टीएनपीडेस्क(TNPDESK): देश में सभी राजनीतिक दल मुफ्त का सामान और पैसा देकर अपनी नई पॉलिटिक्स की शुरुआत कर चुकी है. राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार सभी के द्वारा एक अलग-अलग योजना चलाई जा रही है. जिसमें बिना किसी काम के पैसे पहुंच रहे हैं. तो घर पर राशन भी मुहैया कराया जा रहा है. ऐसे में इसका दूरगामी परिणाम घातक हो सकता है. लेकिन जब CJI के रूप में बी आर गंवई ने शपथ ली है. तो इन योजनाओं पर खतरा भी मंडरा सकता है. क्योंकि कई याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर है जो फ्री योजना के खिलाफ है. ऐसे में अगर नए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के कई आदेशों और टिप्पणी को देखें. तो पूर्व में कह चुके हैं कि फ्री योजना के जरिए बेरोजगारों की बड़ी जमात खड़ी हो रही है.
तो चलिए सबसे पहले आपको बताते हैं की BR गंवई कौन है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के रिटायर होने के बाद जस्टिस गंवई ने देश के 52 वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लिया है. इनका कार्यकाल 6 महीने का होगा 23 दिसंबर को रिटायर हो जाएंगे.
कौन है बीआर गवई
इनका पूरा नाम न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गंवई है. 1992 से 1993 तक मुंबई हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजन रह चुके हैं. 17 जनवरी 2000 में नागपुर खंडपीठ के लिए सरकारी वकील और लोक अभियोजन नियुक्त कर दिए गए. इसके बाद 14 नवंबर 2003 को मुंबई हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश बने फिर 12 नवंबर 2005 को स्थाई न्यायाधीश बना दिए गए. इसके बाद 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बनाए गए.
कई अहम और बड़े फैसले
इसके अलावा इनके कई बड़े फैसलों में देखे तो नोटबंदी से लेकर के इलेक्टोरल बॉन्ड और बुलडोजर कार्रवाई शामिल है.नोटबंदी के खिलाफ जब याचिका दायर की गई थी तो उस बेंच के हिस्सा बीआर गवई भी थे. उसमें इन्होंने टिप्पणी की थी कि किसी भी सरकार को करन्सी बंद करना यानि अवैध घोषित करने का अधिकार संविधान से मिला है. उसमें कुछ गलत नहीं है. इसके अलावा देश में बुलडोजर की कार्रवाई धड़ल्ले से जारी थी जिस पर भी इन्होंने सख्त रुख अपनाया था. बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ आदेश दिया था कि बिना किसी संवैधानिक तरीके से कार्रवाई नहीं की जा सकती. बुलडोजर चलाना सही नहीं है सरकार को फटकार भी लगाया था. उसके बाद जब इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर फैसला आया तो उसकी देश और दुनिया में चर्चा थी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राजनीतिक दल को इलेक्टोरल बॉन्ड को सार्वजनिक करना पड़ा था.
राहुल गांधी से लेकर राजीव गांधी केस में बड़ा फैसला
अगर इनके बड़े फैसलों को देख तो राजीव गांधी हत्याकांड में दोषियों की रिहाई इन्हीं की खंडपीठ ने सुनाया था. 30 साल से ज्यादा समय से जेल में बंद आरोपियों की रिहाई को मंजूरी दी थी. यह मानते हुए की तमिलनाडु की सरकार के सिफारिश पर राज्यपाल ने कोई कार्रवाई नहीं की थी. इसके अलावा वणियार समुदाय को तमिलनाडु सरकार ने आरक्षण दिया था. जिस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया था. साथ ही अन्य पिछड़ा वर्ग के साथ भेदभावपूर्ण माना था. और सबसे बड़ी कार्रवाई कि जिक्र करें तो 2024 में बुलडोजर कार्रवाई पर कहा था कि दोषी होने पर किसी की संपत्ति को ध्वस्त करन असंवैधानिक है. कार्रवाई बिना कानून प्रक्रिया की नहीं कर सकते. अगर होती है तो संबंधित अधिकारी पर कार्रवाई हो जाएगी.
इसके अलावा बड़े फसलों में जिक्र आता है कि राहुल गांधी को राहत दी थी. जब मोदी सरनेम वाले केस में 2 साल की सजा सुनाई गई थी, और लोकसभा से सदस्यता रद्द कर दिया गया था. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई करते हुए एक बड़ा फैसला दिया था और लोकसभा में इनके सदस्यता वापस से बहाल हुई थी.
दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया शराब घोटाले में जेल में बंद थे. लेकिन जब याचिका सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची थी तो इनकी बेंच ने ही जमानत दिया था. इसके अलावा शराब घोटाले में brs नेता कविता को भी बरी किया था.
न्यायधीश रहते मुफ़्त योजना के खिलाफ टिप्पणी
अब सबसे बड़ी टिप्पणी इनके न्यायधीश रहते देखे तो फ्री की योजनाओं को लेकर थी. मुफ़्त योजना को लेकर भी इनका रुख साफ रख रहा है. और एक मामले की सुनवाई के दौरान मुक्त योजनाओं पर केंद्र और राज्य सरकार को फटकार लगाया था. टिप्पणी करते हुए कहा था कि एक ऐसी जमात खड़ी की जा रही है जो लोग काम करना नहीं चाहते. उन्हें फ्री में राशन पैसा मिल रहा है ,तो लोग काम क्यों करेंगे. यह एक ऐसी जमात खड़ी हो जाएगी जो आने वाले दिनों में सही नहीं होगा.
मंईयां योजना पर खतरा
ऐसे में अब उनके तमाम फैसलों और आदेशों को मिलाकर देखें तो झारखंड से लेकर केंद्र तक इसका असर हो सकता है. झारखंड में मंईयां सम्मान योजना के तहत ₹2500 हर माह दिए जा रहे हैं. इसके अलावा केंद्र सरकार 80 करोड लोगों को फ्री राशन दे रही है. जिस पर कई बार सवाल खड़ा हुआ है. तो ऐसे में अगर याचिका दायर होती है तो कोई बड़ा निर्णय मुख्य न्यायाधीश ले सकते हैं और इन योजनाओं को रोक लगाया जा सकता है.
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