Ranchi जहां एक तरफ झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में से 11 पर भाजपा अपने सियासी पहलवानों की घोषणा चुनावी समर में आगे बढ़ चुकी है, वहीं महागठबंधन के अंदर सीट शेयरिंग का पेच अभी भी अनसुलझा नजर आता है. हालांकि कांग्रेस और झामुमो बीच सात-सात सीटों पर सहमति के दावे जरुर किये जा रहे हैं, लेकिन इन दोनों दलों की इस आपसी सहमति में राजद, माले और सीपीआई की कितनी सहमति है, एक बड़ा सवाल है और यही कारण है कि जहां राजद कोडरमा से लेकर गोड्डा तक तोल ठोकने की तैयारी में है. वहीं कोडरमा में माले भी अपना कैम्पेन तेज करता नजर आ रहा है. एक तरफ राजद के सुभाष यादव के समर्थक लालटेन की जीत का दावा ठोंक रहे हैं, वहीं दूसरी ओर माले समर्थक राजकुमार यादव के पक्ष में मैदान में उतरने को उतारु हैं.
राजद माले समर्थकों के बीच पसर रही है नाराजगी
दरअसल राजद और माले अभी भी इस जवाब की खोज में हैं, इस गठबंधन में उनके हिस्से कौन सी सीट आने वाली है. और यही से राजद और माले समर्थकों के बीच नाराजगी पसरती नजर आ रही है. झामुमो कांग्रेस की ओर से एकतरफा सात सीटों पर दावेदारी को ना तो राजद हजम करने की स्थिति में है और ना ही माले और सीपीआई स्वीकार करने को तैयार. और इसी सियासी उहापोह के कारण इन दलों के सामने अपने आप को इंडिया गठबंधन के साथ बनाये रखने की चुनौती खड़ी होती नजर आने लगी है. मजेदार बात यह है कि यह स्थिति तब है, जबकि झारखंड कांग्रेस चेहरों की संकट से जुझ रहा है. उसकी कुल रणनीति अपने हिस्से में अधिक से अधिक सीटें लेकर उन थके-हारे-पुराने चेहरों पर दांव लगाने की है, जिनके सियासी हनक का खात्मा हुए एक अर्सा गुजर गया. चाहे वह सीट रांची संसदीय सीट हो या फिर पलामू. आज कांग्रेस के पास सियासी अखाड़े में उतरने के लिए मजबूत सियासी पहलवान ही नहीं है. कांग्रेस की बेचारगी को इससे भी समझा जा सकता है कि पलामू सीट पर उसने अपना खुंटा तो ठोक दिया, लेकिन उसे चुनाव लड़ाने के लिए कभी हृजारीबाग में पहलवान की खोज करनी पड़ रही है तो कभी बिहार के सासाराम से मीरा कुमार को पलामू के अखाड़े में झोंकने की रणनीति बनानी पड़ रही है.
आज भी पलामू में कांग्रेस की तुलना में मजबूत स्थिति में है राजद
जबकि उसी पलामू में राजद के एक से बढ़कर एक सियासी पहलवान है. भले ही कांग्रेस की इस दावेदारी की वजह से राजद का एक मजबूत सिपाही घूरन राम घूरन राम कमल का दामन थाम चुका हों, लेकिन कामेश्वर बैठा से लेकर छतरपुर विधान सभा सीट से पांच-पांच बार विधायक रहे राधा कृष्ण किशोर की मौजूदगी अभी भी बनी हुई है. दावा किया जाता है कि मंत्री सत्यानंद भोक्ता ने राधा कृष्ण किशोर को पलामू संसदीय सीट का ऑफर के साथ ही राजद में इंट्री करवायी थी. लेकिन कांग्रेस की जिद के कारण यह राजद के हाथ से निकलती दिख रही है. अब देखना होगा कि इस उहोपोह के बीच पलामू में इंडिया गठबंधन का चेहरा कौन होता है? बिहार से मीरा की इंट्री या विमला के आसरे लड़ाई लड़ने भर की रस्म निभाई जाती है, या फिर राजद की उधारी के साथ इस लड़ाई को एक दिलचस्प मोड़ तक पहुंचान की कोशिश की जाती है. क्योंकि कांग्रेस की जिद में पलामू अभी से ही भाजपा के हाथ जाता दिखने लगा है.
