टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग अभी खत्म होता हुआ तो दिखाई नहीं दे रहा है. हालांकि, रूस ने दावा किया है कि उसकी सेना यूक्रेन सीमा से हटने लगी है. लेकिन इस बात पर अमेरिका को भरोसा बिल्कुल भी नहीं है. अमेरिका का कहना है कि रूस ने सेना वापस बुलाने के बजाय यूक्रेन की सीमा पर 7 हजार सैनिकों की तैनाती और बढ़ा दी है.
मामला क्या है?
अब पहले ये समझते हैं कि आखिर अमेरिका और रूस में यूक्रेन को लेकर बात इतना कैसे बढ़ गया कि दोनों देश युद्ध में उतरने को तैयार हैं. दरअसल, पूर्वी यूक्रेन के रूसी भाषी डोनबास क्षेत्र में 2014 से ही सरकारी बलों ने अलगाववादियों के से लड़ाई लड़ी है. तभी से पूर्वी यूक्रेन में जारी इस संघर्ष में वृद्धि की आशंका जताई जा रही थी. 2014 में ही मास्को ने क्रीमिया प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया था. अब रूस ने यूक्रेन की सीमा पार भी अपनी सेना तैनात कर दी है. अब यूक्रेन नाटो में शामिल होने जा रहा है. जो रूस को बिल्कुल भी पसंद नहीं है.
लेकिन रूस नाटो को लेकर चिंतित क्यों है?
रूस ने मांग की है कि नाटो गारंटी दे कि यूक्रेन कभी भी नाटो में शामिल नहीं होगा. रूस का मानना है कि नाटो रूस को गोलबंद कर रहा है और उसके लिए खतरा पैदा कर रहा है. यह भी माना जा रहा है कि नाटो मिसाइल डिफेन्स रूसी सुरक्षा के लिए खतरा है. इन सबसे ऊपर, नाटो को एक अमेरिकी जियोपोलिटिकल प्रोजेक्ट माना जाता है, जिसने हमेशा से ही रूस को अलग-थलग या हाशिए पर रखने की कोशिश की है.
नाटो है क्या?
नाटो के बारे में बता दें कि नाटो जिसे उत्तर अटलांटिक संधि संगठन के नाम से भी जाना जाता है, वो एक अंतरसरकारी सैन्य गठबंधन है. जो वाशिंगटन संधि द्वारा स्थापित हुआ था. इस संधि पर 4 अप्रैल 1949 को हस्ताक्षर किए गए थे. नाटो का मुख्यालय ब्रुसेल्स, बेल्जियम में है. नाटो एक सामूहिक रक्षा के लिए बनाया गया एक संगठन है जिसके तहत इसके स्वतंत्र सदस्य राज्य किसी बाहरी पार्टी के हमले के जवाब में आपसी रक्षा के लिए सहमत होते हैं और साथ मिलकर लड़ते हैं.
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