रांची(RANCHI) - IMA झारखण्ड के पदाधिकारियों ने 30 जनवरी को रांची IMA भवन में सरकार के डेलीगेट्स के साथ क्लिनिक इस्टैब्लिशमेंट एक्ट पर अपनी सुझाव और सलाह दिया है.हरियाणा मॉडल पर झारखण्ड में भी 50 बेड़ के अस्पतालों को दिए जाने वाले छूट झारखण्ड में भी लागू करने की मांग की है.कई अहर्ताओं को पूरा करना भी संभव नहीं है इसलिए कुछ विसंगतियों दूर करने की गुजारिश की है.भारत सरकार द्वारा पार्लियामेंट में यह एक्ट पास कराया गया था.अस्पतालों के कई मानक तैयार किये गए थे,पूरे देश में डिजिटल रजिस्ट्रेशन हो क्लिनिक इस्टैब्लिशमेंट का.इसे लेकर सरकार से मांग की गई कि वे विशेषज्ञों के साथ विचार विमर्श करने के बाद ही इसे लागू करें तो अच्छा होगा
क्लिनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट में विसंगतियां - आइएमए
आइएमए का कहना है कि यह एक्ट सरकार के द्वारा पारित हुआ और सभी राज्य को अपने संसाधन एवं परिस्थितियों के आधार पर बदलाव का अधिकार दिया गया है. झारखंड में व्यवस्थागत तथा परिस्थितियों के अनुरूप कोई बदलाव नहीं किया गया.वहीं इस एक्ट को समस्त रूप से पारित किया गया.ऐसे में मेडिकल कॉलेज के विशेषज्ञों तथा आइएमए के साथ इसकी तकनीकी बारीकियां और वास्तविक परिस्थितियों पर विमर्श करते हुए इसमें संशोधन भी किया जाए. जिससे कि बेहतर इलाज समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंच सके.
.......
प्राइमरी स्कूल में एमए की पढ़ाई
डॉक्टरों का कहना है कि एक्ट की विसंगतियों से सिंगल क्लिनिक, छोटे हॉस्पिटल के सामने क्लिनिक, छोटे हॉस्पिटल के सामने सड़क पर दुर्घटना होती है. जिसमें मोटरसाइकिल सवार को चोटें आती है, उसे तत्काल छोटे हॉस्पिटल में लाया जाता है. सामान्य परिस्थितियों में उसे प्राथमिक उपचार देकर किसी बड़े हॉस्पिटल रेफर किया जाता है. लेकिन नये एक्ट के तहत यह अपराधिक मामला बनेगा जिसके तहत मरीज को स्टेबल नहीं होने तक (जो कि वैसे हॉस्पिटल में संभव नहीं होगा) उसे रेफर करना अपराध माना जाएगा जबकि मरीज के स्टेबल होने का कोई निश्चित मापदंड बना पाना संभव नहीं है और न ही गंभीर मरीज का उपचार छोटे हॉस्पिटल में संभव है. यह बिलकुल वैसा है जैसे कि एक प्राइमरी स्कूल में एमए तक की पढ़ाई कराई जाए.
.........
ये भी है मांगें
-एक्ट के प्रावधानों का अक्षरशः अनुपालन सिंगल क्लिनिक, डॉक्टर पति-पत्नी द्वारा चलाए जा रहे छोटे हॉस्पिटल/ नर्सिंग होम के लिए कठिन ही नहीं असंभव है. ऐसे में पूर्व की भांति हम पुनः यह मांग रखते हैं कि हरियाणा सरकार की ओर से तय 50 बेड तक के हॉस्पिटलों को दिए जाने वाले छूट झारखण्ड में भी लागू किया जाए. इसके अलावा बड़े हॉस्पिटलों को इसके पूर्व अर्हताओं को पूरा करने के लिए 5 वर्ष की छूट के साथ समय दिया जाए.
-पारा मेडिकल कर्मियों की भारी कमी है। ऐसे में पूर्व की भांति प्राइवेट क्लिनिक, नर्सिंग होम और हॉस्पिटलों से दिए गए प्रमाण पत्र को इनकी योग्यता प्रमाण पत्र के रूप में स्वीकार किया जाए. साथ ही प्राइवेट स्वाथ्य संस्थाओं के मानक का निर्धारण समतुल्य सरकारी संस्थाओं के अनुरूप किया जाए.
रिपोर्ट :रंजना कुमारी (रांची ब्यूरो )
Recent Comments