TNP DESK-: बिहार में नेताओं की बोली अमर्यादित हो गई है. बिहार में चुनावी राजनीति सोशल मीडिया पर आकर ठिठक गई है. आरोप-प्रत्यारोप के दौर शुरू हो गए है. एक-दूसरे के खिलाफ अमर्यादित  टिप्पणियां की जा रही है. कोई किसी को "गब्बर" बोल रहा है तो कोई किसी को "पोपट कुमार" कह  रहा है. कुल मिलाकर चुनाव के पहले ही सोशल मीडिया पर जंग छिड़ी हुई है. आखिर इस तरह की जंग सोशल मीडिया पर क्यों छिड़ी हुई है, इसके तो माने - मतलब जरूर होंगे. केवल आगे निकलने की होड़ में ऐसा नहीं हो रहा होगा.  क्या एनडीए को भी भरोसा नहीं है कि उन्हें 2025 के विधानसभा चुनाव में बहुमत मिलेगा? इधर, महागठबंधन को भी क्या भरोसा नहीं है कि उसे जनता का समर्थन मिलेगा? 

हमले का स्तर लगातार गिर रहा है, कटाक्ष किये जा रहे है 

शायद इन्हीं कारणों से एक दूसरे पर हमला तेज हो गया है. कटाक्ष किये जा   रहे है.  बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने लालू प्रसाद यादव को "गब्बर सिंह" कह   दिया. लालू  प्रसाद ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को "पोपट कुमार" बता दिया.  लालू प्रसाद ने सोशल मीडिया पर एक कार्टून पोस्ट किया है.  इसमें नीतीश कुमार को कठपुतली की तरह पेश किया गया है.  जिसे पीएम और डिप्टी सीएम कंट्रोल कर रहे है.  इसके बाद तो डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी भी धैर्य खो दिया और उन्होंने  टिप्पणी कर दी. 

पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी भी क्यों चुप रहने वाले है 
 
इधर, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भी लालू प्रसाद के बेटे और दामाद को नालायक बता दिया.  कहा बेटे और दामाद दो तरह के होते है. लायक और नालायक, लायक बेटा पीएचडी करता है, नालायक बेटा दसवीं भी पास नहीं कर पाता, पिता की कृपा से राजनीति करता है.  इधर, लालू प्रसाद की बेटी रोहिणी आचार्य कहां चुप रहने वाली है .  वह  जीतन मांझी को जवाब दिया- लिखा है- एक बेटा होटल में पकड़ा गया था.  उसके पिता ने कुर्सी की धौंस  दिखा कर  उसे बचाया. एक दफा एक दामाद अपने ससुर का पीए बन जाता है.  वह अफसर को फोन कर फरमान जारी करता है. 

लालू प्रसाद यादव ने कार्टून शेयर कर क्या बताने की कोशिश की है 
 
फिर लालू प्रसाद यादव ने जो कार्टून शेयर किया है, उसमें नीतीश कुमार को कठपुतली की तरह धागे से जुड़ा दिखाया गया है. कमान प्रधानमंत्री और दोनों डिप्टी सीएम के हाथ में है.  लालू प्रसाद ने एक और कार्टून शेयर किया है, इसमें दो बसें  है.  तेजस्वी की बस का नाम है "बेहतरीन सेवा" तो  नीतीश कुमार जिस  बस को चला रहे हैं, उसका नाम है "बेबस सेवा", खैर जो भी हो, लेकिन बिहार में चुनाव आते-आते क्या दृश्य उत्पन्न होंगे, इसका अंदाज आसानी से लगाया जा सकता है. बिहार का चुनाव कोई साधारण नहीं होगा.  कहा जाता रहा है कि बिहार के नेताओं के आंत  में दांत होता है.  उन्हें समझना मुश्किल होता, किसके मन में क्या चल रहा है. इसका आकलन बहुत आसान नहीं होता और यही हाल फिलहाल बिहार में देखने को मिल रहा है. 

रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो