टीएनपी डेस्क(TNP DESK): वो भी एक दौर था ये भी एक दौर है. उस वक्त भी लोगों की जुबान पर भारत माता की जय, वंदे मातरम, इंकलाब जिदाबाद का नारा था और आज भी लोगों के जेहन में वो जज्बा जिंदा है. फर्क सिर्फ इतना है उस वक्त ज्यादातर लोग भूखे थे, पैरों पर चप्पल नहीं थी पर चेहरे पर मुस्कान आज से कम नहीं थी. हम बात कर रहे हैं 14-15 अगस्त 1947 के मध्यरात्रि की, जब भारत के पहले प्रधानमंत्री, आजाद भारत को पहली बार संबोधित कर रहे थे. भले ही उस वक्त लोगों को लड्डू ना मिला हो पर उस वक्त की शक्कर की मिठास भी किसी रसमलाई से कम नहीं रही होगी. उस पल का हर सेकंड मानों लोग भूलना ना चाहते हों अगर उनके बस में होता तो शायद वो घड़ी, वो समय को लोग कैद कर लेते और उस महसूस को सदियों तक कभी ना भूलने वाले दिलों दिमाग में कैद कर लेते. उस रात की हवा भी भारत माता की जय और इंकलाब जिंदाबाद बोल रही होगी. भले ही रात ज्यादा हो गई हो मगर लोगों को नींद कहा आ रही थी. उन्हें भी आजाद भारत की पहली हवा की महक को अपने होठों से चूमना था, आजाद भारत की मिट्टी की खुशबू की ललक ही इतनी जवान रही होगी कि लोगों पर एक अलग ही चमक होगी. पंडित नेहरू की उस ऐताहासिक भाषण को सुनने के लिए ना सिर्फ भारतीय बल्कि पूरी दुनिया इंतजार कर रही थी. शायद फिरंगियों को उस वक्त भी यही लगा होगा कि ये देश ज्यादा दिन तक आजाद नहीं रह पायेगा. मगर उनको यह कहा पता होगा कि ये केवल अब आजाद मुल्क नहीं बल्कि एक सभ्यता है. यहां अलग-अलग धर्म के लोग, अनेकों अनेक भाषाओं के लोग एक साथ रहते हैं. इस देश में हर महीने उत्सव मनाया जाता है. यहां के लोग पेड़, पौधे और पशुओं तक की पूजा करते है. इसके अलावा उस रात पंजित नेहरू ने जो भाषण दिया उसने मानों देश के लोगों में एक नयी ऊर्जा भऱ दी.
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पंडित नेहरू का वो ऐतिहासिक भाषण
नेहरू के उस भाषण को "ट्रिस्ट विद डेस्टिनी" (‘Tryst with destiny') के नाम से जाना जाता है. भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का पहला भाषण जो उन्होंने 14-15 अगस्त की मध्यरात्रि में वायसराय लॉज (मौजूदा राष्ट्रपति भवन) से दिया गया था. उन्होंने अपने भाषण की शुरूआत कुछ यूं की थी. यह एक ऐसा क्षण है, जो इतिहास में यदा-कदा आता है, जब हम पुराने से नए में कदम रखते हैं, जब एक युग का अंत होता है, और जब एक राष्ट्र की लंबे समय से दमित आत्मा नई आवाज पाती है. यकीकन इस विशिष्ट क्षण में हम भारत और उसके लोगों और उससे भी बढ़कर मानवता के हित के लिए सेवा-अर्पण करने की शपथ लें.
नेहरू ने कहा इतिहास की शुरुआत से ही भारत ने अपनी अनंत खोज आरंभ की. अनगिनत सदियां उसके उद्यम, अपार सफलताओं और असफलताओं से भरी हैं. अपने सौभाग्य और दुर्भाग्य के दिनों में उसने इस खोज की दृष्टि को आंखों से ओझल नहीं होने दिया और न ही उन आदर्शों को ही भुलाया, जिनसे उसे शक्ति प्राप्त हुई. हम आज दुर्भाग्य की एक अवधि पूरी करते हैं. आज भारत ने अपने आप को फिर पहचाना है.
आज हम जिस उपलब्धि का जश्न मना रहे हैं, वह हमारी राह देख रही महान विजयों और उपलब्धियों की दिशा में महज एक कदम है. इस अवसर को ग्रहण करने और भविष्य की चुनौती स्वीकार करने के लिए क्या हमारे अंदर पर्याप्त साहस और अनिवार्य योग्यता है? स्वतंत्रता और शक्ति जिम्मेदारी भी लाते हैं. वह दायित्व संप्रभु भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाली इस सभा में निहित है. स्वतंत्रता के जन्म से पहले हमने प्रसव की सारी पीड़ाएं सहन की हैं और हमारे दिल उनकी दुखद स्मृतियों से भारी हैं. कुछ पीड़ाएं अभी भी मौजूद हैं. बावजूद इसके स्याह अतीत अब बीत चुका है और सुनहरा भविष्य हमारा आह्वान कर रहा है.
अब हमारा भविष्य आराम करने और दम लेने के लिए नहीं है, बल्कि उन प्रतिज्ञाओं को पूरा करने के निरंतर प्रयत्न से हैं जिनकी हमने बारंबार शपथ ली है और आज भी ऐसा ही कर रहे हैं ताकि हम उन कामों को पूरा कर सकें. भारत की सेवा का अर्थ करोड़ों पीड़ित जनों की सेवा है. इसका आशय गरीबी, अज्ञानता, बीमारियों और अवसर की असमानता के खात्मे से है. हमारी पीढ़ी के सबसे महानतम व्यक्ति की आकांक्षा हर व्यक्ति के आंख के हर आंसू को पोछने की रही है. ऐसा करना हमारी क्षमता से बाहर हो सकता है लेकिन जब तक आंसू और पीड़ा है, तब तक हमारा काम पूरा नहीं होगा.
इसलिए हमें सपनों को धरातल पर उतारने के लिए कठोर से कठोरतम परिश्रम करना है. ये सपने भले ही भारत के हैं लेकिन ये स्वप्न पूरी दुनिया के भी हैं क्योंकि आज सभी राष्ट्र और लोग आपस में एक-दूसरे से इस तरह गुंथे हुए हैं कि कोई भी एकदम अलग होकर रहने की कल्पना नहीं कर सकता...जय हिंद.
आजादी की 75वीं वर्षगांठ
उस वक्त भारत के सामने एक तरफ खुशी थी आजादी की तो दूसरी तरफ चुनौती थी देश के हालात सुधारने की. हालांकि आज हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं. पूरा देश तिरंगे से पाट दिया गया है, जहां भी देखों सिर्फ केसरिया, सफेद और हरा रंग दिखाई दे रहा है. मगर यहां तक का सफर देश के लिए आसान नहीं रहा. इसके लिए हमारे शूरवीरों का बलिदान है, इसके लिए हमारी सरहदों में खड़े वो योद्धा हैं.
कॉपी विशाल कुमार
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