राजद की नयी रणनीति
और शायद यही कारण है कि राजद भी अब नयी रणनीति पर आगे बढ़ने की कोशिश करता दिख रहा है.जिस राजद के बारे में चर्चा थी कि उसे एक सीट देकर मना लिया जायेगा, वही राजद अब किसी भी हालत में दो सीटों से कम पर समझौते को तैयार नहीं. झारखंड की सियासत में राजद का एक बड़ा चेहरा माने जाने संजय यादव का दावा है कि इस बार राजद किसी भी हालत में दो सीट से कम पर समझौता नहीं करने जा रही. क्योंकि किसी भी पैमाने पर हम झारखंड में कांग्रेस के कमतर नहीं है, यहां हमारा एक मजबूत जनाधार है. हमारे पास चुनाव लड़ने और जीतने वाले चेहरे हैं. पार्टी का झंडा उठाने वालों की एक बड़ी फौज है. जबकि इसके विपरीत कांग्रेस को अपना पूरा खेल बोरो प्लेयर के सहारे खेलने की रणनीति पर काम कर रहा है, यानि जनाधार हमारा और कार्यकर्ता हमारा और टिकट कांग्रेस का, तो फिर इस हालत में हम खुद ही मैदान में उतर कर दो दो हाथ क्यों नहीं करें? पलामू में कांग्रेस का चेहरा कौन है? किसके बूते सियासी अखाड़े में बीडी राम को चुनौती पेश की जायेगी? ठीक यही हालत कोडरमा और गोड्डा संसदीय सीट की भी है. इन तीनों ही लोकसभा में हम कांग्रेस की तुलना में मजबूत स्थिति में है. संजय यादव के बयान के बाद यह साफ है कि राजद की नजर कोडरमा के साथ ही गोड्डा संसदीय सीट पर भी है. और शायद यही कारण है कि जहां कोडरमा से सुभाष यादव की सक्रियता तेज हो चुकी है, सुभाष यादव के समर्थक पूरे लोकसभा क्षेत्र में कैंपेन चला रहे हैं. वहीं संजय यादव गोड्डा की नजर गोड्डा संसदीय सीट जमी हुई है. हालांकि बातचीत के दौरान सुभाष यादव सब कुछ राजद आलाकमान पर छोड़ने की बात करते हैं, और कोडरमा में चल रहे कैंपेन को अपने समर्थकों का अति उत्साह बताते हैं. लेकिन यह खेल इतना सरल नहीं है. दरअसल यह दबाव बनाने की एक रणनीति का है. इस हालत में देखना दिलचस्प होगा कि यदि राजद को दो सीटों से कम पर समटने की कोशिश की जाती है, तो उसका रिजल्ट क्या आता है, क्योंकि यह खबर अब तैरने लगी है कि राजद दो सीट से कम की हिस्सेदारी की स्थिति में दोस्ताना संधर्ष की राह पकड़ सकती है, उसके रणनीतिकारों का मानना है कि हमारे सियासी भविष्य के लिए यही रास्ता सबसे ज्यादा उपयुक्त है, इस दोस्तना संघर्ष में हम अपने पुराने आधार को वापस लाने की राह पर आगे बढ़ सकते हैं, जबकि कांग्रेस के साथ बेमन से खड़ा होने की स्थिति में हमारी पकड़ और भी कमजोर होगी.
                            
                        
                
                
                
                
                
                
                
                
                
                
                
                
                
                
                
                
                
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