टीएनपी डेस्क (TNP DESK):- बिहार में शराबबंदी अगले साल 5 अप्रैल को एक दशक पूरा कर लेगा, साल 2016 में 5 अप्रैल से शराबबंदी लागू की गई थी. बड़ी उम्मीद थी कि नशा के बंद होने से अपराध से लेकर महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार पर लगाम लगेगा. मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने 9 जुलाई 2015 को महिलाओं के कार्यक्रम में एलान किया था कि चुनाव में जीतने के बाद उनकी सरकार आयी तो शराबबंदी लागू कर देंगे. अपने वादे के मुताबिक नीतीश बाबू ने बिहार में शराबबंदी लागू कर दिया.

इस साल के आखिर बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, लेकिन शराबबंदी का मुद्दा सियासी गलियारों में अभी भी छाया रहता है, कभी जहरीली शराब को लेकर सरकार कटघरे में खड़ी होती है. तो कई नेताओं ने शराबंदी हटाने तक की मांग कर डाली है.  

सवाल है कि आज ताजा जमीनी हालात आखिर क्या है ? क्या वाकई बिहार में शराबबंदी ने लोगों की जिंदगी में फर्क लाया औऱ खुशहाली लाई है?. क्या शराबबंदी के मुद्दे को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार फिर चुनाव में भुनायेंगे ?

पिछले 9 सालों में बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू है. अगर इस पर खुलकर बात की जाए तो ये कहना बेईमानी होगी कि शराब का यहां नामोनिशान नहीं है. आज भी पूर्ण रूप से तो कागजों में शराबबंदी है. चोरी छुपे तो शराब की डिलिवरी हो ही रही है. अक्सर अखबार,टीवी और सोशल मीडिया में शराब की तस्करी, चोरी-छुपे बिक्री और जहरीली शराब से लोगों की अकाल मौत की खबरें आते रहती है.  

बिहार में शराबबंदी की क्या है हकीकत ?

बिहार में शराबबंदी के आड़ में तो सबकुछ हो रहा है, इसलिए यह कह देना की नशा बंद है, तो ये कहना बेईमानी ही होगी. यहां शराब की तस्करी पड़ोसी राज्यों झारखंड, बंगाल और यूपी से धड़ल्ले से की जा रही है. इस पर पुलिसिया कार्रवाई की खबरें अक्सर अखबारों की सुर्खियों में रहती है. इन बातों को अगर दूसरे पहलू को देखे तो बिहार में शराबबंदी कानून से घरेलू हिंसा में कमी देखने को मिली है. बिहार पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक शराबबंदी से पहले 2015 में घरेलू हिंसा के 15,000 से अधिक मामले दर्ज हुए थे जो 2020 तक घटकर 9,000 के आसपास रह गए. 2024  तक यह संख्या और कम होकर 7,500 के करीब पहुंच गई है. आपराधिक घटनाओं की अगर बात करे तो राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार शराब से जुड़े अपराध यानि नशे में मारपीट, दुर्घटना 2015 के 12,000 मामलों से घटकर 2021 में 3,000 के आसपास रह गयी. वही 2024 तक यह और कम हुआ.

शराबबंदी से कितने लोगों ने छोड़ा शराब

बिहार शराबबंदी तो हुई लेकिन कितने लोगों ने शराब को छोड़ दिया , इस पर अगर देखे तो अभी तक दो सर्वे हो चुके हैं. 2018 में पहली बार नीतीश सरकार ने सर्वे कराया था. उसके मुताबिक रिपोर्ट में एक करोड़ 64 लाख लोगों ने शराब छोड़ी है. 2023 में चाणक्य लॉ विश्वविद्यालय और एएन सिन्हा इंस्टिट्यूट ने एक साथ सर्वे कराया . जिसमे एक करोड़ 82 लाख लोगों ने शराब छोड़ने की जानकारी दी है. बिहार में 99% महिलाएं और 93% पुरुष शराबबंदी के पक्ष में है औऱ इसे लेकर सकारात्मक विचार रखते हैं. .

जहरीली शराब से मौत

बिहार में शराबबंदी लागू होने से पहले जहरीली शराब से लोगों की मौत हो जाया करती थी. हालांकि, शराबबंदी लागू होने के बाद इसमे कमी आई. हालांकि, 2016 के बाद जहरीली शराब के चलते कुछ घटनाएं हुईं लेकिन नीतीश सरकार ने इस पर सख्ती से कार्रवाई की. 2016-2024 के बीच ऐसी घटनाओं में 200 से कम मौतें हुई. खासकर रंगों के त्योहार होली के दौरान बड़ी संख्या में जहरीली शराब के सेवन से लोगों की मौत हुई है. सरकारी आंकड़ा तो 200 के आसपास बताता है लेकिन सच्चाई देखी जाए तो यह आंकड़ा इससे ज्यादा भी हो सकता है.

बिहार में शराबबंदी कानून

शराबबंदी कानून को सख्ती से लागू करने के लिए नीतीश कुमार की सरकार ने कड़े कानून बनाए हालांकि कई बार इसमे संशोधन भी किया गया.  सरकार ने अवैध शराब के खिलाफ 6.5 लाख से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया और 147 लाख लीटर शराब जब्त की. 9 साल के दौरान 90 से अधिक शराब माफिया को भी गिरफ्तार किया गया. संसोधन कानून में लोगों को थोड़ी राहत दी गयी. पहली बार पकड़ाए जाने के बाद बांड भरवाकर छोड़ दिया जाता है.

शराब की तस्करी रोकने के लिए भी सरकार ने कई कदम उठाए. सीमावर्ती इलाके में जहां चेक पोस्ट बनाए गए. ड्रोन से भी निगरानी का इंतजाम किया गया. कई जगहों पर क्लोज सर्किट कैमरे से लगाकर निगरानी की गई. हालांकि, शराबबंदी से बिहार सरकार के राजस्व में हजारों करोड़ का बड़ा नुकसान हुआ.

आगामी बिहार चुनाव में छाया रहेगा शराबबंदी का मुद्दा  

आगामी विधानसभा चुनाव में शराबबंदी कानून को लेकर अभी से ही सियासत तेज हैं. सबी अपने-अपने तरीके से लेकर अपनी-अपनी बात अभी से ही रख रहें हैं. अगर सरकार बदली तो शायद शराबबंदी पर आने वाली सरकार कुछ फैसले ले सकती है. जनसुराज पार्टी के सुप्रीमो प्रशांत किशोर ने तो यहां तक एलान कर दिया है कि उनकी सरकार बनते ही एक घंटे में शराबबंदी को हटा दिया जाएगा. उनकी नजर में शराबबंदी का कोई असर नहीं हो रहा है. क्योंकि लोगों के घरों में चोरी-छुपे होम डिलिवरी हो रही है. राज्य को इससे 15 से 20 हजार करोड़ रुपए का हर साल नुकसान हो रहा है. खैर विधानसभ चुनाव में शराबबंदी का एक मुद्दा तो होगा ही, क्योंकि पिछले चुनाव में भी यह नेताओं की जुबान पर था.

कुलमिलाकर देखा जाए तो नीतीश कुमार की सरकार ने बिहार में पूर्ण शराबबंदी करने का फैसला एक बड़ा कदम था. बेशक धरातल पर अभी भी इसका पूरी तरह असर नहीं हुआ. लेकिन सरकार ने अपनी इच्छाशक्ति नशे के खिलाफ तो जरुर दिखलायी.