TNPSPECIAL:आजादी के पहले अंग्रेजों के जमाने से भारतीय रेल चल रही है. इसने करवटों के तमाम रंग देखे और आज भी देशवासियों के लिए लाइफ लाइन है. आवगमन और सुवधिजनक सफर का दूसरा नाम भारतीय रेलवे है. जिसने अरबो भारतीय का भरोसा आज तक कायम रखा है. देश की राजधानी दिल्ली में ही हमलोग देखते और सुना करते थे कि राजधानी, शताब्दी और संपर्क क्रांति जैसी प्रीमियम ट्रेनें का डयरेक्ट रूट वही से कनेक्ट रहा है. लेकिन, वक्त से हिन्दुस्तान तो तरक्की की राह पर चल ही रहा है. साथ ही रेलवे का भी कायकल्प हो गया है. अब न सिर्फ वंदे भारत एक्सप्रेस जैसी हाई स्पीड ट्रेने हर राज्य की पटरियों पर घंटों पर में किसी को उसके मंजिल पर पहुंचा रही है, बल्कि उस बदलाव को भी साफ-साफ दिखा रही है.
वंदे भारत देश के हर कोने में पहुंचा रही प्रीमियम रेल की सेवा
भारतीय रेल में हाईस्पीड वंदे भारत एक्सप्रेस दिल्ली आधारित मॉडल के दायरे को तोड़ते हुए देश के कौने-कौने तक अपनी रफ्तार से चौकाने के साथ अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज कर रही है. दरअसल वंदे भारत एक्सप्रेस ने तो ऐसी बदलाव की बयार बहायी कि हर राज्य के हर कौने पर प्रीमियर रेल सेवा पहुंचाया. जिसकी आस दशकों से लगायी गई थी. पहले सभी प्रीमियर ट्रेनों का जमावड़ा दिल्ली ही होता था. यही से शुरु होकर यही पर ही खत्म हो जाती थी. जब से वंदे भारत की दस्तक हुई, वो दायरा भी टूटा औऱ एक नई उम्मीद भी देश के दूर-दराज गांवों में मौजूद मुसाफिरों की जगी.
देश की पहली राष्ट्रीय ट्रेन बन चुकी है
आज देखिए देश भर में हाईस्पीड वंदे भारत ट्रेन का जाल सा बिछ गया है. अगर नजरे दौडाए तो हिन्दुस्तान के उत्तर में श्रीनगर-कटरा, दक्षिण में मैंगलोर-तिरुवनंतपुरम, पश्चिम में अहमदाबाद-ओखा और पूर्व में न्यू-जलपाईगुड़ी-गुवाहाटी समेत देश भर में हाव से बात करने वाली इस ट्रेन ने अपनी मौजूदगी दर्ज करायी. इसका ठिकना या फिर कहे आशियाना सिर्फ राजधानी दिल्ली नहीं है. आज 24 राज्यों और 160 से ज्यादा स्टेशनों को वंदे भारत जोड़ रही है. अगर सही मायने में देखा जाए तो यह देश की पहली राष्ट्रीय ट्रेन बन चुकी है.
जहां आजादी के बाद नहीं पहुंची ट्रेन वहाँ भी लोगों ने वंदे भारत को देखा
वंदे भारत एक्सप्रेस ने रेलवे कनेक्टिविटी में भी गजब का काम कर दिखाया, जो तकनीकी रूप से मुमकिन नहीं माना जाता था. आज यह ट्रेन ऐसे दुर्गम और अनाजान जगहों को जोड़कर मुसाफिरों के लिए उम्मीद बन रही है. जहां ट्रेन चलना ही एक सपना सरीखा था. जम्मू-कश्मीर में श्रीनगर से कटरा के बीच बर्फीले रास्तों, बनिहाल सुरंग और दुनिया के सबसे ऊंचे रेल पुल 'चेनाब ब्रिज' को पार करते हुए इस दुर्गम सफर को वंदे भारत महज 3 घंटे में पूरा कर लेती है. इसे चमत्कार और तरक्की करते हिन्दुस्तान की नई इबारत यह ट्रेन लिख रही है, जिसकी तारीफ के कितने भी बोल बोले जाए तो कम ही होंगे. दक्षिण में चेन्नई से नागरकोइल और मदुरै से बेंगलुरु जैसी सेवाएं शुरू होकर दक्षिण भारत के छोर तक तेज और आरामदायक सफर मुहैय्या करा रही है. खुशखबरी ये भी है कि वंदे भारत जल्द ही कर्नाटक में बेंगलुरु से मैंगलुरु तक चलेगी. दरअसल, सकलेश्वर घाट सेक्शन पहले केवल धीमी गति से पार किया जा सकता था. अब इस रास्ते पर विद्युतीकरण का काम अंतिम चरण में है. लिहाजा, जल्द ही यहां की पटारियों पर भी वंदे भारत हवा से बात करते हुए दिखेगी औऱ मुसाफिरों को उनके मंजिल तक छोड़ेगी.
भारतीय रेल में एक बदलाव की मशाल ही जला
वंदे भारत एक्सप्रेस मेक इन इंडिया की कामयाबी के एक बेहतरीन नजीर पेश करती है. 2019 में पहली बार वंदे भारत सेवा शुरू की गई थी. सोचिए सिर्फ छह साल यानि आज 2025 तक 70 रूट्स पर 136 से ज्यादा इसकी सेवाएं चल रही हैं. अब तो इस ट्रेन में 8, 16 के बाद 20 कोच तक के आधुनिक सुवाधिए मुहैया कराई जा रही है. इस ट्रेन ने तो भारतीय रेल में एक बदलाव की मशाल ही जला दी है. क्योंकि यह भारत के गांव, कस्बों और छोटे शहरों के यात्रियों के लिए आत्म-गौरव की यात्रा बन चुकी है.
वंदे भारत सिर्फ एक सुपरफास्ट रेल नहीं, बल्कि एक साफ संदेश भी देश के बांशिदों को देती है कि विकास की पहली किरण सिर्फ दिल्ली में ही रोशनी नही देंगी, बल्कि पूरा भारत इसका फायदा लेगा.
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