रांची(RANCHI)-सीएम हेमंत को पांच पांच समन भेजने के बाद अचानक से सूबे की सियासी फिजा में एक अजीब सी खामोशी पसरी नजर आने लगी है. एक तरफ जहां सीएम हेमंत आपकी योजना, आपकी सरकार, आपके द्वारा कार्यक्रम के बहाने मतदाताओं का नब्ज टटोलने की यात्रा करते नजर आ रहे हैं, और खास बात यह है कि इस दौरान वह अपने तेवर और पैतरों से भाजपा और पीएम मोदी को सिर्फ निशाने पर ही नहीं ले रहे हैं, बल्कि साफ-साफ चुनौती पेश करते भी दिख रहे हैं, उनकी भाषा और संवाद अदायगी से इस बात का एहसास होता कि जैसे वह ईडी- सीबीआई के उस खौफ से बाहर निकल चुके हैं, जिसकी झलक शुरुआती दिनों में उनके चेहरे पर नजर आती थी.

हमारा दोष महज इतना है कि पांचवीं अनूसूची क्षेत्र का मैं एकलौता आदिवासी मुख्यमंत्री हूं

हालांकि वह बीच-बीच में अपने कोर मतदाताओं को इस बात के लिए अगाह भी करते नजर आते हैं कि बहुत संभव है कि उनकी गिरफ्तारी का प्लान बनाया जाय, क्योंकि चाहे कोरोना काल में महानगरों में फंस चुके झारखंडी मजदूरों को हवाई जहाज के रास्ते झारखंड लाने का फैसला हो, या आदिवासी समाज की सबसे पुरानी मांग सरना धर्म कोड को विधान सभा से पारित कर राजभवन भेजने का फैसला, या फिर खतियान आधारित स्थानीय नीति और नियोजन नीति का निर्माण, या आदिवासी-मूलवासी समाज के बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजने का फैसला, यह सब कुछ भाजपा को हजम नहीं हो रहा है,  हमारा दोष महज इतना है कि पांचवीं अनूसूची क्षेत्र का मैं एकलौता आदिवासी मुख्यमंत्री हूं, लेकिन पीएम मोदी को हमारा यह आदिवासी चेहरा पसंद नहीं है.

जो भाजपा के एजेंडे पर चलते हुए हिन्दू मुसलमान का खूनी खेल नहीं खेलता

एक ऐसा आदिवासी-मूलवासी मुख्यमंत्री जो भाजपा के एजेंडे पर चलते हुए हिन्दू मुसलमान का खूनी खेल नहीं खेलता, एक ऐसा आदिवासी मुख्यमंत्री जिसकी प्रतिबद्धता सिर्फ और सिर्फ झारखंड और झारखंडियत के विकास की है, जो समाज को सब वर्गों को लेकर आगे बढ़ना चाहता है, आदिवासी मूलवासियों को उलजलूल मुद्दों में नहीं उलझा कर जल जंगल और जमीन की बात करता है, सामाजिक राजनीतिक सत्ता में उनकी भागीदारी और हिस्सेदारी का सवाल खड़ा करता हूं और हमारी यह पहल भाजपा को हजम नहीं होता.  

सीएम हेमंत को लाल कोठरी भेजना भाजपा के लिए सियासी खुदकुशी के समान

साफ है कि इस यात्रा के बहाने सीएम हेमंत 2024 का लोकसभा चुनाव और ठीक उसके बाद 2025 में विधान सभा चुनाव का सियासी मुद्दा तय करते नजर आने लगे हैं. उनकी यात्रा पूरी तरह चुनावी यात्रा नजर आने लगी है. यदि दूसरे शब्दों में कहा जाय तो सीएम हेमंत अब भाजपा सहित केन्द्रीय एंजेंसियों को कार्रवाई के लिए उकसाते नजर आ रहे हैं. जानकारों का दावा है कि उनके रणनीतिकारों ने इस बात का आकलन कर लिया है कि भाजपा के लिए ईडी के सहारे सीएम हेमंत को लाल कोठरी भेजने का फैसला उलटा पड़ने वाला है. और क्योंकि जिस तरह हेमंत सोरेन एक बाद दूसरा आदिवासी मूलवासी कार्ड खेलते जा रहा है, जिस संकट में आज भी भाजपा संथाल और कोल्हान में फंसी नजर आती है, उस हालत में हेमंत की गिरफ्तारी भाजपा के लिए गले की हड्डी बन सकती है, सीएम हेमंत को लालकोठरी की भेजने की उसकी कवायद झारखंड में उसकी सियासी जमीन को लाल( शून्य) कर सकती है, और शायद भाजपा की इसी सियासी मजबूरी का लाभ उठाने की रणनीति पर आगे बढ़ते सीएम हेमंत दिख रहे हैं.

आखिर क्या है ईडी की इस चुप्पी का रहस्य

लेकिन इसके विपरीत कई जानकारों का आकलन है कि यह सही है कि पांच पांच समन भेजने के बाद अचानक से ईडी के द्वारा चुप्पी साध ली गयी हो. अब ना तो सीएम हेमंत को कोई  नोटिस जारी किया जा रहा है, और ना ही उनके करीबियों तक पहुंचने की कोशिश की जा रही है. इसके विपरीत उसका पूरा फोकस झारखंड शराब घोटला, खनन घोटला और मनिलांड्रिंग के दूसरे आरोपियों पर है, लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि सब कुछ शांत हो चुका है, दरअसल ईडी के समन के समन को चुनौती पेश करते हुए सीएम हेमंत ने कोर्ट में यह सवाल खड़ा किया था कि सिर्फ समन भेजने से काम नहीं चलने वाला है, ईडी को यह भी बताना होगा कि उन्हे किस हैसियत से बुलाया जा रहा है. वह आरोपी की शक्ल में समक्ष पेश होंगे या एक गवाह के बतौर उनकी हाजिरी होगी, और इसी सवाल के बाद ईडी उलझी उलझी नजर आने लगी है. और अब उसकी कोशिश सीएम हेमंत के इसी सवाल का जवाब तलाशने की है. झारखंड शराब घोटला, खनन घोटला और मनिलांड्रिंग के दूसरे आरोपियों पर ईडी की कार्रवाई में जो तेजी आयी है, वह दरअसल और कुछ नहीं इन मामलों में सीएम हेमंत की भूमिका का साक्ष्य जुटाने की कवायद भर है. जैसे ही यह साक्ष्य हाथ लग जाता है, ईडी एक बार फिर से अपने पुराने रुख पर आगे बढ़ेगी. लेकिन उसके बड़ा सवाल यह है कि तो क्या अब तक ईडी बगैर साक्ष्य और सबूत के ही सीएम हेमंत को समन दर समन भेज कर महज एक सियासत कर रही थी, और यदि यह सत्य है तो सीएम हेमंत का यह दावा तो सच है कि ईडी-सीबीआई वही कर रही है जो उनके पॉलिटिकल आका के द्वारा कहा जा रहा था, तब तो यह एक बेहद खतरनाक संकेत हैं.  

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