TNP DESK : बिहार की राजनीति की अपनी तासीर होती है. 2025 के विधानसभा चुनाव में एनडीए, इंडिया ब्लॉक और प्रशांत किशोर की पार्टी की अग्नि परीक्षा होने जा रही है. 2025 के विधानसभा चुनाव के पहले नए ढंग की "राजनीतिक खिचड़ी" अगर पक जाए, तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए. वैसे, एनडीए को लेकर बिहार के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने कह दिया है कि विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के चेहरे पर ही लड़ा जाएगा. लेकिन इसके भी कई राजनीतिक माने- मतलब है. लोग यह सवाल जरूर कर रहे हैं कि प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा का कितना महत्व हो सकता है? मतलब कहा जा सकता है कि एनडीए में भी सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है. दूसरी ओर इंडिया ब्लॉक की बात अगर की जाए, तो फिलहाल इंडिया गठबंधन की चुनौतियां कम नहीं है. नवंबर" 2024 में जो उपचुनाव हुए हैं, उसमें इंडिया ब्लॉक को झटका लगा है. इस झटके के बाद भी इंडिया ब्लॉक बाहर निकलने के बजाय राजद और कांग्रेस में दरार दिखने लगी है.
इंडिया ब्लॉक में दिखने लगी है दरार
राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी गठबंधन के नेतृत्व को लेकर यह दरार साफ-साफ दिखाई दे रही है. 2020 में महागठबंधन ने एनडीए के सामने कड़ा चुनौती दी थी. उस समय लोजपा एनडीए से अलग चुनाव लड़ रही थी. एनडीए 125 तो महागठबंधन 110 सीट जीती थी. इस बार चिराग पासवान की पार्टी एनडीए के साथ है. इस बार बिहार में एनडीए ने अपना लक्ष्य 225 पार का रखा है. दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन में राष्ट्रीय नेतृत्व के सवाल पर राजद और कांग्रेस में दूरी बढ़ गई है. राजद ने ममता बनर्जी को संयोजक बनने की वकालत कर रहा है. इस वजह से दोनों दलों में दो दशक पुराने रिश्ते में दरार दिखने लगा है. इधर, बिहार में नई राजनीति का नारा देकर उतरी प्रशांत किशोर की पार्टी मेहनत तो कर रही है, लेकिन उसकी मेहनत सीटों में बदलेगी अथवा नहीं. यह अभी भविष्य के गर्भ में है.
उपचुनाव का परिणाम बहुत कुछ बता रहा है
विधानसभा की चार और विधान परिषद की एक सीट पर हुए उपचुनाव में प्रशांत किशोर की पार्टी को कोई सफलता नहीं मिली है. 2025 के चुनाव में प्रशांत किशोर की भी अग्नि परीक्षा होगी. बिहार में नए तरह के गठबंधन का अगर उदय हो जाए, तो इसे आश्चर्य जनक नहीं माना जाना चाहिए. क्योंकि धीरे-धीरे ही सही जमीन तैयार होने शुरू हो गई है. इस बीच संविधान निर्माता बाबासाहेब अंबेडकर के बारे में बयान को लेकर विवाद छिड़ गया. एनडीए और इंडिया ब्लॉक आमने-सामने हो गया. राहुल गांधी के खिलाफ मुकदमा तक दर्ज करा दिया गया है. अब यहां से सवाल शुरू होता है कि बाबा साहेब अंबेडकर के पक्ष में कौन है, और कौन नहीं. नीतीश कुमार जैसे कई पॉलीटिशियंस के लिए यह परीक्षा की घड़ी है. वह अगर एनडीए के तरफ जाते हैं तो बिहार में उनके वोटरों को खिसकने का खतरा होगा और अगर चुप रहते हैं, तो भी उनका वोट बैंक फिसल सकता है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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