टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : रेप पीड़िता के लिए टू फिंगर टेस्ट ( स्त्री के प्राइवेट पार्ट में दो फिंगर डाल कर किया जाने वाला वर्जिनिटी टेस्ट) दोबारा शारीरिक मानसिक गरिमा पर आघात होता है. उसकी प्राइवेसी पर एक बार फिर हमला होता है. इन्हीं कारणों से सुप्रीम कोर्ट ने इसपर रोक लगा दी थी. बावजूद इसके यह देश में अभी भी जारी है. सोमवार को मद्रास हाईकोर्ट के एक फैसले के बाद एक बार फिर टू फिंगर टेस्ट चर्चा में है. दरअसल रेप पीड़ितों पर होने वाले टू-फिंगर टेस्ट पर मद्रास हाईकोर्ट ने तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है. जस्टिस आर. सुब्रमण्यम और जस्टिस एन सतीश कुमार की पीठ ने आदेश जारी कर राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि रेप पीड़ितों पर डॉक्टरों द्वारा किए जाने वाले टू फिंगर टेस्ट पर तत्काल रोक रोक लगाई जाए.
यह था मामला
कोर्ट ने कहा कि नाबालिगों के साथ होने वाले यौन अपराध के मामलों में टू फिंगर टेस्ट अभी भी किया जाता है. इस सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने एक फैसले के दौरान कहा कि यह जांच रेप पीड़िताओं की प्राइवेसी के खिलाफ है. यह उनकी शारीरिक मानसिक गरिमा के अधिकारों का उल्लंघन करता है. दरअसल मद्रास हाईकोर्ट एक 16 साल की लड़की के साथ हुए यौन उत्पीड़न मामले में दोषी करार दिए गए एक शख्स की याचिका सुनवाई कर रही थी. शख्स अपनी उम्रकैद की सजा को कम करने की मांग कर रहा था. किशोरी का टू फिंगर टेस्ट कराने के बाद आरोपी को दोषी करार दिया गया और सजा सुनाई गई.
कैसे होता है टू-फिंगर टेस्ट?
यह जांच का मैन्यूल तरीका है. पीड़िता के प्राइवेट पार्ट में दो उंगली डालकर उसकी वर्जिनिटी टेस्ट की जाती है. प्राइवेट पार्ट में अगर आसानी से दोनों उंगलियां चली जाती हैं तो माना जाता है कि महिला सेक्चुली ऐक्टिव है. मॉर्डन साइंस इस टेस्ट की वैधता को नहीं मानता. पिछले दिनों महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज (MUHS) ने 'फॉरेंसिक मेडिसिन एंड टॉक्सिकोलॉजी' विषय के अपने पाठ्यक्रम से 'साइन्स ऑफ वर्जिनिटी' टॉपिक का हटा दिया गया है. बता दें कि मेडिकल छात्रों के दूसरे साल में इसकी पढ़ाई होती है.
पीड़ित महिला अधिकारी ने किया था विरोध
गत वर्ष अक्टूबर माह में भी यह टेस्ट सुर्खियों में था. कोयंबटूर में इंडियन एयरफोर्स की एक महिला अधिकारी ने अपने कलिग फ्लाइट लेफ्टिनेंट पर रेप का आरोप लगाया था. बाद में पीड़ित अधिकारी का टू फिंगर टेस्ट किया गया जिसपर उन्होंने कड़ी आपत्ति दर्ज की. कहा कि इस जांच से उसे गहरा सदमा पहुंचा है. मामले में राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी संज्ञान लिया था.
क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला
वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने टू-फिंगर टेस्ट पर सख्त टिप्पणी की थी. इसे असंवैधानिक करार देते हुए कोर्ट ने कहा था कि पीड़िता के पिछले यौन अनुभव को ध्यान में रखकर इसे सहमति के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. यह टेस्ट पॉजिटिव भी आ जाए तो नहीं माना जा सकता है कि संबंध सहमति से बने हैं. लिलु राजेश बनाम हरियाणा राज्य के मामले में कोर्ट ने इस पर टिप्पणी की थी. सुप्रीम कोर्ट ने इसे दुष्कर्मी पीड़िता की निजता और उसके सम्मान का हनन करने वाला परीक्षम करार दिया था. कोर्ट ने कहा था कि यह शारीरिक और मानसिक चोट पहुंचाने वाला टेस्ट है.
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