सरायकेला(SARAIKELA)-भारत में भले ही आजादी के बाद लोकतंत्र की स्थापना हुई हो, पर इसके वर्षों पूर्व 1640 ईं में सरायकेला राज स्थापना के बाद से ही सरायकेला में पूजा परंपरा हो या हो राजकाज यहां लोकतांत्रिक व्यवस्था की झलक दिखती थी. सरायकेला राजपरिवार द्वारा किये जाने वाले सोलह दिनों की दुर्गा पूजा में राजपरिवार के सदस्यों के साथ आम लोग भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं. यह परंपरा राजतंत्र के समय से शुरू होकर आज तक कायम है और आज भी उसी उत्साह और आस्था के साथ मनायी जाती है.

खंडा धुआ की परंपरा निर्वहन के साथ दुर्गा मंदिर में पूजा प्रारंभ

सरायकेला राजपरिवार द्वारा ज्युतिया अष्टमी से महाष्टमी तक मां दुर्गा की तांत्रिक मत से सोलह दिनों की दुर्गा पूजा होती है. ज्युतिया अष्टमी से षष्ठी तक राजमहल के भीतर स्थित मां पाउड़ी के मंदिर में सरायकेला राजपरिवार द्वारा मां की पूजा की जाती है. वहीं षष्ठी के दिन के बाद से यह पूजा राजमहल के सामने स्थित मंदिर में शुरु होकर अष्टमी तक चलती है. इस दिन सरायकेला राजा समेत राजपरिवार के सदस्यों द्वारा खरकई नदी के तट पर पारंपरिक खंडा धुआ (शस्त्र पूजा की परंपरा) किया जाता है. फिर राजमहल स्थित शस्त्रागार में शस्त्र पूजा होती है. इसके बाद सरायकेला राजा राजमहल के सामने स्थित मंदिर में आकर पूजा करते हैं. साथ ही वन दुर्गा का आह्वान करते हैं. इस दिन से राजमहल के सामने मंदिर पूजा प्रारंभ होती है. यह परंपरा सरायकेला राज के स्थापना के बाद से आज तक चली आ रही है. इस बार कोरोना के मद्देनजर कई ऐहतियाती कदम उठाकर परंपरा का निर्वहन हो रहा है. आज खंडा धुआ की परंपरा निर्वहन के साथ राजमहल के सामने स्थित दुर्गा मंदिर में पूजा प्रारंभ हो गया. 

सरायकेला राजा और आम लोगों द्वारा उठाया जाता पूजा का खर्च

मां दुर्गा पूजा के वर्षों से चली आ रही परंपरा में राजतंत्र के समय राजा द्वारा पूजा का आयोजन किया जाता था पर लोगों की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए आम लोगों से भी लगान के रुप में पूजा खर्च का एक हिस्सा लिया जाता था. इस सहभागिता में सभी धर्मों के लोग अपना योगदान देते थे. आज भी यहां के पूजा का खर्च सरायकेला राजा और आम लोगों द्वारा ही उठाया जाता है. जाति वर्ण के भेद से दूर सभी लोगों द्वारा मां दुर्गा की पूजा में सहभागिता की यह परंपरा आज भी उसी रुप में जिंदा है. आम लोग भी राजतंत्र की परंपरा को आज के दिन निभा और शरीक होकर काफी खुश होते हैं तथा सभी इस ऐतिहासिक पूजा में अपना गर्व का विषय भी मानते है.

लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत है यह परंपरा

सामाजिक समरसता, सहभागिता और लोकतांत्रिक व्यवस्था की सदियों पूर्व नींव डालने वाले सरायकेला राज की जनहितैषी सोच का ही नतीजा है कि आज भी यहां हिंदु और मुस्लिम के करीब नौ पूजा परंपरा सरकार द्वारा अपने खर्चे पर किया जाता है. आजादी के बाद सरायकेला राजतंत्र का लोकतंत्र में विलय के समय भारत सरकार के साथ हुए मर्जर एंग्रीमेंट के आलोक में यह होता है. यही नहीं आज के दौर में जाति वर्ण में बंटे समाज के लिए सरायकेला की यह पूजा परंपरा कहीं न कहीं लोगों के लिए बड़ी सीख और प्रेरणा है.

रिपोर्ट:  विकास कुमार, सरायकेला