रांची(RANCHI)- जब से पूर्व सीएम बाबूलाल के सिर पर कांटो भरा प्रदेश भाजपा का ताज मिला है, वह अपने राजनीतिक विरोधियों पर टूट पड़े हैं, सरजमीन पर ना सही तो कम से कम सोशल मीडिया पर वह बेहद आक्रमक मूड में नजर आ रहे हैं.

 पश्चिम बंगाल की याद, लेकिन मणिपुर पर चुप्पी

हेमंत सरकार के अधिकारियों को धमकाने के लहजे में पश्चिम बंगाल की याद दिला रहे हैं, बता रहे हैं कि पश्चिम बंगाल में पुलिस सत्ता गठजोड़ का हश्र क्या हुआ? वह इस बात की चेतावनी दे रहे हैं कि पश्चिम बंगाल में  करीबन एक दर्जन से अधिक मामलों की जांच सीबीआई और ईडी जैसी स्वतंत्र(?) एजेंसिया कर रही है. उनका दावा है कि झारखंड भी इसी रास्ते पर है. हालांकि पश्चिम बंगाल की कहानी कहते हुए बाबूलाल बड़ी ही राजनीतिक चतुराई से मणिपुर में हिंसा की लपटों को किनारा कर जाते हैं, जहां और किसी का नहीं खुद आदिवासियों की जिंदगी दांव पर लगी है. भय और आतंक के छाये में रिफ्यूजी कैंपों में जीवन काटते उन आदिवासी भाईयों के प्रति बाबूलाल दो शब्द भी नहीं लिख पातें.

सत्ता के सह पर पाप करने वाले अधिकारियों का हश्र

एक बार फिर से अधिकारियों को सलाह देते हुए वह फरमाते हैं कि आपने सत्ता के सह पर पाप करने वाले अधिकारियों का हश्र देख लिया है. कोई जमानत को तरस रहा है तो कोई जेल में तड़प रहा है. उनके परिवारवालों की क्या हालत होगी? यह बताने की ज़रूरत नहीं है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जी अपनी गर्दन और बेहिसाब ज़मीन जायदाद बचाने की चिंता से डर के मारे हांफ रहे हैं. उनमें इतनी भी हिम्मत नहीं बची कि वे उनके प्रति संवेदना का एक शब्द बोल सकें. लेकिन इस सवाल के साथ भी बाबूलाल यह भूल जाते हैं कि आज जिन जिन अधिकारियों पर कथित स्वतंत्र एजेंसियों की गाज गिरी है, ये सारे पाप तो रघुवर शासन काल में ही हुए हैं, जिस संथाल में दस हजार करोड़ रुपये का अवैध खनन का दावा किया जा रहा है, उसी अवैध खनन सारा ठिकरा सीए हेमंत ने भाजपा पर फोड़ते हुए रेलवे मंत्री को एक चिट्ठी  भी लिखी है, जिसमें इस बात की मांग की गयी है, बगैर भाजपा के सहयोग से रेलवे के बोगियों में अवैध खनन के इस कोयले को झारखंड से बाहर कैसे भेजा गया, सीएम हेमंत ने रेलवे के द्वारा भेजे जाने  वाले पूरे ट्रैक की जानकारी की मांग रेलवे से की है,  लेकिन बाबूलाल यहां भी बड़ी ही चतुराई से सीएम हेमंत के उस पत्र का उल्लेख नहीं करना चाहते. क्योंकि सत्ता के सह पर किसने पाप को अंजाम दिया, उसकी पूरी जानकारी तो रेलवे के पास ही है.

जब स्वतंत्र? एजेंसियां गर्दन पकड़ती हैं

 

“आप सत्ताधारियों की चोरी, डकैती, अपराध, घोटाले और षड्यंत्र में साझेदार न बनें, क्योंकि जब स्वतंत्र? एजेंसियां गर्दन पकड़ती हैं तो बचाने वाला कोई नहीं होता. वैसे भी, "साहब" की खुद की गर्दन इतनी बुरी तरह फंसी है तो वह आपको क्या बचाएंगे? मुझे उम्मीद है कि मुर्ख सत्ता की चासनी में जलेबी छान रहे कुछ समझदार लोग पिछले अनुभव से सबक़ लेंगे, मेरे इशारे को समझेंगे और ऐसा अनर्गल काम नहीं करेंगे जो उनके खुद के लिए मुसीबत बन जाये”

दरअसल यहां सवाल यह भी है कि जब झारखंड  में घोटालों की परत खुलेगी तब यहां किसका का दामन सुरक्षित नजर नहीं आयेगा? सत्ता के इस चासनी का आनन्द हर दल ने उठाया  है, और उसने तो कुछ ज्यादा ही उठाया है, जिसकी सरकार झारखंड गठन के बाद लम्बे अर्से तक रही है.

पंजे ने किया बुरा हाल अबकी बार बाबूलाल

सोशल मीडिया पर बाबूलाल के इस तेजी का आनन्द उनके सोशल मीडिया के साथी भी उठा रहे  हैं. कोई कह रहा है पंजे ने किया बुरा हाल अबकी बार बाबूलाल, इस तरह की प्रतिक्रियों को सामने आता देख बाबूलाल भी गदगद है.

लेकिन सवाल यह है कि भाजपा सोशल मीडिया के बाहर निकल जमीन पर कितनी सक्रिय नजर आ रही है, क्या यह सच्चाई नहीं है कि खुद भाजपा में भी बाबूलाल के राजनीतिक विरोधियों की कमी नहीं है, जिनका मानना है कि बाबूलाल की पुनर्वापसी से उनका राजनीतिक कैरियर अवसान की चल पड़ा है और यदि 2024 में भाजपा वर्तमान की 12 सीटों पर वापसी नहीं है तो यह ठिकरा किसके माथे पर फोड़ा जायेगा? क्योंकि अपनी तमाम कोशिश के बावजूद भी भाजपा की यह नयी पीढ़ी बाबूलाल को विजातीय ही मानती है, जिसका मानना है कि बाबूलाल के राजनीतिक पुनर्वास के चक्कर में कहीं भाजपा का राजनीतिक वनवास की शुरुआत नहीं हो जाये.