धनबाद (DHANBAD) - आंखों में बेबशी का दर्द ,समाज में अछूतों जैसा व्यवहार ,एक बीमारी के कारण घर परिवार दूर हो कर एकाकी जीवन जीने को मजबूर ।यह पीड़ा उन लोगों की है ,जो कभी कुष्ठ रोग का शिकार हुए और अपनों द्वारा ठुकराने के बाद इलाज़ के लिए कई वर्षो से ईस्टर्न ज़ोन के सबसे बड़े लेप्रोसी हॉस्पिटल में अपने जीवन का अंतिम वक्त गुजार रहें है. कई तो 30 से 40 की उम्र में भर्ती हुए और आज 60 से 70 उम्र की दहलीज़ पार कर गए है.

 हम बात कर रहें है - धनबाद के गोविंदपुर के निर्मला कुष्ठ एवं जनरल अस्पताल की, जिसने अब तक सैकड़ों नहीं ,हज़ारों बेसहारों को सहारा दिया, परिवार से परित्यक्त लोगों का ठिकाना दिया. कुष्ठ रोगियों की सेवा की अनूठी मिशाल कायम की है. लगभग 25 एकड़ में फैले इस अस्पताल के वह भी एक दिन थे और आज भी एक दिन है. एक समय था कि सहायता राशि की कोई कमी नहीं थी लेकिन आज हाथ फ़ैलाने की नौबत है, फिर भी सीमित साधनों में सेवा भाव में कोई कमी नहीं.125 बेड के अस्पताल के अलावा स्कूल के साथ साथ ओल्ड एज होम भी चलता है. कहते है कि यह पूर्वोत्तर भारत का कुष्ठ का सबसे बड़ा रेफरल अस्पताल है.

कुष्ठ रोगियों के साथ बेटे का मनाया जन्म दिन

वरीय कांग्रेस नेता सह ज़िप सदस्य अशोक कुमार सिंह पत्नी संग निर्मला कुष्ठ अस्पताल पहुंचे. दरअसल, शनिवार को उन्होंने अपने बेटे डॉ आलोक अभिषेक का जन्मदिन कुछ अनोखे ढंग से मनाया. इस दिन को उन्होंने कुछ वक्त कुष्ठ रोगियों के बीच बिताने की सोची और अस्पताल में इलाजरत कुष्ठ रोगियों के लिए भोजन आदि वितरित किया,इस काम में उनकी पत्नी रेणु सिंह ने भी ख़ूब साथ निभाया. एक समय के चकाचौंध इस अस्पताल की वर्तमान माली हालत पर दुःख व्यक्त करते हुए The news post से बात करते हुए अशोक कुमार सिंह ने कहा कि कम से कम कोयलांचल में संचालित उद्योग ,सार्वजनिक लोक व क्षेत्रीय प्रतिष्ठान जैसे बीसीसीएल,ईसीएल ,बोकारो स्टील प्लांट के अलावा टिस्को जैसी सस्थाओ को इसे गोद लेना चाहिए. सांसद पीएन सिंह, स्थानीय विधायक सहित तमाम जनप्रतिनिधियों को उन्होंने आड़े हाथों लिया. सांसद मद से जो सड़क बनी है ,वह आधी अधूरी है. सांसद ने एक बार आकर देखना भी उचित नहीं समझा .रात को बिजली कट जाने के बाद पूरा इलाका अँधेरे में डूब जाता है ,सोलर लाइट आदि की पहल होनी चाहिए थी. 

अमेरिकन फादर ने की थी स्थापना

निर्मला स्कूल के प्राचार्य फ़ादर एलेक्स और स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार अशोक गिरी ने The news post ब्यूरो हेड अभिषेक कुमार सिंह को बताया कि गोविंदपुर प्रखंड में जीटी रोड किनारे स्थित निर्मला कुष्ठ एवं जनरल अस्पताल की स्थापना आज से 57 साल पहले अमेरिकन फादर माइकल केविनो ने 1964 में की थी. बताते है कि जब वह धनबाद स्टेशन पर उतरे थे, तो स्टेशन के बाहर बड़ी संख्या में कुष्ठ मरीज हाथ में कटोरा लेकर भीख मांगने बैठे हुए थे. इस कारुणिक दृश्य ने उन्हें भीतर से झकझोर दिया. कुष्ठ रोगियों की यह हालत उन्हें विचलित कर गया.

45 साल तक जर्मनी देता रहा आर्थिक सहयोग

इस अस्पताल को जर्मनी से पिछले 45 साल तक आर्थिक सहयोग मिला, लेकिन केंद्र की गलत नीतियों की वजह से 15 वर्षो से विदेशी फंड बंद हो गए हैं. अब केंद्र व राज्य किसी भी सरकार से मदद नहीं मिल रहीं है. आपको बता दे कि जिस अमेरिकन फादर ने धनबाद में कुष्ठ अस्पताल निर्माण की सोची उन्होंने डेमियन सोशल वेलफेयर सेंटर नामक संस्थान की स्थापना की. इसी संस्था के द्वारा निर्मला कुष्ठ अस्पताल की स्थापना की गई. केवल धनबाद ही नहीं बल्कि बोकारो ,गिरिडीह ,चतरा कोडरमा, हजारीबाग, जामताड़ा आदि जिलों से कुष्ठ निवारण में इस अस्पताल ने बड़ी भूमिका अदा की है. फादर ने 125 बिस्तर के इस अस्पताल की स्थापना जर्मन लेप्रोसी रिलीफ एसोसिएशन के सहयोग से की थी. एसोसिएशन ने करीब 45 वर्षों तक इस अस्पताल को आर्थिक सहयोग दिया और इसके बाद हाथ खड़े कर दिए. इसके पीछे शायद यह भी संदेश रहा होगा कि भारत से अब कुष्ठ का उन्मूलन हो गया है, जबकि हकीकत में कुष्ठ अभी भी है. इस अस्पताल में अभी भी तीन से चार हजार रुपये में इलाज़ ,भोजन और रहने की व्यवस्था की गई है. ओल्ड एज होम में रहने वाले से कोई शुल्क नहीं लिया जाता . हालांकि सच ये भी है कि बेहतर इलाज की सुविधा होने के करण अब कुष्ठ से अंग विकृत हुए लोगों की संख्या पहले से काफी कम हुई है.

जिन्हें परिवार वाले नहीं स्वीकारते, उनका है ठिकाना

यहां न केवल कुष्ठ रोगियों का इलाज किया जाता है, बल्कि वैसे अंग विकृत लोग जिन्हें परिवार वाले स्वीकार नहीं करते, उनके लिए स्थाई ओल्ड एज होम की भी व्यवस्था इस अस्पताल में है. कुष्ठ रोगियों के बच्चों के पढ़ने के लिए आवासीय विद्यालय का भी संचालन अस्पताल द्वारा किया जाता है.