देवघर (DEOGHAR) -किसी के कंधे पर परिवार के भरण पोषण की जिम्मेदारी हो और हादसे में व्यक्ति विकलांग हो जाए उस पर क्या बीतेगी, सहज समझा जा सकता है. ऐसे में किसी भी व्यक्ति का हौसला ही खत्म हो जाता है. मन में जिंदगी जीने की इच्छा नहीं बचती. खुद का जीवन एक बोझ लगने लगता है. लेकिन देवघर के रहने वाले एक दिव्यांग पेंटर गोरख रजक ने अपने जीवन में निराशा को हावी नहीं होने दिया. रोजमर्रा के जीवन में आने वाली व्यवहारिक कठिनाइयों के बाद भी हिम्मत और हौसले का साथ नहीं छोड़ा. हम बात कर रहे हैं गोरख रजक की, जिसके दोनों हाथ कटे हुए हैं. लेकिन गोरख ने इस अधूरेपन को अपने ऊपर कभी हावी नहीं होने दिया.   

मजदूरी करते समय लगी करंट

गोरख कोलकाता में मजदूरी करते थे. इसी मजदूरी की कमाई से अपना और अपने परिवार का खुशी-खुशी भरण पोषण करते थे. लेकिन एक दिन बिजली की करंट लग जाने से डॉक्टर को उनके दोनों हाथ काटने पड़े. हादसे के बाद गोरख को हाथ कटने का गम और परिवार का भरण पोषण की चिंता सताने लगी. धीरे धीरे उनका हौसला टूटने लगा. लेकिन एक दिन अपने परिवार की दयनीय स्थिति देख उसने हिम्मत जुटाई और पेंटिंग को अपनी रोजी रोटी का साधन बनाया.

गली गली घूम बदरंग दीवारों को देते हैं नया रंग

बिहार के चकाई का रहने वाला गोरख रजक घर पर रह कर पेंटिंग बनाने का काम शुरू किया. फिर वो चकाई से देवघर तक गली-गली घूम कर बैनर,पोस्टर बनाने लगा. अब वह दीवार पेंटिंग कर अपना किसी तरह भरण पोषण कर रहा है. लेकिन उसे अधिक काम की तलाश है. गोरख रजक सरकारी स्तर पर होने वाली पेंटिंग में काम देने की गुहार सरकार से कर रहा है. ताकि उसे प्रतिदिन काम मिल सके. इससे उसकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो सकेगी. फिलहाल गोरख रजक जगह जगह घूम कर दीवार पर पेंटिंग का काम करते हैं. गोरख अपनी एक पेंटिंग के माध्यम से गांव भर में सामाजिक संदेश भी देने की कोशिश करते हैं. इसी कोशिश के तहत वे अपनी एक पेंटिंग से गांव वासियों को स्वच्छता अपनाने की अपील कर रहे हैं.

रिपोर्ट : रितुराज सिन्हा, देवघर