पलामू (PALAMU) : झारखंड का पलामू ज़िला लंबे समय से नक्सल प्रभावित इलाक़ा माना जाता रहा है. सरकार और सुरक्षा बलों ने हाल के वर्षों में लगातार अभियान चलाकर यहाँ नक्सली संगठनों की जड़ों को कमजोर किया है. इसी बीच प्रशासन ने दावा किया कि पलामू अब “नक्सल मुक्त” हो चुका है. लेकिन पिछले छह महीनों के भीतर जिस तरह से लगातार बड़े एनकाउंटर हुए, कई नक्सली कमांडर मारे गए और भारी मात्रा में हथियार बरामद हुए, उसने इस दावे पर सवाल खड़े कर दिए हैं कि अखिर किसके कहने पर या कौन सी मजबूरी थी जिसके बूते इस क्षेत्र को नक्सली मुक्त क़रार दिया गया.
पलामू में हाल के दिनों में चर्चित मुठभेड़
मई 2025: सीपीआई माओवादी कमांडर तूलसी भूइयाँ ढेर
27 मई 2025 को पलामू के सिता चौन इलाके में सुरक्षा बलों और सीपीआई (माओवादी) के बीच भीषण मुठभेड़ हुई. इस मुठभेड़ में कुख्यात कमांडर तूलसी भूइयाँ मारा गया. तूलसी भूइयाँ पर कई गंभीर मामले दर्ज थे और वह लंबे समय से सुरक्षा बलों के लिए चुनौती बना हुआ था। इसी ऑपरेशन में नितेश यादव, जो 15 लाख का इनामी नक्सली है, घायल हुआ बताया गया। यह मुठभेड़ इस बात का सबूत थी कि क्षेत्र में माओवादी संगठन अब भी सक्रिय हैं.
मई 2025: टीएसपीसी के दस्ते से मुठभेड़
17 मई 2025 को मनातू थाना क्षेत्र के जस्पुर जंगल में सुरक्षा बलों और टीएसपीसी (तृतीय सम्मेलन प्रस्तुति समिति) के दस्ते के बीच मुठभेड़ हुई. इस दौरान शशिकांत और गौतम के नेतृत्व वाले दस्ते ने पुलिस पर फायरिंग की.जवाबी कार्रवाई में नक्सली भाग खड़े हुए, लेकिन मौके से हथियार, मोबाइल फोन और नक्सली साहित्य बरामद किया गया. यह घटना साफ करती है कि टीएसपीसी जैसे स्थानीय गुट अब भी इलाके में सक्रिय हैं और पूरी तरह समाप्त नहीं हुए हैं.
सितंबर 2025: इनामी कमांडर मुखदेव यादव मारा गया
14 सितंबर 2025 को पलामू के मनातू जंगल में सुरक्षाबलों और टीएसपीसी नक्सलियों के बीच एनकाउंटर हुआ. इसमें संगठन का कुख्यात कमांडर मुखदेव यादव मारा गया. मुखदेव यादव पर पाँच लाख रुपये का इनाम घोषित था. वह कई वारदातों में शामिल रहा था और संगठन के लिए नई भर्ती कराने का काम करता था. इस सफलता को पुलिस ने बड़ी उपलब्धि बताया.
सवाल क्यों उठ रहे हैं?
जब प्रशासन ने पलामू को नक्सल मुक्त घोषित किया, तब सवाल यही उठा कि अगर इलाका पूरी तरह शांत हो गया है तो फिर इतनी बार एनकाउंटर क्यों हो रहे हैं?
क्या वाकई बड़े नक्सली संगठन खत्म हो चुके हैं और केवल छोटे गुट सक्रिय हैं?
या फिर “नक्सल मुक्त” की घोषणा राजनीतिक दबाव और उपलब्धि दिखाने की मजबूरी में कर दी गई?
क्या यह प्रशासनिक रणनीति है जिससे निवेश और विकास कार्यों को बढ़ावा देने के लिए माहौल तैयार किया जा सके?
स्थानीय हालात
स्थानीय जानकार मानते हैं कि नक्सलवाद केवल बंदूक से खत्म नहीं होता. आज भी पलामू के कई गाँवों में सड़क, बिजली, पानी और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएँ नहीं हैं. यही अभाव नक्सल संगठनों को युवाओं को गुमराह करने का मौका देता है. हालांकि पुलिस का दावा है कि बड़े कमांडरों को खत्म कर दिया गया है और अब केवल सफाई अभियान चल रहा है.
पलामू को नक्सल मुक्त घोषित करना भले ही प्रशासनिक दृष्टि से एक उपलब्धि लगे, लेकिन मई से सितंबर 2025 तक हुई तीन बड़ी मुठभेड़ों ने साबित कर दिया कि इलाके में नक्सली गुट अब भी जड़ जमाए हुए हैं. तूलसी भूइयाँ, मुखदेव यादव जैसे बड़े नामों का हाल ही में मारा जाना दर्शाता है कि चुनौती अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है.असल मायने में पलामू तभी नक्सल मुक्त कहलाएगा जब यहाँ के लोगों को सुरक्षा के साथ-साथ रोज़गार, शिक्षा और विकास की गारंटी मिले. केवल घोषणा कर देने से नक्सलवाद की परछाई मिट नहीं सकती , सूबे के वित्त मंत्री राधा कृष्ण किशोर ने पलामू में सार्वजनिक मंच से कहा था इस इलाके में नक्सली वारदात खत्म होने का मतलब इसका संपूर्ण खात्मा नहीं है, इसलिए पुलिस और लोगो को सचेत रहने की जरूरत है.
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