गढ़वा (GADHWA ) : आदिवासियों के उत्थान को लेकर सूबे में दावे भी होते हैं और योजनाएं भी खूब बनती हैं. पर ज्यादातर योजनाएं फाइलों से आगे का सफर तय नहीं कर पातीं. दावों और योजनाओं का सच गढ़वा जिले मे बानुटिकर गांव में दिखा रहा. फाइलों से बानुटिकर गांव तक योजनाओं के नहीं पहुंचने का असर यह हो रहा, कि गांव के लोग आज भी जीवनयापन के लिए जंगलों में भटकने को विवश हैं.
दोना-पत्तल को बेचकर करते गुजर बसर
गांव मे सरकारी योजनाओं का संचालन नहीं होने से यहां के लोगों को किसी प्रकार का रोजगार नही मिल पाता है. इस कारण ये आदिवासी ग्रामीण जंगलों से पत्ता लाकर घर पर दोना व पत्तल बनाते हैं. फिर जिला मुख्यालय बाजार में बेचते हैं. इससे इनके परिवार का भरण पोषण होता है.
जंगल में भटकते नौनिहाल
इस काम में घर की महिलाएं और पुरुष तो लगे ही रहते, बच्चों का भविष्य भी जंगलों में भटकने को विवश है. दरअसल इस गांव में बच्चों के स्कूल तो हैं, पर ये कोरोना के कारण गत वर्ष से ही बंद पड़े हैं. ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था दुरुस्त नहीं होने के कारण अभिभावक उन्हें अपने साथ ही जंगल में ले जाते हैं. बच्चे भी पत्ते बटोरने और दोना बनाने के काम में लगे लगे रहते हैं. उधर अधिकारी अपना ही राग अलापने में लगे हैं. सरकारी योजना को लाभुकों तक पहुंचाने की बात तो करते हैं, लेकिन यह योजना कब और कहां चलती रहती है, यह नहीं बता पाते.
रिपोर्ट:शैलेश कुमार(गढ़वा)
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