दुमका(DUMKA)-झारखंड की उपराजधानी दुमका का इतिहास काफी पुराना है. समय के साथ साथ दुमका में काफी बदलाव आया लेकिन अगर कुछ नहीं बदला तो वो है नगर थाना का भवन. इतिहास के पन्नों में 1769 में बंगाल के बीरभूम जिलान्तर्गत दुमका घटवाली पुलिस थाना रह चुका है. वहीं 1775 में दुमका को भागलपुर संभाग के अंतर्गत शामिल किया गया. जिसके बाद 1865 में दुमका स्वतंत्र जिला बना. दुमका नगर थाना का यह खपड़ैल मकान कब बना यह तो किसी को पता नहीं, लेकिन इतना जरूर है कि यह ब्रिटिश कालीन है. ब्रिटिशकालीन खपड़ैल मकान में आज भी उपराजधानी का नगर थाना संचालित है. एक नजर में यह थाना कबाड़खाना ही नजर आता है.

मालखाना की रखवाली करते हैं नागराज

बता दें कि थाना भवन में कमरे के नाम पर एक सिरिस्ता और एक छोटा सा थाना प्रभारी का कक्ष है. सिरिस्ता पुराने फ़ाइल से भरा है. सिरिस्ता कि अंदर ही माल खाना है, जहां सांप से लेकर कीड़े मकौड़े का बसेरा है. अगर कहें कि मालखाना की रखवाली नागराज करते हैं, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. यहां समय-समय पर नागराज के दर्शन होते रहते हैं. सांप निकलने पर वन विभाग की टीम रेस्क्यू करने पहुंचती जरूर है लेकिन कबाड़खाना में तब्दील माल खाना से सांप को पकड़ने में सफलता नहीं मिलती. वहीं यहां काम करने वाले कर्मी दहशत के साए में अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हैं. विभाग द्वारा हमेशा अपने कर्मी को अनुशासन का पाठ पढ़ाया जाता है. यहीं वजह से की दहशत के साए में कार्य करने के बावजूद ये कर्मी मीडिया से अपना दर्द बयां नहीं कर सकते.

अटकी पड़ी भवन की स्वीकृति

मामले में वरीय अधिकारी से पूछने पर एक ही जवाब मिलता है कि एस्टीमेट बना कर मुख्यालय भेजा गया है. जिले में कई थाना को अपना नया भवन मिला लेकिन नगर थाना आज भी भवन के इंतजार में है. एस्टीमेट बना कर भेजे जाने के बावजूद आज तक नए भवन को स्वीकृति क्यों नहीं मिली, यह बता पाना मुश्किल है. हो सकता है सरकार इसे ब्रिटिश कालीन विरासत के रूप में सहेज कर रखना चाहती हो. लेकिन सवाल उठना लाजमी है कि फिर झारखंड पुलिस को हाई टेक बनाने का दावा क्यों किया जाता है.

रिपोर्ट:पंचम झा,दुमका