पलामू(PALAMU): 1966 की अकाल की याद ताजा करा रहा है 2022. 1966 में एकीकृत बिहार के दक्षिणी छोटानागपुर के इलाके में भयंकर अकाल हुआ था. इस वर्ष 2022 की तरह 1966 में भी शुरू से अंत तक बारिश नहीं हुई थी. जिससे भदई के साथ साथ खरीफ की फसल नहीं हो पाई थी. 1966 के अकाल में सरकार ने बड़े पैमाने पर राहत कार्य चलाया था. हरेक स्तर पर राहत देने का काम सरकार ने किया था. इस वर्ष स्थिति और भी बदतर नज़र आ रही है. पलामू, गढ़वा, लातेहार ,लोहरदग्गा गुमला, सिमडेगा समेत कई ऐसे जिले हैं. जहां भदई मुख्य फसल है, जो पूरी तरह मारी गई. जमीनी स्तर पर देखा जाए तो पता लगता है कि सिर्फ ऐसे दस प्रतिशत खेतों में भदाई की फसल किसी तरह हुई जहां सिंचाई की व्यवस्था है. 90 प्रतिशत खेतों में बीज तक नहीं किए गए.इसी प्रकार धान की फसल संपूर्ण झारखंड में दस प्रतिशत भी होने की संभावना नहीं है. राज्य की बड़ी छोटी नदियां सुखी हैं. डैम तलब में पानी नहीं है. अधिकांश किसानों ने सावन के महीना तक धान का बिचड़ा भी खेतों में नहीं डाल पाए. वह आषाढ़ के महीने से टकटकी लगाए बैठे हैं. निजी जल श्रोतों से पटवन कर कुछ किसान धान की खेती कर रहे है.जिससे कम से कम उन्हे बाजार से चावल नहीं खरीदना पड़े.राज्य में सिंचाई की समस्या सबसे बड़ी है. राज्य की अधिकांश सिंचाई परियोजनाएं अधूरी हैं, इनमे लातेहार का मंडल डैम, पलामू की बताने डैम, उत्तर कोयल मुख्य नहर में पानी नहीं, राज्य की बड़ी अन्य सिंचाई परियोजनाओं पर 20 20 वर्षो से काम हो रहा है. अरबों खर्च हुए मगर किसानों के खेत आज भी प्यासे हैं.
मजदूरों को भूखे मरने की नौबत
ग्रामीण और शहरी इलाके के मजदूर भूखों मरने की स्थिति में पहुंच गए हैं. बारिश नहीं होने से एक ओर मजदूरों को खेतो में काम नहीं मिल रहा है, दूसरी ओर राज्य में बालू की किल्लत की वजह सभी तरह के निर्माण कार्य ठप्प हैं. परिणामस्वरूप रोज कमाने रोज खाने वाले मजदूर दाने दाने को मोहताज हैं.
पीडीएस का चावल बचा रहा है जान
खेतों और घर मकान निर्माण में काम करने वाले मजदूर व उससे जुड़े राज मिस्त्रियो के समक्ष बड़ी समस्या हो गई है. बरसात में यह मजदूर अपने या गांव के लोगों के खेतो में काम कर अपना और परिवार का गुजारा करते थे. उन्हे इस वर्ष निर्माण कार्य या खेत कहीं काम नहीं मिल रहा है. मजदूरों ने बताया कि अगर पीडीएस और पीएम जनकल्याण योजना के तहत चावल नहीं मिलता तो शायद वह और उनके परिवार का बचना मुश्किल होता.उन्होंने बताया कि माड़ भात खा कर ही जीवन की जंग वह और उनके परिवार के लोग लड़ रहे हैं. उन्होंने बताया कि अब सरकार ने राहत कार्य नहीं चलाया तो भुखमरी के साथ साथ अपराध भी बढ़ने की संभावना है. पेट की आग को बुझाने के लिए इंसान बाध्य है. यही वजह है कि राज्य में अपराध बढ़े हैं.
पशुपालकों के लिए बड़ी समस्या
वर्षा के अभाव में फैसले होने की संभावना छिन्न होने के साथ साथ अब किसानों और पशुपालकों को अपने पशुओं के चारा की व्यवस्था कठिन हो गई है. अब वह परिवार के लिए दाना पानी का इंतजाम करें या पशुओं के लिए. बरसात के दिनों में पशुओं का चारा पर्याप्त रहता था. घास खाकर खिला कर ही उनका पेट भर दिया जाता था.इस वर्ष वर्षा नहीं होने की वजह जंगलों या खेतो मे हरियाली नहीं है, घास भी मर गई. अब पशुपालक पसोपेश में हैं की वह पशुओं का क्या करें.सरकार को अविलंब पशु चारा की व्यवस्था करने की जरूरत है.जिससे राज्य का पशुधन जीवित रह सके.
रिपोर्ट:जफ़र हुसैन,पलामू

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