Ranchi-लोकसभा की 40 में से 12 सीटों पर प्रत्याशी उतारने की हसरत पाल रहे कांग्रेस को बिहार में लालू यादव ने बड़ा सियासी झटका दिया है. गठबंधन के अंदर बगैर सीटों की सहमति के लालू यादव ने प्रत्याशियों का एलान कर कांग्रेस के पैरों तले जमीन हिला दी है. हालांकि लालू यादव की इस घोषणा के बाद कांग्रेस की कोशिश किसी भी कीमत पर इंडिया एलाइंस को बचाये रखने की है, लेकिन लालू यादव अपने स्टैंड से पीछे हटने को तैयार नहीं है. राजद किसी भी कीमत पर कांग्रेस को छह से अधिक सीट देने को तैयार नहीं है. दरअसल इसके पीछे की वजह 2020 का विधान सभा का चुनावी परिणाम है. जब लालू यादव की अनुपस्थिति में कांग्रेस 70 सीटें अपने खाते में ले जाने में सफल रही थी, लेकिन महज 19 प्रत्याशी मैदान में अपना जलबा दिखलाने में कामयाब रहें. इसके विपरीत महज 19 सीट पर चुनाव लड़ कर माले के 12 विधायक को विधान सभा पहुंचाने में सफल रहे और राजद खुद 114 सीट पर चुनाव लड़कर 75 सीटों पर परचम फहराने में सफल रही. अब 2020 का वही चुनाव परिणाम कांग्रेस की राह में रोड़ा बनता दिख रहा है. राजद को इस बात का डर है कि यदि इस बार भी कांग्रेस को उसकी औकात से ज्यादा सीटें दे दी गयी, तो आखिरकार इसका अंतिम नुकसान इंडिया गठबंधन को भुगतना पड़ सकता है.

पलामू में ममता और चतरा में सत्यानंद को आगे कर लालू ने किया खेल

राजद की इस पेच का असर झारखंड की सियासत में भी देखने को मिल रहा है. भले ही इंडिया गठबंधन में अभी तक सीटों का पेच फंसा हो, लेकिन पलामू से ममता भुइंया और चतरा से सत्यानंद भोक्ता अपनी दावेदारी का एकतरफा एलान कर चुके हैं और दावा किया जाता इसके पीछे लालू का वरदहस्त है, झारखंड में गठबंधन को बनाये रखने का कुल दामोदमार झामुमो पर है और इसका कारण है कि बिहार की तरह झारखंड में भी कांग्रेस बेवजह सीटों पर अपनी दावेदारी ठोक कर गठबंधन की राह को मुश्किल बना रही है. दावा किया जा रहा कि कांग्रेस की नजर झारखंड की करीबन सात सीटों पर है, लेकिन चेहरों का सन्नाटा है. रांची से लोहरदगा तक यही हालत है. हजारीबाग में जिस जेपी पटेल को आगे कर नैया पार करने की कोशिश की जा रही है, उस पर भी अब सवालिया निशान खड़ा होने लगा है. स्थानीय जानकारों दावा है कि अंतिम वक्त में जेपी पटेल की इंट्री से महागठबंधन की राह आसान नहीं होने वाली है. युवा मतदाताओं में अम्बा का एक अपना जादू है. जिसकी झलक  अम्बा प्रसाद में दिखलायी नहीं पड़ती. ठीक यही हालत पलामू की है, वहां भी कांग्रेस के पास कोई चेहरा नहीं है. लेकिन यहां भी  कांग्रेस इस सीट को गठबंधन के किसी दूसरे सहयोगी के हवाले करने को तैयार नहीं है.इस हालत में सवाल खड़ा होता है कि क्या बिहार की राह झारखंड भी चलने वाला है, क्या कांग्रेस की इस अनिंयत्रित दावेदारी के आगे राजद के बाद अब झामुमो भी हथियार डालने वाला है. बहुत जल्द ही इसकी तस्वीर साफ होने वाली है. लेकिन यदि बिहार की तरह झामुमो भी अपनी शर्तों पर कांग्रेस को नचाता नजर आये तो यह हैरत की बात नहीं होगी.

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