रांची (Ranchi):- सियासत की सर्पिली राहों में चलना इतना आसान नहीं है. मंझे हुए सियासतदान भी इसमे कभी-कभी फिसल कर गिर जाते हैं, इसके बाद फिर उठकर संभलना आसान नहीं रहता, क्योंकि यही राजनीति की तासीर औऱ मिजाज होती है. यहां किसी के इशारे पर नहीं चलती, बल्कि अपने मन औऱ अपनी चाहतो से खुद ब खुद अपनी मंजिल तय करती है. इसके बाद तो समय के साथ अपना रंग बिखेरते रहती है. इसमे कभी दुश्मन भी दोस्त, तो कभी साथ-साथ रहने वाले एक दूसरे की आंखों को नहीं सुहाते हैं.

झारखंड भाजपा में बदलाव की बयार !

झारखंड भाजपा में काफी कुछ उलट-पलट गया, जब झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने अपनी पार्टी जेवीएम का विलय भाजपा में कर दिया. बाबूलाल को एकबार फिर वही ओहदा और अहमियत भाजपा ने दिया. एक मंझे हुए आदिवासी नेता की कमान में लोकसभा औऱ विधानसभा चुनाव लड़ी गई. लेकिन, भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन पिछले चुनावों के मुकाबले फीका रहा. इस दरमियान झारखंड में पांच साल तक रिकॉर्ड मुख्यमंत्री बनकर शासन करने वाले रघुवर दास राज्य से दूर हट चुके थे. ओडिशा का राज्यपाल रघुवर दास बना दिए गये था. उस वक्त बहुत कुछ गपशप, कहानियां और अंदूरुनी अनबन भाजपा के अदर ही चलने की खबरे आती थी. तब कहा गया कि बाबूलाल को कोई विघ्न-बांधा न हो, बल्कि खुलकर बैटिंग करने के लिए रघुवर दास को हटा दिया गया. हालांकि, आलाकमान ने जो कदम औऱ फैसला उठाया था, उससे उतनी आशातित सफलता नहीं मिली, बल्कि भाजपा राज्य में लगातार दूसरी बार झारखंड की सत्ता से चुक गई. ऐसा भी नही था कि भाजपा का लश्कर कमजोर था,चंपई सोरेन, सीता सोरेन औऱ गीता कोड़ जैसे नेताओं ने भी दामन थामा था.

अभी सूबे में हेमंत सोरेन की सरकार का राज चल रहा है. जेएमएम, कांग्रेस और राजद ने दमदार तरीके से दुबारा सत्ता हासिल की. इस दौरान विपक्ष के तौर पर भाजपा के तेवर उतने बुलंद नहीं दिखलाई पडते. नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल तो मुखर तौर पर हेमंत सरकार के खिलाफ बोलते हैं, लेकिन बाकी भाजपा के बडे नेता सीता-गीता, चंपई सोरेन और अर्जुन मुंडा उतना नहीं बोलते, जबकि जोर-शोर से आवाज उठानी चाहिए थी. इस दौरान बाबूलाल के बाद अगर कोई आवाज विपक्ष की तरफ से सुनाई पड़ी तो पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की रही. राज्य सरकार की कार्यशैली औऱ नीतियों पर लगातार रघुवर दास प्रहार करते दिख रहे हैं.

दुमका में बाबूलाल और रघुवर दास की मुलाकात  

अभी-अभी संथाल दौरे में नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी की पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास से रविवार को दुमका परिसदन में मुलाकात हुई. यह मिलन स्वाभाविक और  संयोग भी कहा जा सकता है. लेकिन, इस मुलाकात के कई मायने औऱ रंग भी बिखरेंगे. क्योंकि जिस तरह से संथाल में रघुवर दास ने मुखर अंदाज में सभाए की और पुराने तेवर दिखा रहे हैं. इससे तो जानकार जरुर समझ रहे है कि झारखंड भाजपा में रघुवर दास की दखल अब बढ़ने वाली है. याद होगा जब अपने मुख्यमंत्री काल के दौरान रघुवर दास की हनक, अंदाज औऱ अधिकारियों की फटकार हमेशा चर्चा में रहा करती थी.  

हफ्ते भर पहले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मिलने बाबूलाल मरांडी दिल्ली गए हुए थे, उसी दिन पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर आदिवासी परंपरा को सम्मान देने के लिए राज्य में पेसा लागू करने की मांग कर दी. रघुवर की पेसा मामले में बढ़-चढ़कर आगे आने के बाद कांग्रेस पार्टी ने भी इसे लेकर विचार-विमर्श शुरु कर दिया. देखा जाए तो रघुवर दास ने उस नब्ज को पकड़ा, जो आदिवासी समाज चाहता है. अंदरखाने से खबर तो ये आ रही है कि गृहमंत्री अमित शाह से बाबूलाल मरांडी से राज्य में रघुवर दास की सक्रियता को संगठन से जोड़ने का निर्देश दिया है. भाजपा आलाकमान भी इस चिज को समझ चुकी है कि उसे झारखंड में एक ऐसे लीडर की जरुरत है, जो हेमंत सोरेन की सरकार के खिलाफ खुलेआम और बुलंद आवाज में बात रख सके. इस रोल में पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास राज्य बीजेपी खेंमे में अव्वल दिखलाई पड़ते हैं.

विधानसभा चुनाव में कई नामी चेहरे हार गये  

दरअसल, हकीकत भी यही है कि भाजपा की विधानसभा चुनाव में मिली करारी पराजय और कई नामचीन नेताओं की पराजय से उनका कुनबा उतना मजबूत नहीं दिखलाई पडता, जो कभी पहले दिखता था. इसलिए रघुवर दास को एक उम्मीद के तौर पर देखा जा रहा है, जो राज्य में भाजपा को एकबार जगाकर एकजुट करेंगे और संगठन को मजबूती देंगे.  आलाकमान झारखंड भाजपा की हालत पर बारिकी से नजर रखे हुए है. लिहाजा, इसे देखते हुए ही रघुवर दास को एक्टिव करने के लिए अमित शाह और केंद्रीय नेतृत्व ने प्रदेश अध्यक्ष को मनाया., तब माना जा रहा है कि दोनों की दुमका में यह मुलाकात हुई. हालांकि, दोनों नेताओं ने इस पर लिखा कि इस दरमियान संगठन पर चर्चा हुई थी.

सोचिए सियासत में दूरियां खुद से नहीं बनती , बल्कि हालात ऐसे पैदा होते की बन जाती है. दूसरे भाषा में बोले तो बेशक दिल मिले न मिले हाथ मजबूरन ही सही मिलाना जरुरी हो जाता है. इसी की बानगी दुमका परिसदान में बाबूलाल मरांडी और रघुवर दास के बीच यह मुलाकात की तस्वीर कहती है. सच में देखा जाए तो सियासत में कोई दोस्त औऱ दुश्मन नहीं होता, सबकुछ वक्त अपने हिसाब से तय करती है.  

इधर, 10 जुलाई को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह पूर्वी क्षेत्र परिषद की बैठक में शामिल होने राजधानी रांची आ रहे हैं. इस दौरान ही झारखंड भाजपा को नया प्रदेश अध्यक्ष भी मिलना है. चर्चा तो ये है कि रघुवर दास को ये सौगात और बड़ी जिम्मेदारी मिलने वाली है. अगर ऐसा होता है तो जाहिर तौर झारखंड भाजपा में एक बदलाव तो दिखेगा, जिसकी तत्काल जरुरत अभी दिखती है.

रिपोर्ट- शिवपूजन सिंह