ये तो सभी जानते हैं कि भगवान शिव की पूजा में उन्हें बेलपत्र अर्पित किया जाता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसके पीछे का कारण क्या हो सकता है. तो चलिए आपको इस खास रिपोर्ट में बतातें है बेलपत्र के के महत्व के बारे में।
ऐसे तो शिव की आराधना सालों भर की जाती है लेकिन शास्त्रों में सावन मास में शिव की पूजा का खास महत्व बताया गया है। क्योंकी सावन का महिना भगवान भोलेनाथ का प्रिय महिना होता है। कहा जाता है इस महिने में भगवान सिव की पूजा अराधना करने से सी मनोकामनाएं पूरी होती है। लेकिन इसके साथ ही शिव की पूजा में भी बेलपत्र की बड़ी महत्ता होती है। यही कारण है कि देवाधिदेव महादेव को गंगा जल के साथ बेलपत्र अवश्य अर्पित किया जाता है।
भगवान भोलेनाथ को बेलपत्र है अतिप्रिय....
सावन का पवित्र माह शुरू हो गया है।इस पूरे माह पवित्र ज्योतिर्लिंग पर गंगा जल के साथ बेलपत्र अर्पित करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।जानकारों के अनुसार शिव आराधना में बेलपत्र का खास महत्व है। बेल के वृक्ष को श्रीवृक्ष भी कहा जाता है। सावन में शिव पूजा अराधना से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। इसलिए भगवान शिव की पूजा पूरे विधि-विधान से किया जाता है। शिव की पूजा में बेलपत्र का बहुत ही महत्व है क्योंकि यह शिव को बहुत ही प्रिय है। मान्यता है कि बिना बेलपत्र के शिव की उपासना सम्पूर्ण नहीं होती है। बेलपत्र के पत्तों को ही बिल्वपत्र भी कहा जाता है। बेलपत्र में तीन पत्तियां एक साथ जुड़ी होती हैं। पुराणों के अनुसार बेलपत्र और जल से भगवान शंकर का मस्तिष्क शीतल रहता है।
बेल वृक्ष पर होता है देविओं का वास
सावन की शुरुआत हो गई है। यह माह भगवान शंकर को बहुत ही प्रिय है। बेलपत्र को साक्षात देवी के शरीर से इस वृक्ष की उत्पत्ति मानी जाती है। बेलपत्र की तरह महादेव के भी त्रिनेत्र हैं। मनुष्य के शरीर में भी तीन गुण पाए जाते हैं-रजो गुण, तमो गुण और सतो गुण-कहा जाता है कि शिव को बेलपत्र अर्पित करने से इन तीनों गुणों का नियंत्रण मनुष्य करने में सक्षम हो पाता है।तीनों लोक और तीनों जन्म में किये गए कर्मों का फल भी महादेव को बेलपत्र चढ़ाने से प्राप्त होता है।कहा जाता है कि वैभव,यश और कीर्ति मनुष्य की तीन प्रमुख कामना होती है,इन तीनों की प्राप्ति भगवान शिव को बेलपत्र अर्पित करने से होती है।मान्यता है कि यही बेलपत्र चढ़ा कर माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न किया था।यही कारण है कि महादेव को बेलपत्र अति प्रिय है।
बेलपत्र की उत्पत्ति कैसे हुई-
स्कंद पुराण के अनुसार, एक बार माता पार्वती के पसीने की बूंद मंदराचल पर्वत पर जा गिरी. इससे वहां एक पौधा उगा जो बेल पत्र कहलाया.महादेव की पूजा में बेलपत्र चढ़ाने के पीछे एक पौराणिक कथा है. कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान कई चीजों के साथ विष भी निकला। विष के चारों ओर फैलने और विष के प्रभाव से भगवान शिव के शरीर में ताप बढ़ने लगा, जिसकी वजह से आसपास का वातावरण जलने लगा।उस समय के एक वैद्य से सलाह लेने के बाद देवी-देवताओं ने भगवान शिव को बेलपत्र खिलाया और जल से स्नान करवाया गया। इसके बाद भगवान शिव के शरीर में उत्पन्न गर्मी शांत होने लगी।और उसी वक्त से भगवान भोलेनाथ पर बेलपत्र चढ़ाने की परंपरा चल आ रही है।
पौराणिक समय में बैद्यनाथधाम में बेल वृक्षों का घना जंगल था त्रिकुट पर्वत
बताया जाता है कि पौराणिक समय में बैद्यनाथधाम में बेल वृक्षों का घना जंगल था।आसपास के त्रिकुट और डिगरिया पहाड़ पर बेल वृक्ष का घना जंगल हुआ करता था,आज भी यह मौजूद है।इन्हीं जंगलों से रोज बेलपत्र लाकर पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंग पर अर्पित किया जाता था।बेलपत्र के इसी महत्व के कारण बैद्यनाथधाम में सावन मास के दौरान प्रत्येक सोमवार को बेलपत्र की प्रदर्शनी लगाने की परंपरा शुरू हुई।इस प्रदर्शनी में इन जंगलों से आज भी दुर्लभ प्रजाति के बेलपत्र लाकर उसकी प्रदर्शनी लगाई जाती है।अलग-अलग समाज के बीच अच्छी से अच्छी बेलपत्र प्रदर्शनी आयोजित करने की प्रतिस्पर्धा भी होती है और सावन के अंत में श्रेष्ठतम प्रदर्शनी को पुरस्कृत किया जाता है।कहते हैं कि बेलपत्र भगवान भोलेनाथ को अति प्रिय है।यही कारण है कि सुल्तानगंज स्थित उत्तरवाहिनी गंगा से कांवर में गंगाजल भर देवघर पहुंचने वाले श्रद्धालु गंगाजल के साथ पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंग पर बेलपत्र अर्पित करना नहीं भूलते हैं।
ऋतुराज/देवघर
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