टीएनपी डेस्क(TNP DESK): ‘गुरुदत्त’ भारतीय फिल्म में एक ऐसा नाम है, जिसके बारे में हर फिल्म बनाने वाला जानता है. हर वो व्यक्ति जो फिल्म की पढ़ाई करता है, उसे गुरुदत्त की फिल्म जरूर दिखाई जाती है. भारतीय क्लासिक फिल्मों में प्यासा, कागज के फूल ऐसे फिल्में हैं, जो अपने समय से बहुत आगे थी. उन फिल्मों को टक्कर दे पाना आज के फिल्मकारों के लिए भी आसान बात नहीं है. मगर, फिल्मों के इतर गुरुदत्त की जिंदगी के बारे में जानने को कम मिलता है. 10 अक्टूबर 1964 को उनकी संदेहास्पद स्थिति में मौत हो जाती है. उनकी लाश उनके बेड पर पड़ी होती है. कहा जाता है कि उन्होंने शराब और नींद की गोलियों को मिक्स कर पी लिया था. इससे उनकी मौत हो गई थी. हालांकि, इसके बारे में कोई तथ्य नहीं है. कोई तो ये भी कहता है कि उन्होंने आत्महत्या की थी. मगर, सच क्या था, ये बस गुरु दत्त ही जानते होंगे.
Chup!’ गुरु दत्त की कोई बायोपिक नहीं है. बल्कि ये अपनी तरह की एक शानदार फिल्म है
अब सालों बाद गुरुदत्त के सम्मान में एक फिल्म बनी है. इस फिल्म का नाम है ‘चुप’. ‘Chup!’ गुरु दत्त की कोई बायोपिक नहीं है. बल्कि ये अपनी तरह की एक शानदार फिल्म है. हम पहले इस फिल्म के बारे में जानते हैं.
दरअसल, ये फिल्म एक डैनी की कहानी है, जिसका किरदार दुलकर सलमान ने निभाया है. वह फिल्मों का बहुत बड़ा दीवाना है, लेकिन इसके साथ ही वह एक साइको किलर भी है. वह मूवी क्रिटिक्स को मारता है. जब इसके बारे में पड़ताल की जाती है तो पुलिस बने सनी देओल को पता चलता है कि उसने अपने जीवन पर आधारित एक फिल्म बनाई थी, जिसे मूवी क्रिटिक्स ने बहुत बुरा बताया और मूवी फ्लॉप हो गई. फिल्म में इसके अलावा भी बहुत कुछ है. इसके साथ फिल्म में गुरुदत्त के फिल्मों का जिक्र होता रहता है और बैकग्राउंड में उनकी फिल्मों के गाने चलते रहते हैं. इसके अलावा भी गुरु दत्त की फिल्मों के बारे में बहुत सी बात बताई जाती है जिससे ये फिल्म गुरुदत्त का एक परफेक्ट ट्रिब्यूट बन जाती है.
गुरुदत्त की ज़िंदगी और इस फिल्म में समानता
गुरुदत्त की ज़िंदगी और इस फिल्म में डैनी यानि कि दुलकर सलमान के कैरेक्टर में कई सारी समानता दिखाई गई है. ऐसा लगता है जैसे गुरुदत्त से प्रेरित होकर ही इस किरदार को गढ़ा गया है. लेकिन सवाल है कि क्या गुरुदत्त भी डैनी के जैसे साइको थे? तो जवाब है नहीं. इस फिल्म के जरिए उनके सिनेमा के प्रति मोहब्बत और उनकी खराब होती मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बताया गया है. Chup फिल्म में एक डायलॉग है कि एक depressed व्यक्ति खुद को नुकसान तो पहुंचाता है ही, मगर, कभी-कभी वो दूसरे को भी नुकसान पहुंचाने लगता है. यही फरक गुरुदत्त और डैनी में है.
Chup में डैनी की फिल्म हो जाती है फ्लॉप
Chup में दिखाया जाता है कि डैनी की फिल्म फ्लॉप हो जाती है. वह बाकियों के लिए महज सिर्फ एक फिल्म होती है. मगर, वह डैनी की पूरी ज़िंदगी थी, उसकी बायोपिक थी. ऐसे में जब क्रिटिक्स उसकी फिल्म को बेकार बोलते हैं तो उसे तगड़ा झटका लगता है और उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ जाती है. उसे लगता है क्रिटिक्स ने उसकी जिदंगी को बेकार बता दिया है. इसी कारण वह क्रिटिक्स को मारता है.
गुरु दत्त की ‘कागज के फूल’ थी फ्लॉप
इसी तरह गुरु दत्त के बारे में कहा जाता है कि गुरु दत्त ने भी अपनी आत्मकथा बनाई थी. इस फिल्म का नाम है, ‘कागज के फूल’. कागज के फूल को क्रिटिक्स ने बेकार फिल्म बताया था, दर्शकों को फिल्म बिल्कुल पसंद नहीं आई थी. इससे कहा जाता है कि गुरु दत्त काफी निराश हो गए थे और काफी तनाव में रहने लगे थे. इसी फिल्म का असर हुआ कि फिल्म के रिलीज के कुछ सालों के अंदर ही उनकी संदेहास्पद स्थिति में मौत हो जाती है, जिसे कई लोग सुसाइड भी मानते हैं. ‘कागज के फूल’, जिस फिल्म को सभी लोगों ने बेकार बताया था जो फिल्म फ्लॉप हो गई थी. उसे आज भारतीय सिनेमा की सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक माना जाता है. लोगों को इस फिल्म के जरिए सिनेमा के क्राफ्ट पर काम करना सिखाया जाता है.
फिल्मों के प्रति समर्पण
इसके अलावा भी गुरुदत्त और डैनी में समानता है, वो है फिल्मों के प्रति उनके समर्पण का. गुरुदत्त फिल्मों के प्रति बड़े संवेदनशील थे. उन्हें फिल्मों का बहुत शौक था. ऐक्टिंग, निर्देशन, स्क्रिप्ट आदि पर बहुत बारीकी से काम करते थे. उनकी कई फिल्में ऐसी हैं जिसके बारे में लोगों को पढ़ाया जाता है. प्यासा, चौधवी का चंद, कागज के फूल, बाजी, साहिब बीवी और गुलाम, सीआईडी इन्हीं फिल्मों में शामिल है. इसी तरह Chup फिल्म का डैनी भी फिल्मों का बड़ा शौकीन है. वह हर नई फिल्मों को देखने जाता है. गुरु दत्त की फिल्मों का बहुत बड़ा फैन है. मगर, जब कोई क्रिटिक्स अच्छी फिल्मों को खराब रिव्यू देता है या खराब फिल्मों को अच्छे रिव्यू देता है, तो उसका साइको रूप निकल आता है.
Chup फिल्म एक सही मायनों में गुरुदत्त के सम्मान में बनाई जाने वाली फिल्म कही जा सकती है. फिल्म के निर्देशक आर. बाल्की हमेशा ही अच्छी फिल्मों और कुछ अलग हटके फिल्मों के लिए जाने जाते हैं. इस फिल्म के जरिए वह कुछ ऐसा ही कमाल कर जाते हैं. इस फिल्म को एक बार जरूर देखी जानी चाहिए. इतना तो तय है कि आपको इस फिल्म से मोहब्बत हो या ना हो आपको फिल्मों से जरूर मोहब्बत होगी.
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