टीएनपी डेस्क(TNP DESK): साल था 1988, तत्कालीन सोवियत संघ में एक नए नेता का उदय होता है. Mikhail Gorbachev सोवियत संघ के राष्ट्रपति बनते हैं. इसके बाद सोवियत संघ की रूपरेखा बदलने लगती है. दरअसल, सोवियत में कम्युनिस्ट पार्टी की एकाधिकृत शासन था. इस तानाशाह सरकार में लोगों पर कई पाबंदियां थी. लोगों को क्या खाना है, क्या पीना है सभी चीजों पर पाबंदी थी. इसी बीच सोवियत संघ और अमेरिका के बीच लंबे समय से शीत युद्ध भी चल रहा था. इससे पूरी दुनिया भी परेशान थी. और सोवियत की जनता भी. जब 1988 में मिखाइल गोर्बचेव सोवियत संघ के राष्ट्रपति बनते हैं तब वो धीरे-धीरे जनता को अधिकार देना शुरू करते हैं. उन्होंने जब यूरोप आदि देशों का भ्रमण किया तब उन्होंने पाया कि बाकी देशों की अर्थव्यवस्था खुली हुई है. सोवियत संघ ताकतवर तो बन रहा था. मगर, इसकी अर्थव्यवस्था कमजोर हो रही थी. दुनिया हथियारों के होड़ में लगी हुई थी.

अर्थव्यवस्था सुधार के प्रयास किए शुरू

इसके बाद मिखाइल गोर्बचेव ने अर्थव्यवस्था में सुधार के प्रयास शुरू किए. सालों से परेशान जनता को अभिव्यक्ति की आजादी दी. उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन  के साथ अच्छे संबंध बनाए और उन्होंने वो कर दिखाया जो कोई नहीं कर पाया था. उन्होंने रूस और अमेरिका के बीच जारी सालों पुराने शीत युद्ध को खत्म कर दिया. इसके साथ ही 9 सालों से चल रहे अफगानिस्तान अभियान को भी उन्होंने बंद कर दिया. इन सब प्रयासों के लिए उन्हें 1990 में शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया. इन सब फैसलों और पुरस्कारों से मिखाइल गोर्बचेव पूरी दुनिया के लिए हीरो बन गए थे. 

जनता को दी अभिव्यक्ति की आजादी

मगर, मिखाइल गोर्बचेव रूस के लिए विलेन कैसे बन गए, इस पर बात करते हैं. मिखाइल गोर्बचेवशुरू से लोकतान्त्रिक आस्थाओं को मानने वाले थे. मगर, सोवियत संघ का ढांचा एक संघीय था या यो  कहे कि सिर्फ एक पार्टी की सरकार चलती थी. जब एक ही पार्टी सरकार में रहती है तो अफसर और अधिकारी तानाशाह हो जाते हैं. यही हाल सोवियत का भी था. अधिकारियों के जुल्म और नियम से जनता परेशान थी. मगर, जब मिखाइल गोर्बचेव राष्ट्रपति बनते हैं तो वे जनता को अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार देते हैं. सालों से जनता के दिल में जो आग सुलग रही थी, उसे इस फैसले ने हवा दे दिया.

हुई तख्तापलट की कोशिश

वहीं लोकतान्त्रिक सुधार कट्टर कम्युनिस्टों को पच नहीं रहा था और उन्होंने इसका विरोध करना शुरू कर दिया. उन्होंने तख्तापलट करने की कोशिश की. लेकिन, उसे रोक दिया गया. मिखाइल गोर्बाचेव को 1991 में 19 अगस्त से लेकर 21 अगस्त तक नजरबंद कर दिया गया. हालांकि बाद में उन्होंने तुरंत ही राष्ट्रपति का पद फिर से संभाल लिया. मगर, अब उनकी स्थिति कमजोर हो गई थी. उनके जैसे ही एक और नेता सोवियत की राजनीति में उभर रहा था - बोरिस येल्तसिन. उसे भी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर विश्वास था.

इस लिए बन गए रूस के सबसे बड़े विलेन  

सोवियत संघ में कई गुट बन चुके थे. मगर, अधिकतर गुट बोरिस येल्तसिन को पसंद करते थे. इसी बीच मिखाइल गोर्बाचेव ने बोरिस येल्तसिन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया और कम्युनिस्ट पार्टी छोड़ दी. मिखाइल गोर्बाचेव ने इस दौरान सोवियत संघ में शामिल गणतांत्रिक राज्यों को राजनीतिक शक्तियां देनी शुरू कर दी. इन सब के बीच बोरिस येल्तसिन सत्ता संभालने की तैयारी में था. कई गणराज्यों को भी बोरिस येल्तसिन के नेतृत्व से कोई दिक्कत नहीं था. मगर, तभी एक बड़ी घटना होती है.

25 दिसंबर 1991 को मिखाइल गोर्बाचेव राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देते हैं. लेकिन, इस्तीफा देने से ठीक पहले वो एक हस्ताक्षर करते हैं, जिसने सोवियत संघ की पूरी रूपरेखा बदल दी. ये हस्ताक्षर उस दस्तावेज पर किए गए थे, जो सोवियत संघ को खत्म करने की बात कर रहा था. मिखाइल गोर्बाचेव के इस्तीफे के साथ ही सोवियत संघ का भी अंत हो जाता है. रूस में आज भी सोवियत संघ के इतिहास को बड़ा गर्व से देखा जाता है. और इसे खत्म करने के लिए मिखाइल गोर्बाचेव को सबसे बड़ा विलेन माना जाता है. 2 मार्च 1931 को जन्मे मिखाइल गोर्बाचेव का 30 अगस्त को निधन हो गया. शांति के उनके प्रयास के लिए पूरी दुनिया उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है.