सधी चाल मुसीबत बनती नजर आने लगी है. पीएन सिंह की विदाई के बाद अगड़ी जाति से प्रत्याशी की उम्मीद पाले भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच से ही ढुल्लू महतो के विरोध की खबरें सामने आ रही है. एक तरफ पूर्व सीएम रधुवर दास को उनके ही अखाड़े में पटकनी दे चुके सरयू राय अब धनबाद में सियासत की एक नयी पटकथा लिखते दिख रहे हैं. अभी कुछ दिन पहले ही सरयू राय ने इस बात का खुलासा किया था कि उनकी टिकट कटने के पीछे रघुवर की चाल थी. ओडिशा के राजभवन में बैठकर भी झारखंड की सियासत को साधा जा रहा है. लौह नगरी जमशेदपुर के आंतक को कोयला नगरी धनबाद में स्थापित करने की साजिश की जा रही है और इसके साथ ही सरयू राय का मैदान में उतरने की चर्चा तेज हो गयी, तो दूसरी तरफ राजपूत समाज ने भी मोर्चा खोल रखा है, इस सबके बीच गैंगस्टर प्रिन्स खान ने ढुल्लू महतो के पक्ष में बैटिंग कर पूरी सियासत को ही उलझा दिया है. सरयू राय पर आरोपों की बौछार करते हुए प्रिन्स खान ने पूछा है कि ढुल्लू महतो का विरोध का कारण उसका आपराधिक चरित्र या उसकी पिछड़ी जाति से आना है? क्या ढुल्लू महतो का पिछड़ी जाति से आना हजम नहीं हो रहा? क्या ढुल्लू का महतो होना गुनाह है? जिस आपराधिक चरित्र का अब हवाला दिया जा रहा है, तब उसकी खबर क्यों नहीं ली गयी, जब वह भाजपा का झंडा लिये घूम रहा था? दो-दो बार इसी कमल की सवारी कर विधान सभा पहुंचा तब यह सवाल क्यों नहीं खड़ा किया गया? इसके बाद यह पूरी कहानी अगड़ी बनाम पिछड़ा में तब्दील होता नजर आने लगा.

अगड़ा बनाम पिछड़ा के इस खेल में कहां खड़ा होगा इंडिया गठबंधन

इस हालत में सवाल खड़ा होता है कि अगड़ा बनाम पिछ़ड़ा के इस खेल में इंडिया गठबंधन की भूमिका क्या होगी? क्या वह किसी अगड़ी जाति से उम्मीदवार को सामने लाकर इस नाराजगी को भुनाने की चाल चलेगी या किसी पिछड़ी जाति से उम्मीदवार लाकर इस आग की दरिया को पार करने की रणनीति अख्तियार करेगी. यहां यह भी याद रहे कि अब तक झारखंड में भाजपा पर बाहरी चेहरों को स्थापित करने का आरोप लगता रहा है. टाईगर जयराम महतो लगातार झारखंड की सियासत में स्थापित गैर झारखंडी चेहरों का नाम अपनी रैलियों में उछालते रहे हैं, हालांकि टाईगर जयराम की उस सूची में भाजपा के साथ ही झामुमो मोर्चा के कुछ चेहरों का भी नाम है, लेकिन टाईगर का मुख्य फोकस पीएन सिंह, जयंत सिन्हा, राज सिन्हा, मनीष जायसवाल और कुछ दूसरे चेहरे पर था. ढुल्लू महतो को उम्मीदवार घोषित करने के बाद जयराम ने भाजपा में आयी इस तब्दीली का श्रेय भी अपने उपर लिया था. जयराम ने कहा था कि यह उनके ही संघर्षों का नतीजा है कि ढुल्लू महतो पर भाजपा को दांव लगाना पड़ा. टाईगर जयराम का दावा कुछ भी हो, लेकिन भाजपा ने अपनी बदली सियासत में ढुल्लू महतो के नाम को आगे कर इसकी काट ढूंढ़ ली है. अब वह अपनी चुनावी रैलियों में पूरी ताकत के साथ इस बात की ताल ठोंकेगा कि उसका उम्मीदवार तो खांटी झारखंडी है और इसके साथ ही उस आदिवासी-मूलवासी समाज से आता है, जिसका ढिढोंरा आज तक झामुमो पिटती रही है. निश्चित रुप से इंडिया गठबंधन के रणनीतिकारों को अब इसकी काट खोजनी होगी. यही उनकी मुसीबत और सियासी कौशल की परीक्षा है.

