टीएनपी डेस्क (TNP DESK) :  जहां भारतीय युवा अपने कला और संस्कृति को छोड़ पश्चिमी सभ्यता को तेजी से अपना रहे हैं, वहीं पश्चिम के युवा भारतीय कला और संस्कृति के दीवाने हैं. यहाँ की संस्कृति और कलाकृति को बाहरी देश के लोग काफी पसंद कर रहे हैं जिसका नजारा हमे आए दिन देखने को मिलता है. ऐसा ही कुछ नजारा कोल्हान में देखने को मिला, जहां की कला संस्कृति की गूंज सात समंदर पार जा पहुंची है. इटली की एक महिला सरायकेला जिले के नीमडीह प्रखंड में नृत्य सीखने आई है.  छऊ नृत्य के लिए सोफिया की इस दीवानगी देख स्थानीय लोग दांतो तले उंगली दबाने को मजबूर हो रहे हैं.  हर कोई का कहना है कि वाकई देश बदल रहा है. 

नृत्य में मगन विदेशी महिला 

इटली की महिला स्थानीय कलाकारों के साथ ताल से ताल मिला कर छऊ नृत्य में खोई हुई है. उसे देख कर तो ऐसा लगता है कि यह महिला भारतीय है जो इतनी लगन से छऊ नृत्य कर रही है. महिला की दीवानगी इस नृत्य को लेकर इतनी है कि वे इतनी दूर से अपने खर्च पर भारत इसे सीखने आ गई. 

भारत की कला को अंतरराष्ट्रीय पहचान

इटली की महिला का मानना है कि भले ही इटली विकसित है लेकिन कला एवं संस्कृति से कोसों दूर है. वही वो कहती हैं, उन्होंने भारतीय लोकनृत्य व कला के बारे में काफी कुछ सुन रखा था. जिसके लिए वो भारत आई और शांति निकेतन में उन्होंने छऊ नृत्य के उस्ताद अधीर कुमार से ट्रेनिंग लेना शुरू किया. वही प्रशिक्षक अधीर कुमार के अनुसार, नोवा छऊ नृत्य में पारंगत हो चुकी हैं और इस कला को अंतरराष्ट्रीय पहचान देने में जुटी हैं


इटली महिला जिनसे यह नृत्य सीखती है उनका नाम अधीर कुमार है. जो की पिछले 15 सालों से लोगों को छऊ नृत्य सिखा रहे हैं. वो विदेशों में नृत्य करते हैं फिर वहां के जो लोग प्रशिक्षण लेना चाहते हैं उन्हें भारत में प्रशिक्षण देते हैं. अधीर कुमार देश के संस्कृति को बचा रहे हैं लेकिन उनके परिवार के अच्छी परवरिश के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है.  परिवार चलाने के लिए वो बकरी पालन करते हैं. ऐसी में ये जररूरी हैं की सरकार भी उनकी इस कला को आगे बढ़ाने में उनकी सहायता करे, ताकि ऐसी और भी लोगों को वो भारत की संस्कृति से जोड़ सके.

क्या है छऊ नृत्य

छऊ पूर्वी भारत की एक प्रमुख नृत्य परंपरा है.  यह पूर्वी भारत में उड़ीसा, झारखंड और पश्चिम बंगाल प्रांतों के सीमावर्ती क्षेत्रों के आदिवासी क्षेत्र में प्रचलित है. छऊ के तीन विशिष्ट प्रकार होते हैं. पहला झारखंड का सेरैकेल्ला छऊ, दूसरा उड़ीसा का मयूरभंज छऊ, और तीसरा पश्चिम बंगाल का पुरुलिया छऊ मुखौटे सेरैकेल्ला और पुरुलिया के नृत्य के अभिन्न अंग हैं