Ranchi- पांच राज्यों में एक चार से सियासी शिकस्त के बाद कांग्रेसी सदमे की स्थिति में है, इस हार के साथ ही उसे 2024 की डगर कठिन नजर आने लगी है. हालांकि इस हार के बाद कांग्रेस के अंदर संगठनात्मक ऑपरेशन की तैयारी शुरु हो गयी है, माना जा रहा है कि कांग्रेस वैसे सभी नेताओं को जगह लगा सकती है, जिनकी रणनीतियों के कारण यह फजीहत उठानी पड़ी, इस सूची में कमलनाथ से लेकर जयराम रमेश और संगठन प्रभारियों के नाम भी शामिल हैं. बताया जा रहा है कि एक तरफ जहां कमलनाथ और अशोक गहलोत जैसे पुराने धुरंधर राहुल गांधी की सियासी रणनीतियों से किनारा कर रहे थें, वहीं दूसरी ओर हाईकमान की ओर से भेजे गये संगठन प्रभारी भी इन राज्यों की जमीनी सच्चाई की रिपोर्ट नहीं कर रहे थें, और इसी कारण राहुल गांधी और केन्द्रीय हाईकमान भी उन छोटे छोटे स्थानीय दलों से समझौता नहीं कर सकी, जिनके साथ आते ही यह पूरा खेल पलट सकता था.

भाजपा से अधिक मत लाकर भी हार गयी कांग्रेस

यहां याद रहे कि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलांगना और राजस्थान में पड़े यदि कुल मतों को मिला दिया जाय तो भाजपा के हिस्से जहां 4,81,33,463 वोट आते हैं, वहीं कांग्रेस के हिस्से 4,90,77,907 वोट आता है, इस प्रकार मतों के हिसाब से कांग्रेस करीबन 9 लाख वोट से आगे रही, बावजूद इसके उसे तीन राज्यों में फजीहत झेलनी पड़ी. और इसके पीछे की वजह कांग्रेस का अति आत्मविश्वास बताया जा रहा है.

कैसे पलट सकता था पासा

दावा किया जाता है कि यदि कांग्रेस छत्तीसगढ़ में भारतीय आदिवासी महासभा के समझौते के ऑफर को स्वीकार कर लेती तो आज कांग्रेस का परचम फहर रहा होता, यहां यह बताना जरुरी है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा को कांग्रेस से महज दो फीसदी अधिक वोट पड़े हैं, और जिस भारतीय आदिवासी महासभा से कांग्रेस ने गठबंधन से इंकार किया था, वह ना सिर्फ तीन सीट पर जीतने में सफल रही, बल्कि कुल 11 सीटों पर उसके कारण कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा, ठीक यही हालत मध्यप्रदेश की है, वहां भी सपा कांग्रेस के साथ समझौता को तैयार थी, लेकिन यहां भी कमलनाथ गठबंधन को तैयार नहीं थें, और तो वह जिस मध्यप्रदेश में यादव जाति की आबादी करीबन 14 फीसदी है, उस मध्यप्रदेश में खड़ा होकर कमलनाथ अखिलेश यादव को अखिलेश-वखिलेश कहने का दुस्साहस कर रहे थें.

अखिलेश के खिलाफ विष वमन भारी पड़ा

जानकारों का मानना है कि अखिलेश यादव के विरुद्ध इस अभ्रद टिप्पणी के साथ ही कांग्रेस की हार पक्की हो गयी थी, क्योंकि सपा के साथ समझौते के बाद जो यादव मतदाता कांग्रेस के साथ आ सकते थें, थक हार कर भाजपा के साथ जाने में भी अपना सम्मान समझा. और राजस्थान जहां से हनुमान बनीवाल के साथ मिलकर चन्द्रशेखर रावण करीबन सौ सीटों पर ताल ठोक रहे थें, हालांकि इन दोनों को कोई बड़ी सफलता नहीं मिली, लेकिन इतना वोट जरुर काट गयें कि अशोक गहलोत की वापसी के दरवाजे बंद हो जाय. इस प्रकार इन तीनों ही राज्यों में क्षेत्रीय दलों से किनारा करना कांग्रेस को भारी पड़ा.

क्या इन नतीजों से सबक सीखेगी कांग्रेस

अब सवाल यह उठता है कि क्या कांग्रेस तीन राज्यों में अपनी इस भारी फजीहत से सबक सीखने की कोशिश करेगी. और यदि वह यह इरादा पालती है तो उसे जमीनी नेताओं को सामने लाना होगा, वैसे चेहरों की पहचान करनी होगी, जिसके पीछे एक बड़ी सामाजिक ताकत खड़ी हो, और आज के दिन कांग्रेस के पास चेहरों की कमी नहीं है, वह तीन दशक से आदिवासियों के बीच काम करते रहे बंधू तिर्की को भी आगे कर आदिवासी मूलवासी समाज को एक बड़ा संदेश दे सकती है, तो शिल्पी नेहा तिर्की और अम्बा प्रसाद को संगठन में आगे कर महिला सशक्तीकरण का संदेश दे सकती है.

अम्बा प्रसाद और शिल्पी नेहा तिर्की झारखंड में कांग्रेस का भविष्य

यहां याद रहे कि अम्बा प्रसाद और शिल्पी नेहा तिर्की को आगे कर कांग्रेस झारखंड में आने वाले दिनों के लिए एक मजबूत चेहरा सामना ला सकती है, अम्बा प्रसाद जहां एक मजबूत पिछड़ा और चेहरा हैं, वहीं शिल्पी नेहा तिर्की आदिवासी, दोनों की शैक्षणिक पृष्ठभूमि भी काफी मजबूत है, और वह इस समीकरण को आगे कर कांग्रेस एक मजबूत जमीनी आधार खड़ी कर सकती है. जहां तक बंधू तिर्की की बात है तो वह भले ही विभिन्न पार्टियों का सफर कर कांग्रेस से पास पहुंचे हो, लेकिन बंधु तिर्की के पास एक व्यापक सियासी अनूभव और सामाजिक पकड़ है, और वैसे भी वह चुनावी राजनीति से दूर हो चुके हैं, इस हिसाब से उन्हे झारखंड में कांग्रेस का चेहरा बना कर भाजपा को बचाव की मुद्रा में खड़ा किया जा सकता है.  और बड़ी बात यह बदलाव कांग्रेस को 2024 के महासंग्राम के पहले की करना होगा. क्योंकि आज जिन हाथों में प्रदेश कांग्रेस की कमान है, उनकी हालत मध्यप्रदेश के कमलनाथ की है, जो दिल्ली दरबार में अपना जलवा तो जरुर बिखेर सकते हैं, लेकिन जब बात जमीन पर संघर्ष की आयेगी उनका दम फूलता नजर आयेगा. यहां याद रहे कि सियासी संघर्ष के लिए जमीन पर जनाधार की जरुरत होती है, जो आज कांग्रेस में इरफान अंसारी और बंधु तिर्की जैसे लोगों के पास है, लेकिन इरफान की परेशानी यह है कि  वह कई बार अनावश्यक विवादों में फंसते नजर आते हैं, इस हालत में उनके सिर पर ताजपोशी कभी भी विवादों को जन्म दे सकता है.

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