गुमला(GUMLA) जिला में एक सुमदाय ऐसा भी है जिसके लिए नवरात्रि शोक का संदेश लेकर आता है. इस दौरान इस समुदाय के लोगों में वैसा ही माहौल रहता है, जैसा आमतौर पर घर में कोई शोक होने पर होता है. न नए कपड़े कोई पहनता और न कोई पकवान बनाता. किसी शुभ कार्य की शुरुआत भी इन नौ दिनों में नहीं की जाती. बात हो रही है असुर समुदाय की जो गुमला जिले में कई जगहों पर वास करते हैं. इस समुदाय के लोग अपने आपको महिषासुर का वंशज मानते हैं.
मानते महिषासुर को भगवान
महिषासुर का वध आज से हजारों वर्ष पहले किया गया होगा, इस बात की जानकारी हमें शास्त्रों से प्राप्त होती है. लेकिन आज भी असुर समुदाय के लोगों द्वारा अपनी इस परंपरा को जिस तरह निभ्जाया जा रहा है, वह वाकई अनोखा है. स्थानीय लोगों की मानें तो असुर समुदाय के लोगों का मानना है कि महिषासुर भगवान थे. जिनका वध माता रानी ने किया था. यही कारण है कि वे लोग इस पूरे कालखंड को शोक के माहौल के रुप में मनाते हैं. ना तो परिवार में किसी प्रकार का खुशी का माहौल होता है और ना ही परिवार में किसी प्रकार की मिठाइयों का ही वितरण किया जाता है. उनका मानना है कि वर्षों से चली आ रही परंपरा आज भी असुर समुदाय के लोगों के बीच में देखने को मिलती है.
समाज से अलग-थलग रहते
स्थानीय जानकारों की मानें तो असुर समुदाय के लोग पूरी तरह से समाज से अलग-थलग जंगलों में वास करते हैं. हालांकि हाल के दिनों में सरकार की ओर से उन्हें कई सुविधाओं से लैस किया गया है, लेकिन बावजूद इसके असुर समुदाय के बीच नवरात्र को लेकर चली आ रही परंपरा आज भी जिस तरह से कायम है, वह निश्चित रूप से अपने पूर्वजों के प्रति आस्था और विश्वास को दर्शाता है.
रिपोर्ट : सुशील कुमार सिंह, गुमला
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