टीएनपी डेस्क (TNP DESK): सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए क़ातिल है. बिस्मिल अजीमाबादी का यह शेर अंग्रेजों के विरुद्ध प्रतिकार के लिए नारे की तरह इस्तेमाल किया जाता था. इंकलाब-जिंदबाद और वंदे मातरम के नारे के साथ कितनों ने अपनी आहुति दी. कितनी जिदंगी जेल की काल कोठरी में गुजरी. आज जब हम देश की आजादी के 75 साल पूरे होने का जश्न मना रहे है. ऐसे में हमें उन वीरों को नहीं भूलना चाहिये जिनके कारण हमारा देश ब्रिटिश शासन से आज़ाद हो पाया. इसमें न केवल जांबाज़ पुरुष हैं, बल्कि पराकर्मी महिलाएं भी शामिल हैं. आज हम आपको झारखंड की कुछ महिला स्वतंत्रता सेनानीयों के बारे में बताएंगे, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में बहुमूल्य योगदान दिया. 

1. फूलो-झानो: ये दो जुड़वा बहनें थीं. इनके चार बड़े भाई थे. सिद्धो, कान्हो, चांदो और भैरव, जिन्होंने संताल विद्रोह का नेतृत्व किया था. इन दो बहनो का जन्म साहेबगंज के भोगनाडीह गाँव में हुआ था. इन दोनो बहनों को संदेशवाहक का जिम्मा मिला था. ये दोनों बहनें साल की डाली लेकर गांव-गांव जाकर हूल का संदेश देती थीं. एक समय हूल के दौरान फूलो-झानो के सभी भाई घायल हो गए, तब दोनों निडर बहनों ने ब्रिटिशर के खिलाफ पाकुड़ जिला के संग्रामपुर में हूल का नेतृत्व किया था. इस दौरान दोनों बहनो ने 21 लोगों को मौत के घाट उतर दिया था. जिसके बाद दोनों बहन ने  संग्रामपुर में ही वीरगति प्राप्त की. बता दें कि  फूलो झानों भारत की पहली महिला है जिसने अंग्रेजो के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किया. इनके सम्मान में  दुमका के एसडीहा में Phulo Jhano Dairy Technical College की स्थापना की गई, दुमका मेडिकल कॉलेज का नाम Phula Thane Medical College & Hospital रखा गया है.

2. सरस्वती देवी: झारखण्ड की सरस्वती देवी ने साल 1921 में गांधीजी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन में भी हिस्सा लिया था. जिसके लिए उन्हें गिरफ्तार कर हजारीबाग सेंट्रल जेल भेज दिया गया था. जेल से रिहा होने के बाद सरस्वती देवी फिर से देश की आजादी में पूरे जोश के साथ लग गयी थीं. इन्होने भारत छोड़ो आंदोलन में भी अपनी भागीदारी दी थी. भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान हजारीबाग के नेताओ की गिरफ्तारी शुरू हो गई थी, तब सरस्वती देवी ने यहां आंदोलन की शुरुआत की. एक विशाल भीड़ वाला जुलूस निकाला. रामेश्वर प्रसाद, कृष्णा पाठक, कस्तूरमल अग्रवाल आदि विधार्थी मिलकर समाहारणालय से अंग्रेजी झंडा उतारकर तिरंगा झंडा फहरा देता है, जिससे शाम को सरस्वती देवी की गिरफ्तारी हुई और उन्हें भागलपुर जेल में भेज दिया गया. ऐसा माना जाता है कि देश को आजादी मिलने के बाद सरस्वती देवी ने जगह-जगह जाकर लोगों को मिठाई खिलाई थी. जिसके बाद 10 दिसंबर, 1958 को मात्र 57 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई थी.

3. ऊषा रानी मुखर्जी: इन्होंने ब्रिटिशर्स के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था. इस दौरान ब्रिटिश पुलिस ने इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. जिसका बाद वे पूरे 6 महीनों के लिए भागलपुर जेल में रही. जेल से रिहा होने के बाद इन्होंने संताल परगना से स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी.

4. शैलबाला रॉय: शैलबाला रॉय संथाल परगना से ताल्लुक रखती थीं. इन्होंने ब्रिटिश शासन के दौरान संथाल में चल रहे नमक कानून का विरोध किया. और अपने पराक्रम से यहां नमक कानून को तोडा.

5. देवमनिया भगत: देवमनिया भगत गुमला जीले के बभुरी गांव की रहने वाली थी. ये जतरा भगत की समकालीन थी. इन्होंने देश की आजादी के लिए ताना भगत आंदोलन में नेतृत्व किया था.

6. मानकी मुंडा: मुंडा उलगुलान से मानकी मुंडा संबंध रखती हैं. यह बिरसा मुंडा के सेनापति गया मुंडा की पत्नी थीं. ब्रिटिश रूल के खिलाफ मुंडा समाज के क्रांति में इन्होंने अपना योगदान दिया. जिसके बाद इन्हें भी गिरफ्तारी झेलनी पड़ी, और दो साल के लिए कारावास की सजा सुनाई गयी.

7. बिरजी मिर्धा: बिरजी मिर्धा स्वतंत्रता सेनानी हरिहर मिर्धा की पत्नी थीं. इन्होंने अपने पति के साथ मिलकर देश की आजादी के लिए भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया था. जिस वजह से अंग्रेजों ने इनकी 28 अगस्त 1942 में गोली मारकर हत्या कर दी थी.

8. प्रेमा देवी: प्रेमा देवी दुमका क्षेत्र से स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुईं. इन्होंने अन्य महिला सेनानियों के साथ मिल कर भारत छोड़ो आंदोलन में जोड़कर भागीदारी दर्ज की. इन्होने दुमका में 19 अगस्त 1942 में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक जुलुस का नेतृत्व किया था.

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान  ये सभी महिला सेनानी निडर हो कर मैदान में डटी रहीं. The News Post  इनकी बहादुरी और देश प्रेम को सलाम करता है.