टीएनपी डेस्क(TNP DESK): राजस्थान हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला दिया है. इस फैसले में कहा गया है कि पति पत्नी के बीच आपसी कलह और कानूनी लड़ाई में उनके बच्चे मोहरा नहीं बन सकते हैं. कोर्ट ने यह भी कहा कि ना सिर्फ डीएनए टेस्ट का बच्चे के मानसिक और शारीरिक प्रभाव के बारे में चर्चा की बल्कि उनके अधिकारों के अतिक्रमण पर भी विचार दिए. कोर्ट ने यह भी कहा कि डीएनए टेस्ट की मांग करने पर विचार करते समय बच्चों के हित को ध्यान में रखना बेहद जरूरी है. यह फैसला जस्टिस डॉ पुष्पेंद्र सिंह भाटी ने दी है.
बच्चों के अधिकार का अतिक्रमण नहीं होना चाहिए
एक ऐसे मामले सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि बच्चों के अधिकार का अतिक्रमण नहीं होना चाहिए. तलाक का एक मामला पति ने दाखिल किया है जिसमें उसने बच्चे की डीएनए टेस्ट की मांग कोर्ट से की है. पिता ने तलाक की अर्जी में डीएनए रिपोर्ट को एक आधार बनाने का कोर्ट से आग्रह किया था. पिता का आरोप है कि वह उस बच्चे का बाप नहीं है. वैसे कोर्ट का यह फैसला कुछ दिन पहले आए हैं लेकिन अब इस पर चर्चा हो रही है. अर्जित दाखिल करने वाले पिता ने कोर्ट से आग्रह किया है कि उनके मामले पर गंभीरता से विचार किया जाए.
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