TNP DESK- इंडिया गठबंधन की दिल्ली बैठक से सीएम हेमंत की अनुपस्थिति को लेकर सियासी गलियारों में चर्चा तेज हो चुकी है. एक तरह जहां पूर्व सीएम बाबूलाल के द्वारा यह दावा किया जा रहा है कि सीएम हेमंत को भी इस बात का भान हो चुका है कि इस बेमेल गठबंधन का कोई सियासी भविष्य नहीं है, वहीं दूसरी ओर जदयू-राजद सहित दूसरी सहयोगी संगठन के द्वारा दबी जुबान इस पर नाराजगी जतायी जा रही है, दावा किया जा रहा कि यदि पार्टी महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य के स्थान पर यदि खुद सीएम हेमंत इस बैठक में शामिल हुए होते तो इसका एक मजबूत संदेश जाता.

सीएम हेमंत की गैरमौजूदगी का कोई सियासी अर्थ नहीं

जबकि दूसरी झामुमो से जुड़े लोगों का दावा है कि एक तरफ जब विधान सभा का सत्र चल रहा हो, दूसरी तरफ खुद सीएम हेमंत आपकी सरकार, आपकी योजना आपके द्वारा के माध्यम से लोकसभा चुनाव से ठीक पहले लोगों से फीडबैक लेने में जुटे हों. उस हालत में उनकी अनुपस्थिति का कोई दूसरा सियासी अर्थ निकालना तार्किक नहीं है.

सीएम हेमंत के उपर ईडी और सीबीआई का दवाब

लेकिन इन तमाम दावों से अलग कुछ सियासी जानकारों का मानना है कि इंडिया गठबंधन जैसी महत्वपूर्ण बैठक से सीएम हेमंत की गैरमौजदूगी की मुख्य वजह सीएम हेमंत के उपर सीबीआई और ईडी का दवाब है. गिरफ्तारी की तलवार लटका कर केन्द्र सरकार उनको इंडिया गठबंधन से दूर रखना चाहती है. अमित शाह और दूसरे केन्द्रीय नेताओं के द्वारा हेमंत सोरेन के सामने दो विकल्प दिया गया है, पहला अपनी गिरफ्तारी के लिए तैयार रहना, और दूसरा इंडिया गठबंधन से अपना नाता तोड़ कर अपने बूते चुनाव लड़ना, ताकि लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत के सामन कोई दीवार नहीं खड़ी हो. हालांकि इन सियासी जानकारों के द्वारा इस बात का कोई जवाब नहीं दिया जा रहा है कि उस हालत में भाजपा तीसरे विकल्प पर विचार क्यों नहीं कर रही है, वह विकल्प है सीएम हेमंत भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ें.

जो झूक जाये वह हेमंत नहीं

जबकि कुछ जानकारों का आकलन है कि सीएम हेमंत अब किसी भी दवाब के आगे झुकने को तैयार नहीं है. यदि उनकी गिरफ्तारी होनी होती हो तो कब की हो गयी होती, फिलहाल लोकसभा चुनाव तक दूर दूर कर गिरफ्तारी की संभावना नजर नहीं आती. दरअसल सीएम हेमंत की नाराजगी कांग्रेस से हैं. जिस प्रकार 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस झारखंड में अपनी दावेदारी कर रही है, झामुमो उससे सहज नहीं है, झामुमो इस बार किसी भी सुरत में सात सीटों से कम पर चुनाव लड़ने को तैयार नहीं है. यह आंकड़ा 8 का भी हो सकता है, जबकि कांग्रेस लगातार सीटों की संख्या बढ़ाती जा रही है, सीएम हेमंत बाकि के छह सीटों में से राजद, जदयू को भी खुश करना है, उनका दावा है कि कांग्रेस की तुलना में पलामू, चतरा, कोडरमा और गोड्डा में राजद कहीं ज्यादा मददगार हो सकता है, ठीक उसी तरह गिरिडीह, रांची और हजारीबाग में जदयू का साथ कांग्रेस की तुलना मे ज्यादा परिणाम दे सकता है, जबकि  कांग्रेस की उलझन दूसरी है, वह किसी भी कीमत पर सिर्फ सीटों की संख्या बढ़ाना चाहती है, लेकिन इन सीटों पर जीत की जिम्मेवारी भी वह सीएम हेमंत के कंधों पर डालना चाहती है. यही कांग्रेस की वह कमजोर कड़ी है, जिसके कारण हेमंत में कुछ हद तक नाराजगी है. हालांकि सिर्फ इसके कारण हेमंत ने बैठक से दूरी बना ली इसमें कोई दम नहीं है, दरअसल विधान सभा का चालू सत्र और दूसरे कामकाज को लेकर उनके लिए इस वक्त समय निकालना मुश्किल हो गया था.

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