क्या है सामाजिक सियासी समीकरण

इस खेल को समझने के लिए जरुरी है कि धनबाद के सामाजिक समीकरण को भी सामने रखा जाय, एक आकलन के अनुसार धनबाद संसदीय सीट में अनुसूचित जाति की आबादी करीबन 15 फीसदी, अनुसूचित जनजाति की आबादी 10 फीसदी, अल्पसंख्यक 15 फीसदी और इसके साथ ही पिछड़ी जातियों की भी एक बड़ी आबादी है. इसके साथ ही राजपूत जाति की भी अच्छी खासी आबादी का दावा किया जाता है. हालांकि विभिन्न पिछड़ी जातियों के साथ ही अगड़ी जातियों की वास्तविक आबादी कितनी है, इसका कोई प्रमाणित डाटा उपलब्ध नहीं है. इस हालत में यदि अगड़ी जातियों की गोलबंदी से पिछड़ी जातियों का धुर्वीकरण तेज होता है. इसका लाभ भाजपा को मिल सकता है. रही बात नाराजगी को जिन सामाजिक समूहों में नाराजगी के दावे किया जा रहे हैं, उसमें वैश्य जाति भी है. जिस कृष्णा अग्रवाल का एक ओडियो वायरल हुआ है, जिसमें वह कथित तौर पर ढुल्लू महतो से उलझते सुनाई पड़ रहे हैं और इसके साथ ही पूर्व मेयर चन्द्रशेखर अग्रवाल की नाराजगी की खबर है. इन सबों के बीच रघुवर दास की अच्छी पकड़ मानी जाती है. इस हालत में अंतिम समय तक इनकी नाराजगी बनी रहेगी, इस पर सवालिया निशान है. क्योंकि यदि रघुवर दास एक्टिव होते हैं, अपने सम्पर्कों का इस्तेमाल करते हैं, तो काफी हद तक इस नाराजगी को दफन किया जा सकता है. हालांकि रधुवर दास एक संवैधानिक पद पर आसीन हैं, लेकिन जैसा की सरयू राय का आरोप है कि वह ओडिशा में बैठकर धनबाद और झारखंड की सियासत को साध रहे हैं. उस हालत में यह कोई नामुमकिन टास्क नजर नहीं आता. रही बात राजपूत समाज की, तो क्या इंडिया गठबंधन सिर्फ इस समाज को साधने में ही अपनी उर्जा का इस्तेमाल करेगा? या बदले सियासी माहौल में पिछड़ी जातियों में तेज होते इस धुर्वीकरण पर लगाम लगाने की रणनीति तैयार करेगा, यह देखने वाली बात होगी. और इस पूरी चाल में पिछड़ा विरोधी होने के तमगे से भी उसे बचना होगा. क्योंकि धनबाद में ढुल्लू महतो के पक्ष में पिछड़ों की गोलबंदी की आशंका तेज होती दिख रही है. काउंटर पोलराइजेशन का खतरा सामने खड़ा है.हालांकि इस बीच इंडिया गठबंधन ने जेपी पटेल को हजारीबाग से उम्मीदवार बना कर कुड़मी मतदाताओं को साधने की कोशिश जरुर की है. लेकिन जिस तरीके से इस बार धनबाद की पूरी सियासत अगड़ा बनाम पिछड़ा में तब्दील होता नजर आ रहा है, क्या जेपी पटेल की उम्मीदवारी से उसकी क्षतिपूर्ति हो जायेगी? इंडिया गठबंधन के रणनीतिकारों के सामने इन सारे सवालों का  हल तलाश करने की चुनौती होगी. देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस इसकी तोड़ क्या खोजती है या फिर खोजती है या भी नहीं.

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